म्यांमार से भागकर मिजोरम आ रहे लोग, नए शरणार्थी संकट की वजह बन रहे हैं। भारत के लिए फ्री मूवमेंट रेजीम (FMR) घाटे का सौदा हो रहा है। सैन्य जुंटा और म्यांमार के तानाशाही विरोधी गुटों में भीषण संघर्ष चल रहा है। चिन राज्य में चिन नेशनल डिफेंस फोर्स (CNDF) और चिनलैंड डिफेंस फोर्स-हुआलंगोरम (CDF-H) के बीच हिंसक संघर्ष चल रहा है। सिर्फ जुलाई में ही करीब 4000 लोग, मिजोरम के चम्फाई जिले में शरण लेने आ पहुंचे। यह लड़ाई सैन्य संघर्ष से ज्यादा व्यापार के लिए है। 
चिन नेशनल डिफेंस फोर्स चाहता है कि उसका कब्जा फ्री मूवमेंट रेजीम के दायरे में आने इलाके में हो जाए, जिससे भारत के साथ पव्यापार करने की छूट मिल सके। भारत म्यांमार सीमा पर 16 किलोमीटर के दायरे तक, मुक्त आवाजाही है, विदेश होने के बाद भी वीजा और पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती है। भारत और म्यांमार के बीच आपसी सहमति से यह समझौता 2018 में 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' के तहत शुरू किया गया था। अब चिन नेशनल डिफेंस फोर्स ने चिनलैंड डिफेंस फोर्स हुआलंगोरम के शिविरों पर कब्जा कर लिया है।
गृहयुद्ध में क्यों जल रहा है म्यांमार?
म्यांमार का गृहयुद्ध साल 2021 में शुरू हुआ। उससे पहले भी म्यांमार का अतीत अच्छा नहीं रहा है। साल 2020 में म्यांमार में आम चुनाव हुए थे। आंग सान सू की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को बहुमत हासिल हुआ। सेना ने धोखाधड़ी के आरोप लगाए। विवाद इतना बढ़ा की वहां की सेना ने तख्तापलट कर दिया। 1 फरवरी 2021 वह तारीख थी, जब सेना के कमांडर इन चीफ मिन आंग ह्लाइंग ने आंग सान सू से सत्ता छीन ली। उन्होंने एक सैन्य जुंटा का गठन किया। आधिकारिक तौर पर इसे स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन काउंसिल कहा जाता है।  
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म्यांमार में सत्ता परिवर्तन का नतीजा यह हुआ कि हजारों लोग वहां से विस्थापित हुए भारत में शरण लेने आ पहुंचे। मिजोरम में सबसे ज्यादा शरणार्थी आई, वहज म्यांमार और मिजोरम के बीच 510 किलोमीटर लंबी सीमा पर बसे लोग 1968 में शुरू हुए फ्री मूवमेंट रिजीम के तहत 40 किलोमीटर तक बिना रोकटोक आवाजही कर सकते थे। साल 2004 में इसे 16 किलोमीटर तक सीमिति किया गया, साल 2024 में इसे 10 किलोमीटर तक कर दिया गया है। 
FMR रद्द होगा या नहीं, क्यों नहीं बन पा रही है बात?
पूर्वोत्तर के राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने फ्री मूवमेंट रिजीम पर पहले ही कहा है की म्यांमार से सटी सीमाएं, पूर्वोत्तर के लिए चुनौतियां बढ़ा रही हैं। साल 2024 में केंद्र सरकार ने एफएमआर को निलंबित करने का एलान भी किया लेकिन इसका जमीन पर असर नजर नहीं आया। 
विस्थापितों का सुरक्षित ठिकाना है मिजोरम
साल 2022 में बांग्लादेश के चटगांव हिल ट्रैक्ट्स से 2,000 बावम लोगों ने शरण ली। मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा भड़की तो कुकी और जो समुदाय के लोग मिजोरम भागकर पहुंचे। अभी मिजोरम में बांग्लादेश, म्यांमार और मणिपुर से आए 40,000 से अधिक शरणार्थी हैं।
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मिजोरम एक, शरणार्थी अनेक
- बांग्लादेश से आए बावनम समुदाय के शरणार्थी
- म्यांमार से आए चिन समुदाया के शरणार्थी
- मणिपुर से आए कूकी-जो समुदाय के शरणार्थी
मिजोरम की मुश्किलें क्या हैं?
साल 2011 में हुई जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि मिजोरम की आबादी करीब 11 लाख है। क्षेत्रफल 21081 वर्ग किलोमीटर में फैला है। सीमित संसाधनों वाले इस सूबे में बावन, कुकी जो और चिन समुदाय के लोगों की आमद ने मुश्किलें भी बढ़ाई हैं। कुकी और जो समुदाय के लोग तो हिंदुस्तानी हैं, उन्हें यहां सहूलियतें ज्यादा मिल जाती हैं लेकिन विदेशी मिजोरम पर बोझ बनते जा रहे हैं।
शरणार्थी संकट से कैसे उबर रहा है मिजोरम?
मानवीय आधार पर मिजो सरकार, स्थानीय लोगों और सिविल संगठनों ने शरणार्थियों को शरणार्थी शिविरों में रखा है, उनके खाने, रहने और सुरक्षा का प्रबंध किया है। यंग मिजो एसोसिएशन और मिजोरम के कुछ चर्च आगे आए हैं, वहां से राहत सामग्री भेजी जा रही है। मिजोरम, औद्योगिक राज्य नहीं है, कमाई के सीमित संसाधन हैं, ऐसे में  केंद्र सरकार की ओर से सिर्फ शरणार्थी संकट के लिए 8 करोड़ रुपये की मदद दी जा रही है। अब इसकी वजह से स्थानीय लोगों पर भार बढ़ रहा है। 
शरणार्थियों के जोखिम से कैसे बच रहा है मिजोरम?
मिजोरम से आए शरणार्थी, शरणार्थी हैं या अपराधी, इसे तय करना भी मिजोरम सरकार के लिए मुश्किल है। चम्फाई जिले के फरकान गांव प्रशासन ने शरणार्थियों को राहत शिविरों से बाहर न निकलने के आदेश जारी हुए थे। उनसे कहा गया था कि वे व्यापार न करें, शिविरों से बाहर न आएं। आइजोल के मेलथम और लॉन्गटाइल में भी ऐसे ही आदेश जारी किए गए हैं।
आइजोल के एक्टिविस्ट वीएल थलमुआनपुइया ने गृहमंत्री अमित शाह को एक चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने शरणार्थियों की अनियंत्रित आवाजाही को राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थानीय संसाधनों के लिए खतरा बताया था। खुद मुख्यमंत्री लालदुहावमा ने 10 मार्च 2025 को कहा था, 'हमें म्यांमार के अपने भाइयों का ख्याल रखना चाहिए, जिन्होंने 2021 में मिलिट्री शासन के बाद मिजोरम से शरण मांगी है, हमें मानवीय मदद भी करनी चाहिए लेकिन उनमें से कई अब वापस लौटना नहीं चाह रहे हैं। भले ही उनका गांव सीमा से साफ झलक रहा है। मेरा मानना है कि अब भारत और म्यांमार के बीच फ्री मूवमेंट सुरक्षित नहीं है।'
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शरणार्थियों के होने से खतरे क्या हैं?
भारत ने साल 1951 से संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। भारत में शरणार्थियों के लिए अभी तक कोई विशिष्ट कानून भी नहीं बना है। शरणार्थियों को विदेशी नागरिकों से संबंधित कानूनों के जरिए नियंत्रित किया जाता है। केंद्र सरकार ने म्यांमार सीमा पर शरणार्थी समस्या को लेकर कड़ा रुख अख्तियार किया है। मिजोरम के सीएम लालदुहावमा ने कहा है कि फ्री मूवमेंट रेजीम की वजह से FMR की वजह से मिजोरम में तस्करी की समस्या बढ़ रही है। कुछ शरणार्थी भारतीय कानूनों को उल्लंघन सीमा पर कर रहे हैं। 
समस्या का हल क्या है?
मिजोरम के सीएम लालदुहावमा के नेतृत्व वाली सरकार ने मिजोरम (मेंटेनेंस ऑफ हाउसहोल्ड रजिस्टर्स) बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए केंद्र के पास भेजा है। मिजो, कुकी, जो, बुवामा और चिन समुदाय के लोगों का ऐसा घालमेल हुआ है कि विदेशियों को पहचानना मुश्किल है। सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक तौर पर एक इन जनजातीय समुदायों में समानता है। सरकार का तर्क है कि अगर यह विधेयक कानून बनता है तो विदेशियों को पहचानना आसान होगा।
शांति के बाद भी गांव लौटने को तैयार नहीं म्यांमार के लोग
मिजोरम के चम्फाई जिले के जोखावथर और सैखमफाई में म्यांमार से आए करीब 3980 लोग ठहरे हैं। तियाउ नदी के पार गोलीबारी भी रुक गई है, फिर भी शरणार्थी अपने गांव खावमावी नहीं लौट रहे हैं। मिजोरम सरकार और स्थानीय सरकार मदद तो कर रहे हैं लेकिन शरणार्थियों का रुख संकट और बढ़ा रहा है। भारत जैसे रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों से परेशान है, ठीक वैसे ही मिजोरम में यह संकट गहरा रहा है।
