'ज्यादातर मामलों में महामारियां तब खत्म होती हैं, जब कोई दूसरी महामारी आती है।' यह बात 5 मई 2023 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रमुख डॉ. ट्रेड्रोस घेब्रेयेसस ने कही थी। यह वह दिन था, जब WHO ने दुनिया को बताया था कि कोविड अब 'महामारी' नहीं रहा। उन्होंने उस वक्त भी चेतावनी दी थी कि कोरोना वायरस अभी भी बड़ा खतरा बना हुआ है।
कोविड से 'महामारी' का तमगा हटने के ठीक दो साल बाद यह एक बार फिर लौट आया है। दुनिया के कई देशों में कोविड के मामले बढ़ने लगे हैं। भारत में भी तेजी से इसके केस बढ़ रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, अभी देश में कोविड के 1,010 ऐक्टिव केस हैं। राजधानी दिल्ली में 104 ऐक्टिव केस हैं। इनमें से 24 मरीज पिछले एक हफ्ते में सामने आए हैं। सबसे ज्यादा 430 केस केरल में हैं। महाराष्ट्र में भी संक्रमित मरीजों की संख्या 200 के पार चली गई है। यह दिखाता है कि भारत में भी कोविड एक बार फिर पैर पसारने लगा है।
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क्यों बढ़ रहा है कोविड?
कोरोना वायरस से होने वाले कोविड का संक्रमण फिर बढ़ने लगा है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के डीजी डॉ. राजीव बहल का कहना है कि देश के कुछ हिस्सों में कोविड के मरीज बढ़ रहे हैं लेकिन चिंता करने जैसी कोई बात नहीं है।
दरअसल, कोविड के फिर से फैलने की वजह नए वैरिएंट हैं। डॉ. राजीव बहल ने बताया कि कोविड के वैरिएंट ओमिक्रॉन के नए सब-वैरिएंट- LF.7, XFG, JN.1 और NB.1.8.1 सामने आए हैं। उन्होंने बताया कि जिनोम सिक्वेंसिंग से पता चल जाएगा कि क्या कोई नया वैरिएंट आया है।
उन्होंने कहा, 'जब भी नए केसेस सामने आते हैं तो हम तीन बातों पर गौर करते हैं। पहला कि मामले कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं? पहले हमने देखा है कि कोविड के नए मामले दो दिन में दोगुने जाते थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। दूसरा कि क्या नया वैरिएंट हमारी इम्युनिटी को चकमा दे रहा है? जब भी नया वैरिएंट आता है तो वह हमारी इम्युनिटी को चकमा दे सकता है लेकिन फिलहाल चिंता की कोई बात नहीं है।'
डॉ. बहल ने बताया कि 'तीसरी बात हम यह देखते हैं कि नए मामलों की गंभीरता कितनी है? अभी तक नए मामलों में गंभीरता काफी कम है। इसलिए चिंता की कोई नहीं है। हालांकि, हमें सावधानी बरतनी चाहिए।'
उन्होंने बताया कि WHO नए सब-वैरिएंट LF.7 और NB.1.8.1 की मॉनिटरिंग कर रहा है। WHO ने अभी तक इन्हें 'वैरिएंट ऑफ कंसर्न' या 'वैरिएंट ऑफ इंट्रेस्ट' घोषित नहीं किया है।
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क्या कोविड कभी खत्म नहीं होगा?
जब कोई नई बीमारी आती है, जिससे दुनिया की एक बड़ी आबादी प्रभावित होती है तो उसे 'महामारी' या 'पैंडेमिक' कहा जाता है। मगर जब इसी बीमारी के साथ हम जीना सीख जाते हैं या फिर यह उतनी गंभीर नहीं रहती, जितनी शुरुआत में थी, तो इसे 'एंडेमिक' कहा जाता है। कोविड भी 'एंडेमिक' ही है।
इसका मतलब यह कि कोविड खत्म नहीं हुआ है, बल्कि हमने इसके साथ अब जीना सीख लिया है। अब यह उतना गंभीर नहीं रहा, जितना 2020, 2021 और 2022 में था। कोविड अभी भी लोगों को बीमार कर रहा है और उससे अभी भी मौतें हो रहीं हैं लेकिन अब यह पहले जितना गंभीर नहीं रहा।
अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) में साइंस डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर एरॉन हॉल ने पिछले साल NPR को दिए इंटरव्यू में कहा था कि 'कोविड अब दुनियाभर में एंडेमिक स्टेज में पहुंच गया है।' उन्होंने कहा था, 'कोविड अब भी बहुत बड़ी समस्या है लेकिन अब यह एक महामारी की तरह खतरा नहीं है। हम अभी बीमारियों से जिस तरह निपटते हैं, कोविड से भी ऐसे ही निपटना होगा।'
महामारी विशेषज्ञ कैटलीन जेटलीना एक लेख में लिखती हैं, 'कोविड अभी भी बहुत अनप्रेडिक्टेबल है। मुझे और मेरे जैसे बहुत से वैज्ञानिकों को लगता है कि कोविड के पैटर्न को समझने में हमें कम से कम 10 साल लगेंगे।'
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े महामारी विशेषज्ञ विलियम हैनेज ने पिछले साल कहा था, 'एंडेमिक का मतलब यह नहीं है कि अब सबकुछ ठीक है। दुनिया के कई हिस्सों में टीबी अभी एंडेमिक स्टेज पर है। मलेरिया भी कुछ जगहों पर एंडेमिक है और इनमें से कोई भी अच्छी बात नहीं है।' उन्होंने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि टीबी और मलेरिया अब भी ऐसी बीमारियां हैं, जिनसे हर साल कइयों की जान चली जाती है।
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कोविड का खत्म होना क्यों मुश्किल?
- म्यूटेशनः कोविड कोरोना वायरस से फैलता है। वायरस के साथ दिक्कत यह है कि इसे जिंदा रहने के लिए खुद को म्यूटेट करना पड़ता है। म्यूटेशन के कारण इसके नए-नए वैरिएंट बनकर आते हैं और यही वैरिएंट वायरस को फैलाते हैं।
- इम्युनिटीः किसी भी बीमारी या वायरस से खतरा तब कम हो जाता है, जब उसे लेकर इम्युनिटी बन जाती है। इम्युनिटी फिर चाहे वैक्सीन से बनी हो या प्राकृतिक तरीके से। मगर वायरस का नया वैरिएंट पिछली इम्युनिटी को मात दे सकता है।
- जूनोटिकः वैज्ञानिकों का मानना है कि कई बीमारियों की तरह कोविड भी जानवरों से फैली है। WHO का मानना है कि कोरोना वायरस चमगादड़ से फैला होगा। जब तक किसी वायरस या बीमारी का सोर्स कोई जानवर होता है तो उसे खत्म करना मुश्किल हो जाता है।
- वैक्सीनेशनः कई स्टडीज में सामने आया है कि कोविड वैक्सीन बीमारी की गंभीरता और उससे होने वाली मौत को तो 90% तक कम कर सकती है लेकिन ट्रांसमिशन को 30-40% तक रोकने में ही कारगर है। यानी, गंभीर बीमारी भले ही न हो लेकिन संक्रमित होने का खतरा बना रहता है।
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कोविड ही अब नया 'फ्लू' होगा?
सर्दी-जुकाम या फ्लू को पूरी तरह से खत्म कर पाना काफी मुश्किल है। क्योंकि इनकी संक्रमण दर यानी इन्फेक्शन रेट ज्यादा होती है। सबसे अहम बात यह है कि एक संक्रमित व्यक्ति कइयों को संक्रमित कर सकता है।
अगस्त 2020 में 'द अटलांटिक' में एक लेख छपा था, जिसमें बताया गया था कि कोविड फैलाने वाला SARS-COV-2 नया नहीं है। यह कोरोना वायरस है और ऐसे कई कोरोना वायरस पहले से मौजूद हैं, जो सर्दी-जुकाम या फ्लू का कारण बनते हैं। 229E, OC43, NL63 और HKU1 जैसे कोरोना वायरस पहले से ही मौजूद हैं। 19वीं सदी में OC43 कोरोना वायरस पहले गायों में फैला था और फिर वहां से इंसानों में आया। इसके कारण महामारी आई और अब यह एक सामान्य सर्दी-जुकाम बन गया है।
उस लेख में लिखा था, 'कोविड महामारी किसी न किसी पॉइंट पर जाकर खत्म हो जाएगी, क्योंकि बहुत सारे लोग इससे संक्रमित हो चुके होंगे और ज्यादातर लोगों ने इसकी वैक्सीन ले ली होगी लेकिन इसके बाद भी यह फैलता रहेगा। इसके मामले घटते-बढ़ते रहेंगे। जब एक सटीक और प्रभावी वैक्सीन आएगी, तब भी यह वायरस की गंभीरता को ही खत्म करेगी लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं कर पाएगी।'
इसमें बताया गया था कि आज के समय में भी कई वायरस के लिए वैक्सीन मौजूद हैं लेकिन चेचक यानी स्मॉलपॉक्स को छोड़कर बाकी किसी भी वायरस को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सका है। चेचक को भी पूरी तरह से खत्म करने में 15 साल लग गए थे। लेख में लिखा था, 'अगर कोविड से इम्युनिटी कुछ महीनों में ही रहती है तो हर साल महामारी आ सकती है। अगर इम्युनिटी दो साल तक रहती है तो हर दूसरे साल कोविड का पीक देखने को मिल सकता है।' इसमें यह भी लिखा था कि अगर जैसे-तैसे इस वायरस को इंसानों से पूरी तरह खत्म कर भी दिया गया तो भी यह जानवरों में फैलता रहेगा और इससे इंसान फिर संक्रमित हो जाएंगे।
इसमें इबोला का उदाहरण देकर समझाया गया था। इसमें लिखा था, 'इबोला फैलने का बड़ा कारण चमगादड़ है। 2016 में पश्चिमी अफ्रीका में इबोला का ह्यूमन-टू-ह्यूमन ट्रांसमिशन खत्म हो गया था। हालांकि, अब भी इबोला हर साल कहीं न कहीं फैलता है और इंसानों को संक्रमित करता है। इबोला को वैक्सीन से कंट्रोल किया जा सकता है लेकिन पूरी तरह खत्म करना नामुमकीन है।'
मई 2023 में जब WHO ने कोविड के 'महामारी' न होने का ऐलान किया था, तब चेतावनी देते हुए कहा था, 'यह अभी भी लोगों की जान ले रहा है। यह अभी भी म्यूटेट हो रहा है। नए वैरिएंट आने का खतरा बना हुआ है, जिनसे नए मामले और मौतें बढ़ सकती हैं।'
कुल मिलाकर, कोविड को पूरी तरह से खत्म होने में शायद सालों लग जाएं और यह एक आम फ्लू की तरह हो जाए। अभी भी ज्यादातर जानकारों का मानना है कि कोविड 'एंडेमिक' बन गया है और अब हमें इसके साथ ही जीना होगा।