दिल्ली विधानसभा में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने आबकारी नीति पर CAG की रिपोर्ट पेश कर दी। इस रिपोर्ट में 2017-18 से 2021-22 के बीच शराब के रेगुलेशन और सप्लाई की जांच की गई है। इसमें 2021-22 की आबकारी नीति की समीक्षा भी की गई है। इस नीति को सितंबर 2022 में वापस ले लिया गया था। रिपोर्ट में सामने आया है कि इस आबकारी नीति को लागू करते वक्त कई गंभीर अनियमितताएं बरती गईं, जिससे सरकारी खजाने को 2 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ था।
विधानसभा में जब रिपोर्ट पेश की गईं तो स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने आम आदमी पार्टी की पिछली सरकार पर भी सवाल उठाए। स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने कहा, 'ये जानकर हैरानी हुई कि 2017-18 के बाद CAG रिपोर्ट विधानसभा में पेश नहीं की गई है। इसे लेकर विपक्ष के नेता के तौर पर मैंने और पांच अन्य विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति, विधानसभा अध्यक्ष, सीएम और मुख्य सचिव से रिपोर्ट पेश करने का अनुरोध किया था। राज्य की वित्तीय स्थिति जानने के लिए ये बहुत जरूरी था। दुर्भाग्य से रिपोर्ट पेश नहीं की गई और पिछली सरकार ने संविधान का उल्लंघन किया।'
विधानसभा में पेश CAG रिपोर्ट में लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में उल्लंघनों की बात सामने आई है। इसमें ये भी बताया गया है कि आबकारी नीति के लिए एक्सपर्ट पैनल के सुझावों को तत्कालीन डिप्टी सीएम और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने नजरअंदाज कर दिया था।
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रिपोर्ट में क्या हुए खुलासे?
CAG रिपोर्ट में सामने आया है कि दिल्ली सरकार की 2021-22 की आबकारी नीति की वजह से सरकारी खजाने को कुल 2,002.68 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2,002.68 करोड़ रुपये में से 941.53 करोड़ रुपये का नुकसान इसलिए हुआ, क्योंकि शराब की दुकानें खोलने के लिए समय पर अनुमति नहीं ली गई।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 2022 में आबकारी नीति के एक्सपायर होने से पहले ही 19 लाइसेंसधारियों ने अपने लाइसेंस सरेंडर कर दिए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि 19 लाइसेंस सरेंडर होने के बाद भी फिर से टेंडर नहीं निकाला गया, जिससे 890.15 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
इसके अलावा, सरकार ने कोविड-19 की आड़ में 144 करोड़ रुपये की लाइसेंस फीस माफ कर दी थी। वहीं, कुछ शराब रिटेलर्स ने पॉलिसी खत्म होने के बाद भी लाइसेंस अपने पास रखे, जिससे 27 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस तरह से कुल 2,002.68 करोड़ का घाटा सरकारी खजाने को हुआ।
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बारकोडिंग पर क्यों विवाद?
CAG रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2010 में दिल्ली कैबिनेट ने फैसला लिया था कि शराब की तस्करी रोकने के लिए दिल्ली में बिकने वाली शराब की हर बोतल की बारकोडिंग की जाएगी। यह भी तय हुआ था कि एक्साइज सप्लाई चेन इनफॉर्मेशन सिस्टम (ESCIMS) प्रोजेक्ट के तहत एक इम्प्लीमेंटिंग एजेंसी (IA) यह काम करेगी। नवंबर 2011 में इसके लिए टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को (TCS) चुना गया। फरवरी 2013 में यह पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुआ और दिसंबर 2013 में ऑपरेशनल हो गया। इसके लिए 7 साल का एग्रीमेंट था जिसे दो साल के लिए बढ़ाया जा सकता था।
रिपोर्ट के मुताबिक, जो समझौता हुआ था उसके तहत TCS को हर बोतल के लिए 15 पैसे मिलने थे। नियमों के मुताबिक, शराब की दुकान पर बिकने वाली हर बोतल के बारकोड को स्कैन किया जाना था। हालांकि, मार्च 2021 तक कुल 482.62 करोड़ बारकोड बिके हुए दिखाए गए लेकिन सिर्फ 346.09 करोड़ ही ऐसे थे जिन्हें स्कैन किया गया। यानी बाकी के 136.53 करोड़ को दिखाया गया कि उन्हें बिना स्कैन किए ही बेचा गया। इस तरह ESCIMS प्रोजेक्ट बनाने का उद्देश्य ही पूरा नहीं हुआ।
नियमों के मुताबिक, इम्प्लीमेंटिंग एजेंसी यानी TCS को सिर्फ उन बारकोड के लिए पैसे मिलने थे जिन्हें बिक्री वाली दुकानों पर स्कैन किया गया हो। इस हिसाब से 2013 में इस प्रोजेक्ट की शुरुआत से लेकर नवंबर 2022 तक TCS को कुल 65.88 करोड़ रुपये ही मिलने चाहिए। इसके उलट, टीसीएस का बिल कुल 90.11 करोड़ रुपये बना। CAG का कहना है कि इस तरह सरकार को कुल 24.23 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
क्या थी दिल्ली की आबकारी नीति?
17 नवंबर 2021 को दिल्ली सरकार ने आबकारी नीति 2021-22 लागू की थी। इसके तहत, शराब के कारोबार से सरकार पूरी तरह बाहर हो गई थी। शराब की सारी दुकानें प्राइवेट कर दी गई थीं। नई पॉलिसी के तहत, दिल्ली के 32 जोन में 849 दुकानें खुलनी थीं। हालांकि, विवाद के बाद 28 जुलाई 2022 को सरकार ने नई आबकारी नीति को रद्द कर पुरानी नीति ही लागू कर दी।