दिल्ली हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में फैसला सुनाते हुए अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि झूठे शादी के वादे से जुड़े दुष्कर्म के मामलों में स्पष्ट सबूत की जरूरत होती है। कोर्ट ने बलात्कार के एक केस में आरोपी को बरी करते हुए फैसला सुनाया कि लंबे समय तक सहमति से बनाए गए यौन संबंध का यह मतलब नहीं है कि महिला की सहमति केवल शादी के वादे पर आधारित थी।

 

जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि शादी का झूठा झांसा देकर बलात्कार के लिए दोषसिद्धि के लिए मजबूत सबूतों की जरूरत होती है, जो यह साबित करें कि यौन संबंध केवल विश्वास में किए गए वादे को तोड़कर स्थापित किया गया था।

 

पुख्ता और स्पष्ट सबूत होने चाहिए

 

कोर्ट ने शनिवार को जारी आदेश में कहा, 'यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अगर सहमति से शारीरिक संबंध लंबे समय तक जारी रहता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि यौन सहमति पूरी तरह से शादी करने के वादे पर आधारित थी। शादी के झूठे बहाने पर किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए, इस बात के पुख्ता और स्पष्ट सबूत होने चाहिए कि शारीरिक संबंध केवल शादी करने के वादे के आधार पर स्थापित किए गए थे, जिसे कभी पूरा करने का इरादा नहीं था।'

 

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लोअर कोर्ट ने दोषी ठहराया

 

दरअसल, दिल्ली की एक कोर्ट ने आरोपी शख्स को 2023 के आदेश में अपहरण और बलात्कार का दोषी करार दिया था। कोर्ट ने उसे 10 साल की सजा सुनाई थी। तब कोर्ट ने माना था कि शख्स ने यौन संबंध बनाने के लिए शादी का झूठा वादा किया गया था। घटना के समय शख्स की उम्र साढ़े 18 साल थी।

 

पिता ने एफआईआर दर्ज करवाई

 

बता दें कि नवंबर 2019 में युवती के पिता ने युवक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी। एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि उनकी 20 साल बेटी को युवक अपहरण करके भगा ले गया था। इसमें कहा गया था कि बाद में दोनों को हरियाणा के धारूहेड़ा में पाया गया। केस होने के बाद युवक को गिरफ्तार कर लिया गया था।

 

दोषी ठहराए गए युवक ने दावा किया था कि यह मामला प्रेम पर आधारित सहमति से शारीरिक संबंध का था। इसमें कोई आपराध नहीं किया गया था। युवक ने तर्क दिया कि दिल्ली की कोर्ट इस बात पर विचार करने में असफल रही कि शादी के कथित वादे पर कोई शारीरिक संबंध नहीं था और युवती अपनी मर्जी से उसके साथ होटल गई थी।