कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में 2.1 लाख करोड़ रुपये के जैविक कपास घोटाले का आरोप लगाया है। हाई कोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश की निगरानी में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की एसआईटी गठित करके मामले की जांच की मांग उठाई। पार्टी ने कहा कि सरकार सभी 6,046 आईसीएस ग्रुप की जांच और धोखाधड़ी में शामिल समूहों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करे। 


मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस पूरे प्रकरण में किसान समूह और सर्टिफिकेट एजेंसियों की मिलीभगत का आरोप लगाया। उनका कहना है कि किसानों के नाम पर समूहों का गठन किया गया और गैर-जैविक कपास को जैविक बताकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचा गया। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की छवि धूमिल हुई है।  

 

दिग्विजय सिंह ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) का गठन ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया था। इसके साथ ही एनपीओपी कार्यक्रम भी आरंभ किया गया। कार्यक्रम के तहत ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसानों के हजारों समूह बनाए गए। केंद्र सरकार ने किसानों को 3 साल तक 50 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर सब्सिडी देने की बात कही। इसके बाद ही मध्य प्रदेश का मालवा और निमाड़ ऑर्गेनिक खेती का हब बना।

 

 

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दिग्विजय सिंह का कहना है कि ऑर्गनिक खेती में प्रमाणपत्र का होना सबसे जरूरी है। प्रमाणपत्र होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्पाद की कीमत बढ़ जाती है। देश में 35 सर्टिफिकेशन एजेंसियों का गठन किया गया। पूरे देश में किसानों के 6,046 समूह बने। हर समूह में 25 से 500 तक किसानों को जोड़ा गया। इन किसान समूहों को आईसीएस भी कहा जाता है। सत्यापन के बाद एजेंसियां किसान समूह को ट्रांसजैक्शन सर्टिफिकेट जारी करती हैं। इसी सर्टिफिकेट के आधार पर किसान समूह को ऑर्गनिक माना जाता है। 

दिग्विजय ने समझाया पूरा खेल

दिग्विजय सिंह ने कहा कि आंतरिक नियंत्रण प्रणाली (ICS) के तहत किसान समूहों का गठन तो किया गया लेकिन ज्यादातर किसानों को यह पता ही नहीं कि वह समूह का हिस्सा हैं। दिग्विजय सिंह का दावा है कि सर्टिफिकेशन एजेंसियों से मिलीभगत करके आईसीएस ने ट्रांसजैक्शन सर्टिफिकेट हासिल किया और गैर-जैविक कपास को अंतरराष्ट्रीय बाजार में जैविक बताकर महंगे दामों पर बेचा गया। 

 

 

दिग्विजय सिंह कहना है कि जिन किसानों के नाम पर जैविक कपास को बेचा गया है, वे जैविक खेती करते ही नहीं। उनका आरोप है कि 5,000 रुपये प्रति क्विंटल में बिकने वाले कपास को अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऑर्गेनिक बताकर 15,000 रुपये प्रति क्विंटल में बेचा गया। यह पूरा खेल ट्रांसफर सर्टिफिकेट में उत्पाद को ऑर्गेनिक बताकर किया गया। 

अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने लिया ऐक्शन

दिग्विजय सिंह का दावा है कि जांच के बाद कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओ ने ऐक्शन भी लिया। उन्होंने बताया कि 2020 में ग्लोबल ऑर्गेनिक टेक्सटाइल स्टैंडर्ड ने 11 कंपनियों का 'प्रमुख मान्यता प्रमाणपत्र' रद्द कर दिया था। साल 2021 में अमेरिकी के कृषि विभाग ने और यूरोपियन यूनियन ने पांच भारतीय प्रमाणकर्ताओं की मान्यता को खत्म कर दिया था। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक खबर का हवाला भी दिया। इसमें कहा गया कि भारत के 80 फीसदी जैविक कपास निर्यात पर गलत लेबल लगा है। 

 

दावा- मंत्रालय ने मानी गड़बड़ी की बात

दिग्विजय सिंह का कहना है कि मामला सामने आने के बाद 27 अगस्त 2024 को पीएम मोदी को एक पत्र भी लिखा था। 28 नवंबर 2024 को पीयूष गोयल ने पत्र का जवाब दिया और गड़बड़ी की बात मानी। दिग्विजय सिंह ने आगे दावा किया कि गंभीर उल्लंघन के बाद एक सर्टिफिकेट एजेंसी को एक वर्ष तक निलंबित भी किया गया। दो व्यावसायिक संगठनों पर छापे के दौरान 750 करोड़ रुपये की जीएसटी चोरी भी पकड़ी गई। जब संसद में यह मामला उठाया तो मंत्रालय ने भी गड़बड़ी की बात मानी और बताया कि कार्रवाई की गई है।

 

 

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दिग्विजय सिंह का आरोप है कि ऑर्गेनिक कपास घोटाला 2.1 लाख करोड़ या इससे अधिक का हो सकता है। उनका आरोप है कि सरकार से मिलने वाली सब्सिडी भी असली किसानों तक नहीं पहुंची। फर्जी किसानों के नामों को जोड़कर इसमें धांधली की गई।