भारत वैश्विक व्यापार के नक्शे पर लगातार अपने कद को बढ़ा रहा है। हाल ही में जिस ऐतिहासिक समझौते पर दुनिया की निगाहें टिकी हैं, वह है भारत और यूरोप के चार छोटे लेकिन बेहद विकसित देशों के बीच हुआ TEPA यानी Trade and Economic Partnership Agreement। 13 जुलाई 2025 को स्विट्ज़रलैंड की संसद द्वारा इस समझौते को औपचारिक रूप से स्वीकृति मिलने के बाद यह पक्का हो गया कि यह बहुप्रतीक्षित समझौता अब अक्टूबर 2025 से लागू हो जाएगा। TEPA को भारत और EFTA (European Free Trade Association) देशों के बीच का पहला पूर्ण व्यापार समझौता माना जा रहा है, जिसमें भारत को आगामी 15 वर्षों में 100 अरब डॉलर से अधिक निवेश और लगभग 10 लाख प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार मिलने की संभावना है। इस समझौते को पूरा होने में करीब 16 वर्षों का समय लगा है, लेकिन इसका परिणाम भारत के आर्थिक परिदृश्य में एक स्थायी छाप छोड़ सकता है।
EFTA देशों में स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टाइन शामिल हैं। ये देश आकार में छोटे हैं, लेकिन आर्थिक और तकनीकी मामलों में काफी आगे हैं। उनके पास पूंजी है, तकनीक है, और वैश्विक बाजार तक पहुंचने की तीव्र इच्छा है। वहीं भारत के पास विशाल बाज़ार, कुशल श्रमशक्ति और नीतिगत स्थिरता है। इन दोनों पक्षों की ज़रूरतें एक-दूसरे को पूरक बनाती हैं और यही इस समझौते की सबसे बड़ी ताक़त है। यह सिर्फ एक व्यापारिक करार नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी है जो भारत को वैश्विक निवेश और विनिर्माण का केंद्र बनाने की दिशा में एक और क़दम है।
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TEPA क्या है?
TEPA यानी Trade and Economic Partnership Agreement एक स्वतंत्र व्यापार समझौता है जो भारत और EFTA देशों के बीच हुआ है। इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को आसान बनाना, शुल्कों में कटौती, बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा, सरकारी खरीद, सेवाओं और व्यापारिक मानकों को वैश्विक स्तर पर समरूप बनाना है। यह समझौता भारत के लिए विशेष इसलिए भी है क्योंकि यह उसके पहले प्रमुख FTA में से एक है जिसमें वह पूरी तरह से विकसित देशों से बात कर रहा है — और वह भी अपनी शर्तों पर।
EFTA क्या है?
EFTA की शुरुआत 1960 में की गई थी, और इसमें वर्तमान में चार देश शामिल हैं: स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टाइन। ये देश यूरोपीय संघ (EU) का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उन्होंने अपने-अपने व्यापारिक हितों के लिए एक अलग ब्लॉक बनाया है। EFTA का मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर व्यापारिक समझौते करना और निवेश को बढ़ावा देना है। आज EFTA ने कई देशों के साथ FTAs किए हैं, लेकिन भारत जैसा विशाल और उभरता हुआ बाज़ार उसके लिए एक अनोखा और रणनीतिक साझेदार है।
यही चार देश क्यों?
EFTA के ये चारों देश अत्यंत विकसित, तकनीकी रूप से संपन्न और राजनीतिक रूप से स्थिर हैं। स्विट्ज़रलैंड फार्मा, घड़ी उद्योग, बैंकिंग और हाई-टेक इंजीनियरिंग के लिए विश्व प्रसिद्ध है। नॉर्वे ग्रीन एनर्जी, मरीन इंजीनियरिंग और ऑयल सेक्टर में अग्रणी है। आइसलैंड डेटा सेंटर और जियो थर्मल ऊर्जा के क्षेत्र में खास है, जबकि लिकटेंस्टाइन एक वैश्विक फाइनेंशियल सेंटर माना जाता है।
भारत के लिए ये देश इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये वैश्विक निवेशक हैं लेकिन उनका घरेलू बाज़ार सीमित है। इसलिए वे भारत जैसे विशाल उपभोक्ता देश में निवेश करने के लिए उत्सुक हैं। भारत ने भी जानबूझकर इस समझौते को यूरोपीय संघ से पहले EFTA के साथ प्राथमिकता दी क्योंकि यहां राजनीतिक सहमति जल्दी बन सकती थी और भारत को अपनी शर्तों पर सहयोग मिलने की संभावना ज़्यादा थी।
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किन सेक्टर में मिलेगा लाभ?
TEPA समझौते से भारत को कई क्षेत्रों में लाभ होगा। सबसे पहले बात करें मैन्युफैक्चरिंग की, तो स्विट्ज़रलैंड और नॉर्वे की कंपनियां भारत में उच्च गुणवत्ता वाली मशीनरी, मेडिकल उपकरण, फार्मा मटीरियल और इंजीनियरिंग सामान का निर्माण करना चाहती हैं। इससे भारत में स्थानीय उत्पादन बढ़ेगा और ‘मेक इन इंडिया’ को सीधा लाभ मिलेगा।
दूसरा बड़ा क्षेत्र है फार्मास्युटिकल्स। भारत की जेनेरिक दवा कंपनियां स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों के साथ तकनीकी साझेदारी कर सकती हैं। वहीं, पेटेंट और बौद्धिक संपदा नियमों में पारदर्शिता आने से भारतीय कंपनियों को EFTA देशों के बाज़ार में सीधे प्रवेश का रास्ता मिलेगा।
तीसरा अहम क्षेत्र है ग्रीन एनर्जी। नॉर्वे और आइसलैंड जैसे देश सोलर और विंड प्रोजेक्ट्स में निवेश कर सकते हैं। इससे भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को बल मिलेगा।
इसके अलावा घड़ी, चॉकलेट, प्रीमियम इलेक्ट्रॉनिक्स, फाइनेंशियल सर्विसेज और हाई-टेक सर्विस इंडस्ट्रीज़ में भी भारत और EFTA के बीच सहयोग की संभावना है।
10 लाख नौकरी का गणित?
यह TEPA समझौते की सबसे आकर्षक घोषणा है कि इससे भारत में आगामी वर्षों में 10 लाख से अधिक नौकरियों के सृजित होने की बात कही जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि यह कैसे होगा?
सरकारी आंकड़ों और NITI Aayog के अनुसार, हर 1 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) औसतन 1.5 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित करता है। चूंकि TEPA के तहत अगले 15 वर्षों में भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश संभावित है, इसलिए इससे लगभग 15 लाख रोजगार सैद्धांतिक रूप से संभव हैं। हालांकि सरकार ने 10 लाख का अनुमान रखा है।
किन क्षेत्रों में मिलेगी नौकरी
1. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर: लगभग 35–40% रोजगार मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में आएंगे, जैसे ऑटो पार्ट्स, मेडिकल डिवाइसेज़, फार्मा मटीरियल और इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स। इस सेक्टर में 4–5 लाख नौकरियों के सृजित होने की संभावना है।
2. सेवा क्षेत्र: IT, फाइनेंस, डिज़ाइन, कंसल्टेंसी, और R&D में 2–3 लाख नौकरियों के सृजन की संभावना है, क्योंकि EFTA देशों की कंपनियां भारत में इन सेवाओं के लिए अपना ग्लोबल बैक-ऑफिस बनाएंगी।
3. ग्रीन एनर्जी और इंफ्रास्ट्रक्चर: सोलर, विंड और हाइड्रो सेक्टर में निवेश से लगभग 1–1.5 लाख नौकरियां पैदा हो सकती हैं, खासकर इंजीनियरिंग, प्लांट ऑपरेशंस और टर्नकी प्रोजेक्ट्स में।
4. लॉजिस्टिक्स, सप्लाई चेन और अप्रत्यक्ष नौकरियां: उत्पादन और सेवाओं से जुड़ी सप्लाई चेन, वेयरहाउसिंग, कूरियर, ट्रांसपोर्ट आदि में 2–3 लाख अप्रत्यक्ष रोजगार बन सकते हैं।
5. स्किल डेवेलपमेंट और ट्रेनिंग: नई नौकरियों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण संस्थानों और जॉइंट स्किल प्रोग्राम्स में भी हजारों रोजगार सृजित होंगे।
कृषि और डेयरी हैं ‘सेन्सिटिव सेक्टर’
भारत ने इस समझौते में एक अहम बिंदु पर कड़ा रुख अपनाया — वह था कृषि और डेयरी सेक्टर की सुरक्षा। भारत ने यह स्पष्ट किया कि वह यूरोप से सस्ते डेयरी प्रोडक्ट्स (जैसे चीज़, बटर, मिल्क पाउडर) को भारतीय बाज़ार में नहीं घुसने देगा ताकि भारत के छोटे किसानों और डेयरी उत्पादकों को नुकसान न हो। EFTA ने इस पर सहमति दी और समझौते में इन उत्पादों को ‘सेन्सिटिव सेक्टर’ घोषित किया गया।
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अन्य क्षेत्रों में भी संभावनाएं
TEPA समझौता सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है, यह एक दीर्घकालिक निवेश गठबंधन की बुनियाद है। आने वाले वर्षों में भारत और EFTA के बीच शिक्षा, डिजिटल ट्रांजेक्शन, स्टार्टअप सहयोग, साइबर सुरक्षा और साइंस रिसर्च जैसे क्षेत्रों में भी समझौते हो सकते हैं।
इस समझौते की सफलता को देखते हुए यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं को गति देगी।भारत–EFTA TEPA समझौता एक मील का पत्थर है। यह चार छोटे लेकिन शक्तिशाली देशों के साथ भारत का बड़ा गठबंधन है जो आने वाले वर्षों में भारत की औद्योगिक, निवेश और रोजगार संरचना को बदलने में काफी मददगार साबित हो सकता है।