दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने शुक्रवार को सात साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या करने के दोषी को मौत की सजा सुनाई है। मामला 2019 का है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दोषी व्यक्ति समाज के लिए खतरा है और इस अपराध को दुर्लभतम कैटेगरी में रखा है।

 

कोर्ट ने दोषी ठहराए गए अभियुक्त राजेंद्र उर्फ सतीश को फांसी की सजा सुनाई है। इसके अलावा इस कांड में बेटे की मदद करने के आरोप में पिता राम शरण को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

 

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'राजेंद्र में सुधार की कोई संभावना नहीं'

कोर्ट ने राजेंद्र पर कई धाराओं के तहत सजा सुनाई और भारी जुर्माना भी लगाया है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बबीता पुनिया की अदालत ने कहा कि भविष्य में राजेंद्र में सुधार की कोई संभावना नहीं है। उसे समाज से दूर रखना ही ठीक है। अदालत ने राजेंद्र को पॉक्सो एक्ट और आईपीसी के प्रावधानों के तहत यह सजा सुनाई है। बता दें कि राजेंद्र और उसके पिता को 24 फरवरी को दोषी ठहराया गया था। 

 

यह मामला 9 फरवरी 2019 का है जब एक 7 साल की बच्ची गायब हो गई थी। दो दिन बाद उसका शव एक पार्क में मिला था। हाथ-पैर बंधे हुए थे। तीस हजारी कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि 27 साल के राजेंद्र ने अपनी यौन भूख को शांत करने के लिए बच्ची का अपहरण किया और उसके साथ दुष्कर्म किया। कोर्ट ने सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी पाया और अब मौत की सजा सुनाई गई।

 

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'आरोपी को कड़ी सजा मिलनी चाहिए'

अदालत ने कहा कि अपराध की प्रकृति और समाज की कमजोर बच्चों को भयावह अनुभवों से बचाने की प्रयास के कारण आरोपी को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। अदालत ने फैसला सुनाते हुए दोषी के आपराधिक रिकॉर्ड का भी हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि उसने पहले भी एक नाबालिग लड़की का अपहरण किया था जिसमें उसे जमानत मिल गई थी।

 

अदालत ने कहा कि जमानत पर रिहा होने के बाद दोषी ने अन्य पीड़िता को अपना शिकार बनाया और उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। पहले उसे सुधारने का मौका दिया गया था। हालांकि, खुद को सुधारने के बजाय दोषी ने अवसर का फायदा उठाया। दोषी के पिता ने भी अपने बेटे पर सख्ती बरतने के बजाय आरोप में उसका साथ दिया। पिता-बेटे की जोड़ी को आईपीसी के तहत हत्या और साझा इरादे का दोषी ठहराया गया। 

 

'बच्ची पर कोई रहम नहीं किया गया'

सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि दोषी ने बच्ची पर रहम किए बिना उसकी हत्या कर दी जैसे वह जीने के लायक ही नहीं है। दोषी को कोई पश्चाताप नहीं हुआ। पिता की भूमिका पर जज ने कहा कि बेटे को फटकार लगाने की बजाय उसके कुकर्मों को छिपाने की कोशिश की।