दीपावली, दिल्ली के लिए मुसीबत लेकर आती है। दमघोंटू हवा, खराब एयर क्वालिटी इंडेक्स, प्रदूषण से बेहाल लोग, अस्पताल का रुख भी करते हैं। दीपावली का जश्न तो लोग एक हफ्ते तक मनाते हैं लेकिन दिल्ली में सांस के मरीज बढ़ जाते हैं। अलग बात है कि सिर्फ परंपरा के नाम पर फोड़े जाने वाले पटाखे ही इस परेशानी के लिए जिम्मेदार नहीं माने जा सकते हैं, प्रदूषण की एक वजह पड़ोसी राज्यों में जलने वाली पराली भी होती है।
आम आदमी पार्टी सरकार ग्रीन दीपावली मनाने की पक्षधर थी। दीपावली पर पटाखों की जगह लेजर शो कराने की वकालत बड़े मंत्री करते थे। भारतीय जनता पार्टी की राजनीति अलग है। सत्ता में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता हैं, 27 साल बाद सत्ता में लौटी बीजेपी ने पटाखों पर पाबंदी नहीं लगाई है।
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दिल्ली सरकार की चुनौती क्या है?
रेखा गुप्ता सरकार के पास चुनौती है कि दीपावली पर कैसे पटाखों की इजाजत देकर प्रदूषण से बचा जाएगा। शनिवार को ही दिल्ली का AQI 300 के पार चला गया था, रविवार को बढ़ा और धुंध घनी होने लगी थी। फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के बाद पहली बार 'ग्रीन पटाखों' की बिक्री और इस्तेमाल की इजाजत दी। यह छूट सिर्फ दो दिन की है और तय समय तक ही। दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता ने इसे 'परंपरा और पर्यावरण के बीच बैलेंस' बताया है। यह बैलेंस, दिल्ली की खराब होती हवा को बचा पाएगा? अहम सवाल यही है। बीजेपी ने पहले AAP पर इल्जाम लगाया था कि वह प्रदूषण को हथियार बनाकर हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचा रही है। अब कोर्ट के फैसले ने बीजेपी पर ही उंगली उठा दी है कि क्या सरकार इसे सही से लागू कर पाएगी?
पटाखों पर बैन की लड़ाई कितनी पुरानी है?
- दिल्ली में 2020 से बैन थे पटाखे: AAP सरकार ने प्रदूषण रोकने के लिए पटाखों पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। कोर्ट ने हर साल इसे बढ़ाया। AAP ने इसे 'लोगों की सेहत' का हवाला दिया, लेकिन बीजेपी ने 'बहुत सख्ती' का आरोप लगाया। बीजेपी ने तब कहा था कि यह हिंदुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है।
- 2017-2018 की कभी न भूलने वाली सीख: 2017 में कोर्ट ने NCR में पटाखे बैन किए। 2018 में 'ग्रीन पटाखों' को हरी झंडी दी, लेकिन पुलिस को सही-गलत पटाखे पहचानने में दिक्कत हुई। नतीजा? बड़े पैमाने पर उल्लंघन हुआ। 2020 में NGT ने फिर पूरा बैन लगा दिया।
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कोर्ट ने पटाखों पर क्या कहा है?
कोर्ट ने राज्यों को हवा की गुणवत्ता के आधार पर फैसला लेने की छूट दी। दिल्ली को शर्तों के साथ हां कहा है। लेकिन AQI नवंबर तक 400 पार कर जाता है। ऐसे में चुनौती यह है कि क्या पटाखों के साथ दिल्ली की हवा सांस लेने लायक रहेगी?
प्रदूषण पर जमकर हो रही राजनीति
दिल्ली के पूर्व पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा, '2018 में भी वैसी इजाजत मिली थी, लेकिन दिल्ली पुलिस की लापरवाही से उल्लंघन हुए। NGT ने 2020 में बैन ठोक दिया। अक्टूबर आधा निकल गया, लेकिन 'विंटर एक्शन प्लान' तक नहीं आया।'
अपने घोषणापत्र में उलझी बीजेपी
बीजेपी ने दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने का वादा किया था। चुनावी घोषणा-पत्र 'विकसित दिल्ली संकल्प पत्र 2025' में PM2.5 और PM10 को आधा करने, क्लीन एयर मिशन, हर इलाके में रोड-स्वीपिंग मशीनें और वॉटर स्प्रिंकलर का वादा किया था।
नितिन गडकरी:-
बीजेपी की सरकार बनेगी तो 5 साल में दिल्ली को ट्रैफिक और प्रदूषण से आजाद कर देंगे।
हो पाया क्या?
दिल्ली में यमुना को साफ करने का वादा किया जा रहा है। कुछ हद तक सफाई दिख रही है लेकिन सड़कों से न जाम की समस्या कम हुई है, न ही भीड़ कम नजर आ रही है।
'सांसों के आपातकाल' का क्या होगा?
2024 में AQI जब अति गंभीर श्रेणी में पहुंचा था तो भारतीय जनता पार्टी ने कहा था कि दिल्ली सरकार में सांसों पर आपातकाल है। अरविंद केजरीवाल की मास्क वाली तस्वीरें पोस्टरों पर लगाईं। अब वही बीजेपी को साबित करना है कि उनकी चार इंजन वाली सरकार, कैसे आम आदमी पार्टी से बेहतर है। दिल्ली में केंद्र, LG, MCD और दिल्ली सरकार के पास बड़ी जिम्मेदारी है।
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जिम्मेदारी किसकी?
कोर्ट के आदेश के बाद, फैसले को लागू करने की जिम्मेदारी पुलिस पर है। पुलिस ग्रीन पटाखे और सामान्य पटाखों में अंतर करने में मुश्किलों का सामना कर रही है। अवैध स्टॉक पर छापे, PESO-सर्टिफाइड पटाखों की जांच और तय समय पर सख्ती की उम्मीद है।
दीवाली की सुबह पता चलेगा कितनी असरदार रही पाबंदियां?
दिवाली के बाद दिल्ली की सुबह साफ हवा वाली होगी या धुंधली इसे लेकर अभी से अनुमान लगाया जा रहा है। जिस तरह दिल्ली में हवा खराब हुई है, अगले दिन भी यही आशंका है कि हवा खराब होगी। बीजेपी के समर्थक पटाखों के हक में हैं, लेकिन प्रदूषण से परेशान लोग कोर्ट के इरादे को सही ढंग से लागू होते देखना चाहते हैं।