बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत मामले में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट सबमिट कर दिया है। सीबीआई ने एक्टर के मौत के मामले में किसी भी गड़बड़ी की आशंका से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही जांच एजेंसी ने एक्ट्रेस रिया चक्रवती और उनके परिवार को भी क्लीन चिट दे दी है।
इस पूरे मामले में रिया के वकील सतीश मानशिंदे की भी प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने सीबीआई का धन्यवाद किया और कहा कि रिया का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल, रिया चक्रवती का नाम तब सुर्खियों में आया जब सुशांत की मौत के मामले में उन्हें ड्रग्स केस और अन्य आरोपों का सामना करना पड़ा। अब जब इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर हो गई है तो यह जानना जरूरी है कि क्या इससे मामला पूरी तरह खत्म हो जाता है? इसे जानने से पहले आइये समझें की आखिर क्लोजर रिपोर्ट होती क्या है?
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क्या है क्लोजर रिपोर्ट?
क्लोजर रिपोर्ट तब दायर की जाती है जब पुलिस या जांच एजेंसी को किसी केस में पर्याप्त सबूत नहीं मिलते और वे जांच को बंद करना चाहते हैं। इसका मतलब होता है कि पुलिस ने मामले में कोई अपराध साबित करने योग्य नहीं पाया और अब इसे आगे नहीं बढ़ाना चाहती। हालांकि, क्लोजर रिपोर्ट से केस पूरी तरह खत्म नहीं होता। केस को दोबारा खोला जा सकता है।
क्या क्लोजर रिपोर्ट के बाद केस दोबारा खुल सकता है?
मजिस्ट्रेट के पास अधिकार होता है कि वह इस रिपोर्ट को स्वीकार करे या अस्वीकार करे। अगर शिकायतकर्ता या कोई अन्य पक्ष संतुष्ट नहीं होता, तो वे अदालत से केस फिर से खोलने की अपील कर सकते हैं। वहीं, अगर नए सबूत मिलते हैं तो पुलिस या कोर्ट फिर से जांच के आदेश दे सकते हैं।
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रिया चक्रवर्ती के मामले में क्या हुआ?
अगर रिया के खिलाफ क्लोजर रिपोर्ट दायर हुई है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे पूरी तरह से बरी हो गई हैं। केस दोबारा खुल सकता है अगर कोई नया सबूत या गवाह सामने आता है। आसान भाषा में समझें तो सीबीआई ने सुशांत केस में क्लोजर रिपोर्ट इसलिए सबमिट किया क्योंकि मामले को लेकर कोई पर्याप्त सबूत नहीं मिले थे।
ऐसे केस जिसमें क्लोजर रिपोर्ट के बावजूद खत्म नहीं हुआ मामला
क्लोजर रिपोर्ट के बावजूद कई मामलों में कानूनी कार्यवाही खत्म नहीं होती, खासकर तब जब अदालत या शिकायतकर्ता इसकी दोबारा से जांच की मांग करते हैं। इसके कुछ फेमस उदाहरण हैं:
आरुषि तलवार हत्याकांड (2008)
सीबीआई ने पहले क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और ट्रायल जारी रहा।
सिसोदिया शराब घोटाला मामला (2023)
कई बार जांच एजेंसियां क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करती आई हैं लेकिन अदालत ने इसे अस्वीकार कर जांच जारी रखने का आदेश दिया।
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जलियांवाला बाग केस (1919-2021)
ऐतिहासिक मामलों में भी क्लोजर रिपोर्ट के बावजूद नए सबूत सामने आने पर केस फिर से खोले जाते हैं।
हेमंत करकरे मालेगांव ब्लास्ट केस (2008)
कई बार राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में क्लोजर रिपोर्ट होने के बावजूद नए सबूतों के आधार पर जांच जारी रहती है।
फर्जी एनकाउंटर केस (इशरत जहां, सोहराबुद्दीन, 2004-2005)
अदालत क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार करने के बजाय नए पहलुओं की जांच के लिए केस को पुनः खोलने का आदेश देती हैं।