शिक्षा मंत्रालय द्वारा किए गए एक इंटनल ऑडिट में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। ऑडिट में पाया गया कि भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) में लगभग 5 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताएं की गई हैं। इसके बाद सरकार ने 10 अधिकारियों को चिह्नित किया है जिस पर कार्रवाई करने की तैयारी हो रही है। इन दस अधिकारियों में आईसीएचआर के पूर्व सदस्य-सचिव उमेश अशोक कदम भी शामिल हैं, जो वर्तमान में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में प्रोफेसर हैं।

 

दि इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक मंत्रालय ने 5 मार्च को ICHR को पत्र लिखा था, जिसमें एक लोकपाल की एक शिकायत का हवाला देते हुए वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाया गया था और इसमें अप्रैल 2021 से मार्च 2023 की अवधि के लिए किए गए एक विशेष ऑडिट के बाद उसकी रिपोर्ट का जिक्र किया गया था। इस रिपोर्ट में अगस्त 2022 में कदम के द्वारा नियमों की अनदेखी करते हुए गलत तरीके से खर्च करने की बात कही गई है।

 

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‘ICHR को भेजा जवाब’

कदम ने अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले मई 2023 में 10 महीने से भी कम समय में इस्तीफा दे दिया और वर्तमान में अपने मूल संस्थान जेएनयू में ऐतिहासिक अध्ययन केंद्र में वापस आ गए हैं। दि इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उन्होंने किसी भी गलत काम से इनकार किया और कहा कि उन्होंने ‘आईसीएचआर को सभी... (अपने) जवाब दे दिए हैं’।

 

यह संभवतः पहला मामला है जब आईसीएचआर में इस पैमाने की वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया है।

 

पता चला है कि शिक्षा मंत्रालय ने आईसीएचआर से मंत्रालय के विजिलेंस डिवीजन को फर्स्ट स्टेज एडवाइस (एफएसए) पेश करने को कहा है। इसका मतलब यह है कि आईसीएचआर को ऑडिट में मिले तथ्यों को रिव्यू करने और अपने विचारो को शेयर करने के लिए कहा गया है।

 

क्या हैं आरोप

ऐसा माना जा रहा है कि परिषद ने रिपोर्ट से सहमति जताते हुए जवाब लिखा है, जिसमें कहा गया है:

 

-  जेएनयू के स्वामित्व वाली आईसीएचआर की इमारत की अनाधिकृत रूप से 2.55 करोड़ रुपये की लागत से मरम्मत की गई। ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, यह रिनोवेशन आईसीएचआर के चेयरमैन से स्वीकृति प्राप्त किए बिना और संपत्ति के मालिक के रूप में जेएनयू से अनुमति लिए बिना किए गए थे। ऑडिट ने यह भी उजागर किया कि इस्टीमेट और रेट एक ही ठेकेदार से प्राप्त किए गए थे, और बिना किसी बिडिंग या रेट्स को कॉम्पटीटिव बनाने पर विचार किए उसी ठेकेदार को ठेका दे दिया गया।



- रिपोर्ट में अगली बात कही गई है कि ‘भारत, लोकतंत्र की जननी’ नाम की किताब के बारे में है, जिसका लोकार्पण नवंबर 2022 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री द्वारा किया गया था। पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इस किताब की एक प्रति एक महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भेंट की गई थी। ऑडिट में पाया गया कि आईसीएचआर ने 1,000 प्रतियां 2,500 रुपये प्रति (कुल 25 लाख रुपये) में खरीदीं, जबकि एक पुस्तक की कीमत अतार्किक रूप से 5,000 रुपये रखी गई थी। आईसीएचआर के स्टोर में लगभग 900 प्रतियां बिना बिके पड़ी रह गईं।


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40 लाख की प्रदर्शनी

ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है, ‘प्रिंटिंग/बाइंडिंग घटिया स्तर की है। इस वॉल्यूम की कीमत 700 से 800 रुपये प्रति कॉपी से अधिक नहीं हो सकती थी।’ इसी तरह, परिषद की मंजूरी के बिना 40.86 लाख रुपये की लागत से ‘ग्लोरी ऑफ मिडवल इंडिया’ नाम की एक प्रदर्शनी आयोजित की गई थी। ऑडिट में पाया गया कि लागत पिछली प्रदर्शनियों (15 लाख रुपये) की तुलना में काफी अधिक थी। इसके लिए 75% भुगतान बिना किसी सेफगार्ड के एडवॉन्स में कर दिए गए थे। साथ ही इसके लिए भी कोई कॉम्पटीटिव टेंडरिंग नहीं की गई थी।

 

100 प्रतिशत एडवॉन्स

- ऑडिट में अन्य भी कई गड़बड़ियां पाई गईं। जैसे कि इसमें कहा गया कि पर्याप्त इन्वेंट्री होने के बावजूद 81,300 रुपये प्रति लैपटॉप की दर से 15 लैपटॉप की खरीद की गई। इनमें से 13 लैपटॉप उप सचिव के पद से नीचे के रैंक के अधिकारियों को ईश्यू किए गए थे जो इसके लिए पात्र ही नहीं थे। इसके अलावा 37.05 लाख रुपये की लागत वाली छह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सिस्टम की खरीद की गई। इसके लिए भी उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और 100 प्रतिशत भुगतान एडवॉन्स में कर दिया गया, जो कि जीएफआर नियमों के खिलाफ है।

 

- कुल मिलाकर, देखा जाए तो ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक पैसों को लेकर नियमों के उल्लंघन का पूरा पैटर्न दिखता है जिसमें अपेक्षित अधिकारी से स्वीकृति प्राप्त न करना, 70-100% तक का एडवॉन्स दे देना जबकि नियमों के मुताबिक अधिकतम 30 प्रतिशत तक का ही एडवॉन्स दिया जा सकता है, इत्यादि शामिल हैं। साथ बिडिंग प्रोसेस को भी नहीं अपनाया गया।


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हालांकि इस मामले में किसी भी तरह की गड़बड़ी से इनकार करते हुए कदम ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा: ‘मैंने आईसीएचआर को अपने सभी जवाब दे दिए हैं। लेकिन सब कुछ कागजों और फाइलों में है। सभी निर्णय परिषद द्वारा पारित किए गए थे। मैं सिर्फ सदस्य सचिव था और निकाय (आईसीएचआर) में अन्य निदेशक भी हैं।’