तमिलनाडु से लेकर तेलंगाना तक केंद्र सरकार की तीन भाषा नीति पर हंगामा बरपा है। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) की सीनियर नेता कनिमोझी करुणानिधि ने तीन भाषा नीति पर कहा है कि किसी भाषा के सह अस्तित्व से दिक्कत नहीं है लेकिन उसके थोपे जाने से असली दिक्कत है।

कनिमोझी करुणानिधि ने यह भी बताया है कि उनकी पार्टी हिंदी के खिलाफ नहीं है, बल्कि उसके थोपे जाने के खिलाफ है। भाषा पर उनकी पार्टी आपत्ति नहीं जता रही है। 

NDTV को दिए गए एक इंटरव्यू के दौरान जब पत्रकार ने उनसे सवाल किया कि क्या हिंदी और तमिल एकसाथ नहीं रह सकते तो उन्होंने अपनी पार्टी का रुख बताया। कनिमोझी करुणानिधि का कहना है कि हिंदी से कोई परहेज नहीं है, बस वह थोपी न जाए।

'सहअस्तित्व से दिक्कत नहीं, थोपे जाने से है'
DMK की दिग्गज नेता कनिमोझी करुणानिधि ने कहा, 'आज तमिलनाडु में देश के अलग-अलग हिस्सों से अलग-अलग लोग अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं। सह-अस्तित्व कोई समस्या नहीं है, थोपना एक समस्या है।'

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'तमिल की हिफाजत सबसे पहले...'
कनिमोझी ने कहा, 'हम किसी अन्य भाषा की कीमत पर तमिल की रक्षा नहीं करना चाहते और तमिल की रक्षा किसी विचारधारा की रक्षा करने के बारे में नहीं है। किसी समुदाय को नष्ट करने का तरीका उसकी भाषा को नष्ट करना है।'

'भाषाओं ने खो दी अपनी संस्कृति...'
कनिमोझी ने कहा, 'आज मैं आपको ऐसे कई राज्य दिखा सकती हूं जिन्होंने अपनी कला, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा और अपनी फिल्में खो दी हैं। हिंदी ने उनके साहित्य, फिल्मों और उनके संगीत की जगह ले ली है। मैं क्यों चाहूंगी कि ऐसा किसी अन्य भाषा के साथ हो?'

'विभाजनकारी है नई शिक्षा नीति'
कनिमोझी का यह भी कहना है कि शिक्षा नीति तैयार करने की वजह से उत्तर और दक्षिण का विभाजन और कहरा हो गया है। कनिमोझी ने एनडीटीवी के साथ हुए एक इंटरव्यू में कहा कि जब नियम बनाए गए थे तो यह साफ था कि उत्तर के लोग दक्षिण की भाषा सीखेंगे, दक्षिण के लोग उत्तर की भाषा सीखेंगे। 

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'दक्षिण हिंदी सीखे, उत्तर को परहेज क्यों'
कनिमोझी ने कहा, 'आज केरल, कर्नाटक हिंदी सीख रहे हैं। मुझे एक भी उत्तर भारतीय राज्य बताइए जिसने कोई दक्षिण भारतीय भाषा सीखी हो। तीन-भाषा सिद्धांत जरूरी नहीं कि बेहतर हो। यह एक मिथक है कि तीन भाषाएं सीखना कोई बड़ी बात है और केवल संपन्न बच्चे ही ऐसा कर पाते हैं।'|

'दुनिया में संवाद की भाषा है अंग्रेजी'
कनिमोझी ने कहा, 'मुझे यकीन है कि दुनिया और दूसरे राज्यों से संवाद करने के लिए अंग्रेजी ही है। आपको यह समझने के लिए अपनी मातृभाषा सीखनी होगी कि आप कौन हैं। अगर जरूरत पड़े तो मैंडरिन और जापानी सहित कोई भी भाषा सीखी जा सकती है।'

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भाषा पर हंगामा क्यों बरपा है?
तमिलनाडु में ऐतिहासिक तौर पर दो भाषा नीति अपनाई गई थी। सरकारी स्कूलों में बच्चों को तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी। साल 1930 और 1960 के दशक में तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू हुए। तब यहां के स्थानीय नेताओं ने हिंदीकरण को लेकर अपना विरोध जाहिर किया था। बीजेपी तीन शिक्षा नीति पर आगे बढ़ना चाह रही है तो दक्षिणी राज्यों ने जंग छेड़ दी है। DMK हिंदी के खिलाफ राज्यव्यापी अभियान चलाने की तैयारी में है।

तकरार की असली वजह क्या है?
ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं कि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ऐलान किया है कि राज्यों को समग्र शिक्षा मिशन तब तक 2,400 करोड़ रुपये की धनराशि तब तक नहीं मिलेगी, जब तक कि वह राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पूरी तरह से नहीं अपना लेता। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आरोप लगाते हुए कहा है कि केंद्र सरकार ब्लैकमेल कर रही है।