तिब्बत के शिगाजे शहर के निकट मंगलवार को 6.8 तीव्रता का भूकंप आया, जिसमें 126 लोगों की मौत हो गई और 188 घायल हुए। भूंकप का केंद्र डिंगरी काउंटी के त्सोगो कस्बे में था। शिगाजे, तिब्बत के पवित्र शहरों में से है और भारत की सीमा के भी करीब है। इस जोरदार भूकंप का असर नेपाल और बिहार के कुछ हिस्सों तक भी महसूस किए गए।

 

ऐसे में अगर अपने देश की बात करें तो भारत में भी हर साल सैकड़ों भूकंप आते हैं। कुछ हल्के तो कुछ मध्यम दर्जे के। कुछ तो जमीन को हिला कर रख देते है। ऐसे में भारतीय मानक ब्यूरो ने 5 भूकंप जोन बांटा है। इससे यह समझ आता है कि देश का 59 फीसदी हिस्सा भूकंप रिस्क जोन में है। देश में पांचवें जोन को सबसे अधिक खतरनाक और एक्टिव माना जाता है। इस जोन में आने वाले राज्यों और इलाकों में तबाही की आशंका सबसे अधिक रहती है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि अगर तिब्बत जैसा भूकंप भारत में आया तो कितने तैयार है हम? 

 

सबसे खतरनाक जोन पांचवां जोन

बताते चले की सबसे खतरनाक जोन पांचवां जोन है। इसमें जम्मू और कश्मीर का हिस्सा, हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा, उत्तराखंड का पूर्वी हिस्सा, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तरी बिहार का हिस्सा, भारत के सभी पूर्वोत्तर राज्य, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं। विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2050 तक भारत में करीब 20 करोड़ लोग भूंकप और तूफान की चपेट में आ सकते हैं। 

 

भारत में आया तो क्या?

ऐसे में कल्पना कीजिए की भारत में अगर इतने तेज भूकंप आए तो क्या होगा। यहां तो महज 5 तीव्रता की भूकंप आने से तबाही मच जाती है। दरअसल, भारत भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त है। पिछले कुछ सालों में देश ने कई भूकंप के झटके झेले हैं। बढ़ती आबादी को देखते हुए यह देश के लिए एक बड़ा खतरा हैं। 

 

जानकारों के मुताबिक, भारतीय उप महाद्वीप टेक्टोनिक प्लेट सीमा पर स्थित है। यहां धरती के नीचे की प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकराती है। यही टक्कर इस क्षेत्र में भयावह भूकंप की लगातार घटनाओं की बड़ी वजह भी है। हाल के सालों में देश में गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तराखंड जैसे राज्यों में कई बड़े भूकंप दर्ज किए गए हैं।

 

क्या कहता है नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी?

नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के अधिकारियों की राय में भारतीय शहरों में जिस तरीके से इमारतों का निर्माण किया जाता है, उसको देखते हुए यहां 7 की तीव्रता का भूकंप विनाशकारी साबित होगा। हजारों लोगों की जान जा सकती हैं और लाखों लोगों पर इसका असर हो सकता है। राजधानी दिल्ली जैसे शहरों में ज्यादा खतरा बना हुआ है। 

 

तिब्बत में इतने भूकंप क्यों आते है?

भूकंप के लिए अधिक संवेदनशील माने जाने वाले तिब्बत में पिछले साल कम से कम 3.0 तीव्रता वाले 100 से अधिक भूकंप आए। हालांकि, 7.0 और उससे अधिक तीव्रता वाले भूकंप कम हैं। दुनिया के सबसे एक्टिव भूकंपीय क्षेत्रों में से एक पर स्थित होने के कारण भारतीय टेक्टोनिक प्लेट हर साल लगभग 5 सेमी की दर से उत्तर की ओर यूरेशियन प्लेट को धकेलती है। इस हलचल से न केवल हिमालय के पहाड़ों को ऊपर उठाती है बल्कि धरती की सतह के नीचे अत्याधिक तनाव पैदा करती है। जब यह तनाव चट्टानों की ताकत से अधिक हो जाता है तो यह भूंकप का रूप ले लेता है। इसी वजह से नेपाल और उसके आस-पास के हिमालयी क्षेत्रों में भूकंप आते रहते है। भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव से बने हिमालय क्षेत्र में ऐसी भूकंपीय गतिविधि बहुत आम है। 

 

भारत कितना तैयार?

28 नवंबर, 2024 को केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में एक सवाल पर लिखित जवाब दिया, जब उनसे पूछा गया कि भारत में भूकंप को लेकर क्या कदम उठाए गए है? सिंह ने भूकंप के प्रमुख एजेंसी के बारे में जानकारी दी:

 

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): NDRF एक विशेष एजेंसी है जो भूकंप के दौरान खोज और बचाव अभियान चलाने के लिए ट्रेन होते है। भूंकप की बड़ी घटनाओं के बाद इस बल को तैनात किया जाता है।

 

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA): प्रत्येक राज्य में एक SDMA होता है जो आपदा प्रबंधन योजनाओं को बनाने और लागू करने के लिए जिम्मेदार होता है जिसमें विशिष्ट भूकंप प्रावधान शामिल होते हैं।

 

आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाएं: सरकार ने व्यापक आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाएं तैयार की हैं जो आपदा के दौरान विभिन्न एजेंसियों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को रेखांकित करती हैं।

 

NDRF कितनी मजबूत?

NDRF की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, वर्तमान में, NDRF में CAPF से ली गई 16 बटालियन शामिल हैं- BSF, CISF, सीआरपीएफ, ITBP, SSB और असम राइफल्स। प्रत्येक बटालियन में 18 आत्मनिर्भर विशेष खोज और बचाव दल हैं, जिनमें से प्रत्येक में 47 सदस्य हैं, जिनमें संरचनात्मक इंजीनियर, तकनीशियन, इलेक्ट्रीशियन और चिकित्सा/पैरामेडिक कर्मी शामिल हैं। कुल 1,149 कर्मियों वाली बटालियन की ताकत है। सभी 16 यूनिट किसी भी प्रकार की प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं से निपटने के लिए अच्छे से ट्रेन है। 

 

NDRF के पास क्या टेक्नोलॉजी

NDRF भूकंप और अन्य आपदाओं में कई तरह की तकनीकों का इस्तेमाल करता है, जिनमें शामिल हैं:

 

नेत्रा


एक हल्का, पोर्टेबल ड्रोन जिसमें हाई-रिज़ॉल्यूशन कैमरा है जो 500 मीटर दूर से मानवीय गतिविधि की पहचान कर सकता है। नेत्रा रात के ऑपरेशन के लिए एक थर्मल कैमरा भी ले जा सकता है।


ऑटो-पायलट


ड्रोन की उड़ान और नेविगेशन को ऑन-बोर्ड ऑटो-पायलट द्वारा नियंत्रित किया जाता है, इसलिए इसका इस्तेमाल करने वाले को इनपुट देने की जरूरत नहीं होती है।


वे पॉइंट नेविगेशन


यूजर एक स्पेसिफाई लोकेशन को टारगेट करता है और ड्रोन ऑटोमेटिकिली वहां उड़ जाता है।


वायरलेस ट्रांसमीटर


ड्रोन निगरानी के लिए लैपटॉप पर 5 किलोमीटर के दायरे में चीजों का लाइव वीडियो फीड भेज सकता है। NDRF एक विशेष एजेंसी है जो भूकंप के दौरान खोज और बचाव अभियान चलाने के लिए ट्रेन होती है। NDRF की 2011 की जापान ट्रिपल आपदा, 2015 के नेपाल भूकंप और 2023 के तुर्किये भूकंप सहित प्रमुख आपदाओं में अहम भूमिका निभाने की तारीफ होती है।

भूकंप के बाद एनडीआरएफ कैसे काम करता है?

भूकंप के बाद, NDRF बचाव अभियान चलाने, मलबे में फंसे लोगों की तलाश करने, चिकित्सा सहायता प्रदान करने और आवश्यक राहत आपूर्ति प्रदान करने के लिए प्रभावित क्षेत्र में टीमों को तेजी से तैनात करता है। भूकंप के बाद NDRF क्या करती है:

 

भूकंप के बारे में सूचना मिलने पर, NDRF की टीमें तुरंत एक्टिव हो जाती हैं और विशेष उपकरणों और कर्मियों के साथ आपदा स्थल पर टीम भेज दी जाती हैं।

 

खोज और बचाव:  खोज और बचाव टीमों का उपयोग करके ढह गई संरचनाओं के नीचे फंसे लोगों का पता लगाना और उन्हें निकालना।

 

चिकित्सा सहायता: NDRF टीमों में घायल व्यक्तियों को मौके पर तत्काल प्राथमिक उपचार और चिकित्सा उपचार प्रदान करने के लिए चिकित्सा कर्मी शामिल होते हैं।

 

क्षति का आकलन: एक बार प्रारंभिक बचाव अभियान शुरू हो जाने के बाद, NDRF की टीमें आगे की प्रतिक्रिया को प्राथमिकता देने के लिए बुनियादी ढांचे और महत्वपूर्ण सुविधाओं को हुए नुकसान का आकलन करती हैं।

 

राहत वितरण: एनडीआरएफ प्रभावित समुदायों को भोजन, पानी, टेंट, कंबल और स्वच्छता किट जैसी आवश्यक आपूर्ति वितरित करने में सहायता करता है।


राष्ट्रीय कवरेज
एनडीआरएफ के पास किसी भी आपदा क्षेत्र में तेजी से तैनाती सुनिश्चित करने के लिए पूरे भारत में रणनीतिक रूप से स्थित कई बटालियन हैं।