ग्राम पंचायतों में निर्वाचित महिला प्रधानों की जगह पर पतियों और अन्य पुरुष रिश्तेदारों के काम करने की अक्सर खबरें सामने आती रहती हैं। प्रधानपति या प्रधानपुत्र जैसे मनमाने ढंग से गढ़े गए पद स्थानीय प्रशासन के लिए भी परेशानी का सबब बनते हैं। मुखियापति, सरपंच पति, प्रधानपति जैसे पद स्वघोषित हैं और महिला सशक्तीकरण की पोल खोलते हैं।

आमतौर पर जब कोई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की जाती है, तब पुरुष उम्मीदवार महिलाओं को मौका देते हैं। कई मामलों में महिलाएं प्रॉक्सी उम्मीदवार ही होती हैं, चुनाव जीतने पर महिलाओं की जगह उनके पति या रिश्तेदार ही काम-काज करते हैं।

पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) की ओर से गठित एक सलाहकार समिति का सुझाव है कि ऐसे मामलों को जड़ से खत्म करने के लिए कठोर दंड की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए, जिससे इस तरह की धांधली रुक जाए। महिलाएं चुनाव तो जीत जाती हैं लेकिन उनका काम-काज उनके पति या रिश्तेदार देखते हैं, उनकी भूमिका हस्ताक्षर या अंगूठा लगाने तक ही सीमित हो जाता है।

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क्या हैं समिति के सुझाव?
समिति का कहना है कि गोपनीय शिकायतों के लिए हेल्पलाइन और महिला निगरानी समितियों को जगह मिले। एक रिपोर्टिंग सिस्टम हो, जिससे पता चल सके कि काम महिला कर रही है या उसके रिश्तेदार। जो लोग ऐसे मामलों को बेनकाब करेंगे, उन्हें व्हिसल ब्लोअर पुरस्कार दिया जाएगा।

समिति ने 'पंचायती राज प्रणालियों और संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और उनकी भूमिकाओं में परिवर्तन: प्रॉक्सी भागीदारी के प्रयासों को समाप्त करना' नाम से एक रिपोर्ट मंत्रालय के सचिव को सौंपी है। जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने 'जन प्रतिनिधि पतियों' के मुद्दे पर अहम फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पंचायती राज मंत्रालय ने सितंबर 2023 में सलाहकार समिति का गठन किया था।

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टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पंचयती राज सचिव विवेक भरद्वाज की टीम एक वर्कप्लान तैयार कर रहे हैं, जिसमें राज्यों के साथ चर्चा की जाएगी। महिला प्रतिनिधियों को उनकी भूमिका के लिए बेहतर तरह से तैयार किया जाएगा। राज्यों के सचिवों की एक समिति गठित की जाएगी, जिसका काम कानून बनाना, उन्हें जमीन पर लागू करना होगा, जिससे ऐसी प्रथाओं को रोका जा सके। 

कैसे इस कानून का दुरुपयोग करते हैं लोग?
73वें संविधान (संशोधन) अधिनियम 1992 पंचायती राज संस्थाओं (PRI) में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया गया। हालांकि, 21 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों ने इस संवैधानिक प्रावधान का विस्तार किया है। कई राज्यों में महिलाओं के लिए 50% की सीमा तक आरक्षण का प्रावधान तय किया गया है। 

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करीब 2.63 लाख पंचायतों में, 32.29 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से लगभग 15.03 लाख, लगभग 47%) महिलाएं हैं। महिलाओं का एक बड़ा तबका, चुने जाने के बाद भी अपने पतियों और रिश्तेदारों के निर्देश पर काम करने के लिए मजबूर है। 

कैसे हो सकता है सुधार?
समिति का सुझाव है कि महिला प्रतिनिधि ही अपने पद को संभाल रही है, इसकी निगरानी की जाए। वर्चुअल रिएलिटी के जरिए नजर रखी जाएगी। महिला पंचायत नेताओं के लिए यूनियन की नियुक्ति हो। महिला प्रतिनिधि ही पंचायत और ब्लॉक अधिकारियों के नेटवर्क से मैसेंजर के जरिए जुड़ें। पंचायती राज मंत्रालय का पंचायत निर्णय पोर्टल पर खामियों की शिकायत हो। निगरानी परिषद बनाई जाए, जिसमें जिला और ब्लॉकस्तर पर नियुक्तियां हों। अनुभवी महिलाओं और रिटायर्ड अधिकारी इस परिषद के सदस्य हों।