भारत और फ्रांस के बीच 26 राफेल मरीन लड़ाकू विमान की खरीद की डील पर साइन हो गए हैं। इस दौरान भारतीय रक्षा सचिव आरके सिंह और नौसेना के वाइस चीफ वाइस एडमिरल के. स्वामीनाथ मौजूद रहे। 63 हजार करोड़ की इस डील को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने इसी महीने मंजूरी दी थी।
फ्रांस से 36 राफेल विमान खरीदने के बाद भारत की यह दूसरी बड़ी डील है। अब भारत नौसेना के लिए 26 राफेल मरीन लड़ाकू विमान खरीदने की डील कर रहा है। इसे लड़ाकू विमानों की सबसे बड़ी डील बताया जा रहा है। यह डील भारत सरकार और फ्रांस सरकार के बीच होगी। इससे पहले जब वायुसेना के लिए राफेल विमान खरीदे थे, तब वह सौदा भी भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुआ था।
इस सौदे में क्या-क्या होगा?
- लड़ाकू विमानः डील के तहत, फ्रांस से 26 राफेल मरीन जेट खरीदे जाएंगे। 22 सिंगल सीटर और 4 ट्विन सीटर विमान होंगे। ट्विन सीटर विमान आमतौर पर ट्रेनिंग के लिए होते हैं।
- फ्लीट मेंटेनेंस: समझौते में फ्लीट मेंटेनेंस की सुविधा भी मिलेगी। विमानों को ठीक रखने और रिपेयर करने का पूरा सिस्टम, जैसे टूल्स, पार्ट्स वगैरह भी मिलेंगे।
- लॉजिस्टिकल सपोर्ट: लड़ाकू विमान को ऑपरेट करने के लिए सभी जरूरी सामान भी मिलेगा। जैसे ईंधन, हथियार, और बाकी सप्लाई का इंतजाम।
- पर्सनल ट्रेनिंग: भारतीय नौसेना के पायलट्स और टेक्नीशियन्स को इन जेट्स को उड़ाने और मेंटेन करने की ट्रेनिंग भी दी जाएगी।
- मैन्युफैक्चरिंग: डील में 'ऑफसेट ऑब्लिगेशन' है, यानी फ्रांस की कंपनी को भारत में कुछ पार्ट्स बनाने होंगे। इससे भारत में डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा।
यह भी पढ़ें-- भारत-पाकिस्तान के उन 11 समझौतों की कहानी, जिनसे हटे तो होगा बुरा असर
कब तक मिलेंगे विमान?
डील साइन होने के करीब 5 साल बाद इन लड़ाकू विमानों की डिलिवरी शुरू हो जाएगी। इसका मतलब हुआ कि राफेल मरीन जेट 2030 तक भारत आ सकते हैं। इन विमानों को भारत के पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत पर तैनात किया जाएगा।

क्या खास है इन विमानों में?
अभी भारतीय वायुसेना के पास जो राफेल विमान है, राफेल मरीन उससे भी ज्यादा एडवांस्ड है। यह 4.5 जनरेशन के विमान हैं। राफेल मरीन का इंजन ज्यादा ताकतवर है। खास बात यह है कि विमान को लैंड करवाने के लिए ज्यादा जमीन की जरूरत भी नहीं पड़ती।
इसकी लंबाई 15.27 मीटर, चौड़ाई 10.80 मीटर और ऊंचाई 5.34 मीटर है। इसका वजन 10 टन है। हथियारों और मिसाइलों के साथ इसका वजन 24 टन तक पहुंच जाता है। यह करीब 2 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकता है। यह 50 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ता है।
इस विमान एंटी-शिप मिसाइल से लेकर लेजर गाइडेड बॉम्ब्स तक को तैनात किया जा सकता है। इस विमान से परमाणु हमला भी किया जा सकता है। यह विमान परमाणु मिसाइलें ले जाने में भी सक्षम हैं। इसकी एक खास बात यह भी है कि इसमें मिड-एयर रिफ्यूलिंग की सुविधा मिलती है। इसका मतलब हुआ कि राफेल मरीन को रिफ्यूलिंग के लिए जमीन पर आने की जरूरत नहीं है। हवा में ही इसमें फ्यूल भरा जा सकता है।
यह भी पढ़ें-- 1 नहीं 7 बार, भारत के हर भरोसे पर पाकिस्तान ने दिया जख्म
भारत को इससे क्या फायदा होगा?
इस विमान को भारतीय नौसेना के लिए खरीदा जा रहा है। इन विमानों को INS विक्रांत पर तैनात किया जाएगा। भारतीय नौसेना के पास अभी MiG-29K हैं, जो INS विक्रमादित्य पर तैनात हैं।
राफेल मरीन के आने से भारतीय नौसेना न सिर्फ मजबूत होगी, बल्कि हिंद महासागर में चीन से मिलने वाली चुनौती से भी निपटा जा सकेगा। हिंद महासागर में चीन से मुकाबला करने के लिए राफेल मरीन जैसे विमान की भारत को जरूरत भी है।

इन विमानों के आने से सिर्फ नौसेना ही नहीं, बल्कि वायुसेना की ताकत भी बढ़ेगी। दरअसल, राफेल विमानों में मिड-एयर रिफ्यूलिंग की सुविधा है। आमतौर पर हवा में विमान में फ्यूल भरने के लिए बड़े टैंकर वाले विमानों की जरूरत होती है। मगर इस डील से भारतीय वायुसेना के मौजूदा 'बडी-बडी' सिस्टम को बेहतर किया जा सकेगा। इस सिस्टम को करीब 10 विमानों में अपग्रेड किया जाएगा। इसके जरिए हवा में एक राफेल से दूसरे राफेल में हवा में ही फ्यूल भरा जा सकेगा। इसस विमानों की रेंज बढ़ सकती है। यानी, विमानों को बार-बार बेस पर नहीं लौटना होगा और उनकी दूरी और ताकत बढ़ जाएगी।
राफेल होने से हिंद महासागर में भारत की स्थिति भी मजबूत होगी। बीते कुछ साल में चीन ने हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बढ़ाई है। हिंद महासागर में दबदबा बनाने के लिए चीन ने श्रीलंका और मालदीव्स जैसे देशों में भारी निवेश किया है। चीन की नौसेना यहां अक्सर पेट्रोलिंग करती भी दिखती है। ऐसे में भारत की नौसेना का मजबूत होना काफी जरूरी है।
आने वाले सालों में नौसेना INS विक्रांत पर तेजस को तैनात करने की भी योजना बना रही है। इस विमान को DRDO बना रहा है और इसमें अभी 5-6 साल का वक्त लग सकता है।