देश के कई राज्य लू की वजह से बेहाल हैं। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में तेज गरम हवाएं चल रही हैं। सुबह 11 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक हीटवेट की वजह से लोगों का बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है। हीटवेव का असर आपके शरीर से लेकर आर्थव्यवस्था तक पर पड़ता है। तेज हवाओं की वजह से खेती भी प्रभावित होती है और खेती-किसानी की चुनौतियां भी बढ़ती हैं। साल 2024 सबसे गरम वर्षों में से एक रहा है। वर्ल्ड मेटे औसत तापमान से 2024 की की गर्मी 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रही। 

बीते दो दशक में हीटवेव की स्थितियां भारत में लगातार बढ़ी हैं। भारत में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से पहले ऐसी गर्मी नहीं पड़ती थी, जैसी कि अब पड़ रही है। लगातार हो रहा जलवायु परिवर्तन, एसी और वायु प्रदूषण की दूसरी वजहें, प्रकृति का अंधाधुंध दोहन, सिमटते वन क्षेत्र, ऐसी तमाम वजहें हैं, जिनके कारण तापमान में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रहा है। बढ़ती गर्मी स्वास्थ्य से लेकर उद्योग तक, हर क्षेत्र में परेशानियां बढ़ा रही है।

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हीटवेव का असर क्या है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हीटवेव का शरीर पर असर बेहद गंभीर होता है। अक्सर हीटवेव की वजह से पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की स्थिति बन पड़ती है। हीटवेव की वजह से लोगों की मौत होती है, लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ते हैं और कोमा जैसी स्थितियों में चले जाते हैं। इसके कई सामजिक और आर्थिक नुकसान भी हैं।

देश के कई राज्यों में गंभीर समस्या बन रही है गर्मी। (Photo Credit: PTI)

शरीर पर कैसे असर करती है गर्मी?
WHO ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि बाहरी तापमान, ह्युमिडिटी और हवा की रफ्तार का असर शरीर पर पड़ता है। जब बाहर का तापमान हमारे शरीर के आंतरिक तापमान के आसपास होता है, तब सेहत दुरुस्त रहती है लेकिन जब बाहर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होता है, तब शरीर अंदर से गरमी बाहर नहीं निकाल पाता है। इसका असर हमारे बेसल मेटाबॉलिक रेट (BMR) पर भी पड़ता है। जैसे ही लोग हीट स्ट्रोक या भीषण गर्मी की चपेट में आते हैं, बीमार होने लगते हैं। कई बार हीट स्ट्रेस इस हद तक आगे बढ़ जाता है कि किडनी, लिवर और दिमाग पर इसका असर पड़ने लगता है।

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खेती और पशुपालन पर भी बुरा असर

हीटवेव का असर सिर्फ शरीर पर नहीं पड़ता, पशु भी इसे प्रभावित होते हैं। जब गर्मी हद से ज्यादा बढ़ने लगती है, कृषि जगत में इसका असर साफ दिखने लगता है। जिन जानवरों पर हम खेती-किसानी और अन्य जरूरतों के लिए निर्भर हैं, उनकी मौत की भी खबरें सामने आती हैं। गाय-भैंस और बैलों की मौत होने लगती है। दुग्ध उत्पादन प्रभावित होने लगता है, गरीब किसानों पर मौसम की मार सबसे ज्यादा पड़ती है। वजह यह है कि तेज धूप में लोग अपने पशुओं को बाहर निकालना नहीं चाहते। जिनके पशु बाहर रहते हैं, उन पर जोखिम भी सबसे ज्यादा मंडराता है।

गर्मी का असर फसलों की उत्पादन क्षमता पर भी पड़ता है। (Photo Credit: PTI)

GDP पर भी असर
किसानों के लिए खेतों में काम करना मुश्किल होने लगता है, कार्यक्षमता घटती है। श्रम मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 33 करोड़ से ज्यादा लोग, देश में ऐसे हैं, जो असंगठित क्षेत्र से आते हैं। वे काम करने के लिए खुले आसमान में मजबूर हैं, वह भी तब जब गर्मी में तापमान 49 डिग्री तक दिल्ली में ही पहुंच जाता है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर ऐसे ही गर्मी पड़ती रही तो इन दिनों में कामकाज ठप होने से 3 से 5 प्रतिशत तक जीडीपी को घाटा सहना पड़ेगा। मतलब साफ है कि देश के हर राज्य का अपना एक हीट एक्शन प्लान होना चाहिए, जिसके तहत ही सरकारें काम कराएं। 

अर्थव्यवस्था के लिए कितनी बुरी है गर्मी?
वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2030 तक श्रम घंटों की हानि से भारत की 2.5-4.5% जीडीपी जोखिम में है। कृषि में गेहूं, दूध और सब्जियों की पैदावार 15-20% घट सकती है, जिससे मंहगाई बढ़ सकती है। भारत के 75% श्रमिक बाहरी काम करते हैं। गर्मी की वजह से उनके काम करने के घंटे में 5.8% की कटौती करनी पड़ सकती है। बिजली की मांग बढ़ने और कोल्ड चेन की कमी से 13 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च भी बढ़ सकता है। अगर देश के पास बेहतर हीट एक्शन प्लान और ग्रीन कंस्ट्रक्शन होगा तो आने वाले दिनों में नुकसान कम से कम होगा। 

गर्मी में मिट्टी के बर्तनों को बेचती महिला। (Photo Credit: PTI)

भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को अपना हीट एक्शन प्लान बनाना चाहिए। बीते एक दशक में 23 से ज्यादा राज्यों के 140 से ज्यादा शहरों में हीट एक्शन प्लान तैयार किया गया है। दिल्ली जैसे शहरों के पास भी हीट ऐक्शन प्लान है। भारत हीटवेव को लेकर नेशनल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज एंड हम्युन हेल्थ को गंभीरता से लागू करने पर सोचना होगा। पर्यावरणविद पहले ही आगाह कर चुके हैं कि आने वाले दिनों में हीटवेव, महामारी की तरह अपना असर दिखाएगा।

असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए गर्मी ज्यादा खतरनाक है। (Photo Credit: PTI)

भारत में गर्मी से निपटने की योजनाओं में सुधार की जरूरत

भारत में गर्मी से बचाव के लिए कई राज्यों और शहरों में हीट एक्शन प्लान लागू हैं, लेकिन इनके बेहतर कार्यान्वयन की जरूरत है। इन योजनाओं में पांच अहम हिस्सों में बांटा जा सकता है, जैसे-

  • सही समय पर सही हीट अलर्ट जारी किया जाए, डे टू डे मॉनिटरिंग दुरुस्त हो
  • आम लोगों को गर्मी के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाए
  • ग्रामीण इलाकों तक मौसम विभाग की पहुंच हो, खतरे से आगाह किया जाए
  • स्वास्थ्य सेवाओं की तैयारी
  • पर्यावरण को सेहतमंद रखने के लिए प्रयास
  • गर्मी से होने वाली बीमारियों और मौतों का डेटा तैयार किया जाए

गर्मी से राहत की उम्मीद में नहाते लोग। (Photo Credit: PTI)

कैसे इन योजनाओं शुरू हो काम? 
पर्यावरणविदों का कहना है कि हर राज्य को स्थानीय जरूरतों के हिसाब से HAP को अपडेट करना चाहिए, जिसमें नमी और तापमान दोनों शामिल हों। गर्मी से होने वाली मौतों का सटीक डेटा जमा करना जरूरी है ताकि यह समझा जा सके कि कौन से इलाके और लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। दिन और रात के तापमान पर आधारित चेतावनी प्रणाली बनानी चाहिए। बेहतर इमारतें और शहरी ढांचे को बढ़ावा देना होगा, जिसमें वेंटिलेशन और 'ग्रीन रूफ' के तथ्य पर ध्यान दिया जाए।

गरीब इलाकों के लिए खास सलाह और गर्मी से बचने के लिए 'कूल शेल्टर' शुरू करने चाहिए। पीने के पानी और ORS की उपलब्धता अस्पतालों में तय की जानी चाहिए। असंगठित मजदूरों के लिए काम के घंटे घटाए जाएं, आर्थिक मदद दी जाए। गर्मी अब एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा में तब्दील हो गई है। आम जनता को केंद्र में रखकर बनाई गई नीतियां ही इसके दुष्प्रभावों से बचा सकती हैं।