विदेश मंत्री जयशंकर ने कश्मीर को लेकर संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी देशों को घेरा। दिल्ली में हो रहे रायसीना डायलॉग में जयशंकर ने कहा कि कश्मीर पर हुए 'हमले' को संयुक्त राष्ट्र ने 'विवाद' बना दिया।
जयशंकर ने कहा, 'दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे लंबे समय तक भारत के कश्मीर में किसी दूसरे देश का सबसे लंबे समय से अवैध कब्जा है। जब हम संयुक्त राष्ट्र गए तो इस 'हमले' को 'विवाद' में बदल दिया गया। हमलावर और पीड़ित को बराबर रखा गया। दोषी कौन थे? यूके, कनाडा, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका।'
इस बात को बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब जयशंकर ने कहा था कि 'PoK के मिलते ही कश्मीर का मुद्दा हल हो जाएगा।' उन्होंने कहा था, 'मुझे लगता है कि हम जिस हिस्से का इंतजार कर रहे हैं, वह उस हिस्से की वापसी है, जिसे पाकिस्तान ने चोरी से अपने पास रखा है। उस हिस्से के भारत में आते ही कश्मीर समस्या का हल हो जाएगा।'
जम्मू-कश्मीर का मुद्दा दशकों से भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद बना हुआ है। इसे लेकर दोनों मुल्कों के बीच 3 जंग हो चुकी है। सीमा पर आए दिन गोलीबारी भी होती रहती है। वैसे तो कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र ले जाने को लेकर सवाल उठाए जाते हैं। मगर शायद यह पहली बार है जब विदेश मंत्री जयशंकर ने कश्मीर को लेकर संयुक्त राष्ट्र के रवैये पर सवाल उठाए हैं।
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जब कश्मीर का मुद्दा पहुंचा संयुक्त राष्ट्र
जम्मू-कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सबसे पहले भारत ही लेकर गया था। हालांकि, इसकी शुरुआत पाकिस्तान की तरफ से हुई थी।
हुआ यह था कि बंटवारे के बाद जब पाकिस्तान बना तो कुछ ही महीनों बाद 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। ट्रकों में हजारों की तादाद में कबाइले कश्मीर में घुस आए। इन कबाइलियों को पाकिस्तानी सेना का समर्थन हासिल था। तब तक जम्मू-कश्मीर न तो भारत का हिस्सा था और न ही पाकिस्तान का। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने आजादी के वक्त आजाद रहने का ही फैसला लिया था।
हालांकि, जब हालात नहीं संभले तो राजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी और 27 अक्टूबर 1947 को विलय के दस्तावेज पर दस्तखत कर दिए। अगले दिन भारत ने अपनी सेना जम्मू-कश्मीर में उतार दी। हालांकि, तब तक पाकिस्तानी कबाइले कश्मीर के कई इलाकों को कब्जा चुके थे। भारतीय सेना ने इन कबाइलियों को खदेड़ना शुरू कर दिया। मगर हालात काबू में नहीं आ रहे थे। उस समय दिक्कत यह भी थी कि तब दोनों देशों की सेनाओं के प्रमुख अंग्रेज थे। ऐसे में गवर्नर जरनल माउंटबेटन की सलाह पर जवाहरलाल नेहरू कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र लेकर गए।

1 जनवरी 1948 को जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को लिखा, 'संयुक्त राष्ट्र के चार्टर 35 के तहत कोई भी सदस्य किसी भी ऐसी स्थिति को सुरक्षा परिषद के ध्यान में ला सकता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा होने की संभावना हो। ऐसी ही स्थिति अब भारत और पाकिस्तान के बीच आ गई है, क्योंकि आक्रमणकारी जम्मू-कश्मीर के खिलाफ ऑपरेशन के लिए पाकिस्तान से मदद ले रहे हैं। इसलिए भारत सरकार सुरक्षा परिषद से अनुरोध करती है कि वह पाकिस्तान से भारत के खिलाफ आक्रामकमता को तुरंत रोकने के लिए कहे।'
इसके बाद 15 जनवरी 1948 को पाकिस्तान ने UNSC को लिखी चिट्ठी में भारत के दावों को खारिज कर दिया। पाकिस्तान ने दावा किया कि भारत ने धोखे से महाराजा हरि सिंह से विलय के दस्तावेज पर दस्तखत करवा लिए। साथ ही यह भी दावा किया कि वहां के स्थानीय मुसलमान, आदिवासी लड़ाकों के साथ मिलकर भारत के शासन का विरोध कर रहे थे।
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संयुक्त राष्ट्र में फिर क्या हुआ?
भारत के अनरोध के बावजूद संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान से कुछ नहीं कहा। 17 जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव नंबर 38 लाया गया, जिसमें दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की गई।
तीन दिन बाद ही 20 जनवरी 1948 को प्रस्ताव नंबर 39 लाया गया। इस प्रस्ताव के तहत यूएन कमीशन फॉर इंडिया एंड पाकिस्तान (UNCIP) बनाया गया। इसका काम था कि वह ग्राउंड पर जाए, तथ्यों को जांचे और भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद को सुलझाने में मध्यस्थ की भूमिका निभाए।
मामला संयुक्त राष्ट्र में पहुंचने के बाद भी दोनों देशों के बीच शांति नहीं आई। उल्टा फरवरी में कश्मीर में बर्फ पिघलते ही जंग एक बार फिर तेज हो गई।
इस बीच 21 अप्रैल 1948 को UNSC में प्रस्ताव नंबर 47 आया। इस प्रस्ताव में तीन अहम बातें थीं। पहली- पाकिस्तान अपनी सेना और कबाइलों को कश्मीर से हटाए। दूसरी- भारत कश्मीर से अपनी सेना कम करे। और तीसरी- शांति होने पर जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह करवाया जाए।
फिर 3 जून 1948 को एक और प्रस्ताव नंबर 51 आया। इसमें UNCIP को जल्द से जल्द कश्मीर जाने को कहा गया, ताकि विवाद सुलझाया जा सके और जनमत संग्रह हो। अगस्त 1948 में UNCIP कश्मीर आया और दिसंबर में इसने अपनी रिपोर्ट UNSC को सौंपी। इसमें सीजफायर की बात थी। 1 जनवरी 1949 को भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर हुआ। हालांकि, इससे ही जम्मू-कश्मीर दो हिस्सों में बंट गया। क्योंकि सीजफायर में तय हुआ कि जिसके पास जितना कश्मीर है, उतना रहेगा। जितने हिस्से पर पाकिस्तान पर कब्जा कर लिया, उसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) कहा जाता है।
सीजफायर होने के बाद भी पाकिस्तान की सेना कश्मीर से गई नहीं थी, इसलिए भारत ने कभी भी वहां जनमत संग्रह नहीं करवाया।
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पाकिस्तान भी PoK को 'विदेशी क्षेत्र' मानता है
पाकिस्तान का कश्मीर के 78 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके पर अवैध कब्जा है। पाकिस्तान वैसे तो खूब दावा करता है लेकिन वह यह भी मानता है कि कश्मीर उसका नहीं है। भारत भी तो यही कहता है।
पाकिस्तान के संविधान में कहा गया है कि उसके क्षेत्र में बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वाह, पंजाब और सिंध प्रांत के साथ-साथ संघीय राजधानी होगी।
संविधान के अनुच्छेद 257 में कश्मीर का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है, 'जम्मू-कश्मीर तभी पाकिस्तान का हिस्सा होगा, जब यहां के लोग पाकिस्तान में शामिल होना चाहेंगे।'
इसके अलावा, पिछले साल एक मामले में इस्लामाबाद हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर कर पाकिस्तान की सरकार ने PoK को 'विदेशी क्षेत्र' माना था। PoK के कवि और पत्रकार अहमद फरहाद शाह को अदालत में पेश करने के आदेश पर पाकिस्तानी सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा, 'शाह को अदालत में पेश नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे PoK में पुलिस कस्टडी में हैं। PoK एक विदेशी क्षेत्र है, जिसका अपना संविधान है, अपनी अदालत है।' इस पर हाईकोर्ट ने सवाल किया था, 'जब PoK विदेशी क्षेत्र है तो पाकिस्तानी सेना वहां कैसे दाखिल हो सकती है?'
पाकिस्तानी सरकार के इस हलफनामे का जिक्र रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक रैली में भी किया था। पाकिस्तान एक तरफ PoK को विदेशी क्षेत्र मानता है और उस पर दावा भी करता है। जबकि, भारत साफ कर चुका है कि जम्मू-कश्मीर उसका अटूट हिस्सा था, है और रहेगा।