जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद देश के नए राष्ट्रपति के लिए चुनाव प्रक्रिया तेज हो गई है। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को राज्यसभा के महासचिव पीसी मोदी को अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किया है। उनके साथ ही राज्यसभा सचिवालय में संयुक्त सचिव गरिमा जैन और विजय कुमार को सहायक रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किया है। पीसी मोदी की नियुक्ति को लेकर विपक्ष ने सवाल खड़े किए हैं। 

 

उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया के अनुसार, लोकसभा महासचिव और राज्यसभा महासचिव को बारी-बारी से रिटर्निंग ऑफिसर बनाया जाता है। पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान लोकसभा के महासचिव को रिटर्निंग ऑफिसर बनाया गया था तो इस बार राज्यसभा के महासचिव की बारी है। हालांकि, पीसी मोदी को रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त करने पर विवाद हो गया है। उनके अतीत को लेकर भी कई विवाद सामने आए हैं। इन्हीं विवादों के चलते उनकी नियुक्ति चर्चा का विषय बन गई है।

 

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कौन हैं पीसी मोदी?

पीसी मोदी सीनियर नौकरशाह हैं। उन्हें नवंबर 2021 में राज्यसभा का महासचिव नियुक्त किया गया था। उस समय भी उनकी नियुक्ति पर सवाल उठ चुके हैं। उनसे पहले पीपीके रामाचार्युलु राज्यसभा के महासचिव थे और उन्हें सिर्फ दो महीने बाद इस पद से हटा दिया था। वह राज्यसभा सचिवालय के पहले ऐसे अधिकारी थे, जो इस पद तक पहुंचे थे और उनको अचानक पद से हटा दिया गया था। इस पर विपक्षी दलों ने नाराजगी जताई थी। 

विपक्ष ने उठाए थे सवाल 

पीपीके रामाचर्युलु को राज्यसभा के महासचिव पद से 2021 के मानसून सत्र की घोषणा होने के साथ ही हटा दिया गया था। उस समय विपक्ष ने सवाल उठाए थे कि आखिर क्यों पीपीके रामाचार्युलु हटाकर पीसी मोदी को यह जिम्मेदारी दी गई थी।

 

उस समय राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था, 'यह फैसला हैरान करने और चौंकाने वाला है। संसद का सत्र पहले ही बुलाया जा चुका था, फिर अचानक यह बदलाव क्यों? इसके पीछे मंशा क्या है, हमें जानना होगा।' कांग्रेस नेता खरगे ने यह भी कहा था कि आमतौर पर कानून के जानकारों को राज्यसभा का महासचिव बनाया जाता है, जबकि पीसी मोदी IRS के 1982 बैच के अधिकारी हैं। 

पी.सी मोदी पर लग चुके हैं गंभीर आरोप

पीसी मोदी का नाम पहले भी विवादों में रहा है। मुंबई के मुख्य इनकम टैक्स आयुक्त ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को एक शिकायत भेजी थी, जिसमें पीसी मोदी पर एक संवेदनशील मामला दबाने का आरोप लगाया था। शिकायत में यह भी आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने एक विपक्षी नेता के खिलाफ तलाशी की कार्रवाई करके उन्होंने अपना पद सुरक्षित कर लिया है। शिकायत के बावजूद उन्हें प्रमोशन और एक्सटेंशन मिलते रहे।

 

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जगदीप धनखड़ ने अचानक दिया इस्तीफा

जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई को संसद के मानसून सत्र के दौरान ही इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफे में उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया था लेकिन उनका अचानक इस्तीफा कई सवाल खड़े कर गया। राजनीतिक गलियारों में उनके इस्तीफे की वजहों पर चर्चा हो रही है।

 

21 जुलाई को संसद में विपक्ष ने दोपहर 3 बजे के आसपास जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था और जगदीप धनखड़ ने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया था। इससे सराकर की लोकसभा में इसी तरह के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की योजना प्रभावित हुई थी। माना जा रहा है कि उनके इस कदम से पार्टी काफी नाराज थी और इसलिए उनसे इस्तीफा ले लिया गया था।