अगर आप दिल्ली में रहते हैं और रोजाना कार या बाइक से सफर करते हैं, तो आपने अक्सर हवा में अचानक उठती धूल का सामना किया होगा। पहली नजर में ऐसा लगता है कि यह शहर के बढ़ते प्रदूषण का नतीजा है लेकिन असल में, हवा में फैलते इस धूल के पीछे सबसे बड़ा कारण है – सड़क और इमारतों का निर्माण कार्य। तो सवाल उठता है कि क्या निर्माण कार्य सच में हवा में धूल घोलने के लिए जिम्मेदार है और सरकार ने ऐसे निर्माण कार्यों के लिए क्या गाइडलाइंस तय की हैं? आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
धूल आमतौर पर तेज हवाओं के कारण प्राकृतिक रूप से उठती है, जो मिट्टी और धूल को हवा में फैला देती हैं। हालांकि, शहरी क्षेत्रों में खासकर निर्माण कार्य इस समस्या को और गंभीर बना देते हैं। दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में, जहां गर्मी और सूखा आम है, वहां धूल अक्सर देखने को मिलती हैं। ऐसे में निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल न केवल हवा की गुणवत्ता को और बिगाड़ती है, बल्कि विजिबिलिटी को भी काफी हद तक कम कर देती है।
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कंस्ट्रक्शन कैसे है जिम्मेदार?
निर्माण स्थलों पर मिट्टी, रेत, कंक्रीट और अन्य सामग्री अक्सर खुले में रखी जाती हैं। तेज हवाओं के दौरान ये बारीक कण हवा में उड़ने लगते हैं, जिससे धूल और अधिक घातक हो जाती है। पुराने ढांचों को गिराने या जमीन की खुदाई के दौरान भी बड़ी मात्रा में धूल उत्पन्न होती है। ये धूल कण बेहद हल्के होते हैं और दूर-दराज तक हवा में फैल सकते हैं। कई बार निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के उपाय- जैसे पानी का छिड़काव या सामग्री को ढकना, नहीं किए जाते, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है। मई 2024 में दिल्ली-NCR में आई धूल भरी आंधी के दौरान निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल ने वायु गुणवत्ता को और भी खराब कर दिया था।
सरकार, खासकर दिल्ली और अन्य शहरों में, धूल प्रदूषण रोकने के लिए सख्त नियम बनाए हैं। यह नियम राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI), पर्यावरण मंत्रालय और स्थानीय निकायों जैसे दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा लागू किए जाते हैं। क्या है गाडलाइंस, यहां देखें:
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धूल प्रदूषण रोकने के लिए दिल्ली के 14-प्वाइंट गाइडलाइंस
निर्माण स्थल को ढकना: साइट के चारों ओर टीन की दीवार लगानी होगी, ताकि धूल बाहर न जाए।
एंटी-स्मॉग गन: 5,000 वर्ग मीटर से बड़ी साइट पर धूल रोकने के लिए एंटी-स्मॉग गन (पानी का छिड़काव करने वाली मशीन) लगाना जरूरी है।
तिरपाल का उपयोग: मिट्टी खोदने या तोड़फोड़ के दौरान ग्रीन नेट या तिरपाल से ढकना अनिवार्य है।
पानी का छिड़काव: साइट पर लगातार पानी छिड़कना होगा, ताकि धूल न उड़े।
सामग्री का भंडारण: मिट्टी, बालू, या मलबे को खुले में नहीं छोड़ना, इसे ढककर रखना होगा।
सड़क पर मलबा निषेध: निर्माण मलबे को सड़क किनारे डंप नहीं करना, इसे तय जगह पर रखना होगा।
पत्थर काटने का नियम: पत्थर कटाई खुले में नहीं होनी चाहिए, इसे ढकी जगह पर करना होगा।
कर्मचारियों की ट्रेनिंग: सभी मजदूरों को धूल रोकने की ट्रेनिंग देना जरूरी है, जिसके लिए सामग्री दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) देती है।
कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट रूल्स (C&D Rules, 2016)
निर्माण से निकले मलबे का 10-20% रिसाइकल करना जरूरी है। इसे सड़क निर्माण या अन्य प्रोजेक्ट में इस्तेमाल करना होता है। डेवलेपर, ठेकेदार और स्थानीय निकाय जैसे नगर निगम मलबे को सही जगह डंप करने के लिए जिम्मेदार हैं। इसके अलावा मलबे को दूर ले जाकर फेंकने की बजाय, इसे रिसाइकल करने से पैसे बचते हैं। खुले में मलबा डंप करने से नदियां और जमीन खराब होती हैं, इसलिए इसे रोकने के लिए सख्त नियम हैं।
नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के गाइडलाइंस
ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे जैसे सड़क प्रोजेक्ट्स के लिए NHAI ने नियम बनाए हैं, जैसे:
सड़क के किनारे पेड़ और हरियाली लगाना जरूरी है, जो धूल को रोकती है। निर्माण के दौरान नियमित रूप से पानी का छिड़काव करना होता है। सड़क निर्माण से निकली मिट्टी या पत्थर को ढककर ले जाना और तय जगह पर डंप करना। इसमें ठेकेदारों को धूल नियंत्रण उपायों का पालन करना होता है, वरना जुर्माना लगता है।
सर्दियों में विशेष नियम - विंटर एक्शन प्लान
दिल्ली में सर्दियों में धूल और स्मॉग बढ़ता है। इसके लिए सरकार का विंटर एक्शन प्लान लागू होता है, जिसमें निर्माण साइट्स पर और सख्ती की जाती है। DPCC और अन्य टीमें साइट्स का नियमित दौरा करती हैं। नियम तोड़ने वाली एजेंसियों पर भारी जुर्माना या काम रोकने का आदेश।
इन नियमों का असर
दिल्ली में 14-सूत्रीय नियम लागू होने के बाद निर्माण स्थलों से धूल प्रदूषण में कमी आई है। वहीं, कुछ छोटे ठेकेदार या निजी एजेंसियां नियमों की अनदेखी करती हैं, जिससे धूल बढ़ती है।कई मजदूरों को ट्रेनिंग नहीं मिलती, जिससे गलतियां होती हैं।