भारत में पुलिस फोर्स में वैसे तो लाखों महिलाएं हैं लेकिन जैसे-जैसे पद बड़ा होता जाता है, महिलाओं की संख्या कम होती जाती है। बड़े पदों पर महिलाओं की गिनती सैकड़ों में ही सिमट जाती है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 ने इस हकीकत को एक बार फिर सामने रखा है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में एक भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ऐसा नहीं है जिसने पुलिस फोर्स में महिलाओं के लिए अपने खुद के आरक्षित कोटे को पूरा किया हो। इस रिपोर्ट में सामने आया है कि देश में 4940 IPS अधिकारियों में सिर्फ 615 महिला IPS अधिकारी हैं। नॉन IPS श्रेणी में कुल 11,406 पदों पर महिलाएं हैं।
टाटा ट्रस्ट की ओर से शुरू की गई इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 ने पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता में राज्यों के प्रदर्शन का आकलन किया है। इस तरह का आकलन करने वाली यह पहली रिपोर्ट है। इसी रिपोर्ट में सामने आया है कि पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका और पुलिस में महिलाओं की संख्या तो बढ़ी है लेकिन फिर भी वे संस्थाओं और निर्णय लेने के क्रम में निचले स्तर पर ही बनी हुई हैं। यह रिपोर्ट जनवरी 2023 तक के डेटा के आधार पर तैयार की गई है।
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सिर्फ 615 महिलाएं IPS अधिकारी
यह रिपोर्ट 2019 से जनवरी 2023 के डेटा के आधार पर तैयार की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर पुलिस में केवल 24,667 यानी 8 प्रतिशत महिला अधिकारी हैं। इनमें से 52 प्रतिशत सब-इंस्पेक्टर के पद पर हैं और 25 प्रतिशत ASI के पद पर हैं। कांस्टेबल स्तर पर कुल संख्या में महिलाओं की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 615 महिलाएं ही IPS अधिकारी हैं जो कुल संख्या का केवल 12 प्रतिशत है। भारत के पुलिस फोर्स के डीजी और एसपी जैसे बड़े पदों पर 1,000 से भी कम महिलाएं हैं। पुलिस फोर्स में काम कर रही सभी महिलाओं में से 90 प्रतिशत महिलाएं कांस्टेबल के पद पर काम कर रही हैं।
मध्य प्रदेश पुलिस में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी
इस रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश पुलिस में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। साथ ही, निर्णय लेने वाले बड़े पदों पर भी मध्य प्रदेश में देश के अन्य राज्यों की तुलना में अधिक महिलाएं हैं। देश में डिप्टी एसपी के कुल 11406 पदों में से 1003 पर महिलाएं हैं, जिनमें सबसे अधिक 133 मध्यप्रदेश में है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के 91 प्रतिशत थानों में महिला हेल्प डेस्क हैं।
दक्षिणी राज्यों का अच्छा प्रदर्शन
इस रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता दिलाने की व्यवस्था के लिहाज से कर्नाटक 18 बड़े और मध्यम राज्यों में सबसे ऊपर रहा। 2022 की रिपोर्ट में भी कर्नाटक पहले स्थान पर रहा था और इस बार भी कर्नाटक पहला स्थान प्राप्त करने में कामयाब रहा।
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हालांकि, तमाम कोशिशों के बावजूद देश में एक भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ऐसा नहीं है जिसने पुलिस फोर्स में महिलाओं के लिए अपने खुद के आरक्षित कोटे को पूरा किया हो। कर्नाटक के बाद इस रिपोर्ट में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु का स्थान रहा। दक्षिण भारत के 5 राज्यों ने सभी चार मापदंडो- पुलिस,न्यायपालिका,जेल और कानूनी सहायता पर अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।
महिला हेल्पडेस्क में बढ़ोतरी
इस रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 78 प्रतिशत पुलिस थानों में अब महिला हेल्प डेस्क हैं। 2021 में सिर्फ 59 प्रतिशत थानों में ही महिला हेल्पडेस्क थे जो 2023 में बढ़कर 78 प्रतिशत हो गई। हालांकि, सरकार की तरफ से लगातार कोशिश की जा रही है कि ये 100 प्रतिशत थानों में महिला हेल्प डेस्क हो। देश में 86 प्रतिशत जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा है और कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति खर्च 2019 से 2023 के बीच लगभग दोगुना हुआ है लेकिन अभी भी यह खर्च 6.46 रुपये तक ही पहुंच पाया है।
इस रिपोर्ट में न्यायपालिका को लेकर भी अहम जानकारी सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार 2019 से 2023 के बीच में जिला न्यायपालिका में महिलाओं की हिस्सेदारी भी बढ़कर 38 प्रतिशत हो गई है। हालांकि, न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या अभी भी बहुत कम है।
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इस रिपोर्ट में देश की न्याय व्यवस्था में गंभीर बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों की कमियों का पता चलता है। भारत में 10 लाख लोगों पर सिर्फ 15 जज हैं जबकि विधि आयोग के अनुसार, यह संख्या 50 होनी चाहिए। साथ ही, देश की जेलों की गंभीर हालत भी इस रिपोर्ट में सामने आई है। जेलों में क्षमता से अधिक भीड़ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर जेल अपनी क्षमता से औसतन 131 प्रतिशत ज्यादा भरी हुई हैं ।