दुनिया के लगभग सभी देश किसी न किसी स्तर पर सार्वजनिक ऋण (Public Debt) पर निर्भर हैं। यह ऋण सरकारों द्वारा विकास कार्यों, सामाजिक योजनाओं, रक्षा, स्वास्थ्य और आपातकालीन सहायता जैसी ज़रूरतों के लिए लिया जाता है। लेकिन सिर्फ ऋण का आकार यह तय नहीं करता कि किसी देश की अर्थव्यवस्था मजबूत है या कमजोर। उदाहरण के लिए, जापान पर उसकी जीडीपी का 255% कर्ज़ है, अमेरिका 123% के करीब है, चीन 91% और भारत करीब 83% पर है। वहीं पाकिस्तान, जिसका Debt-to-GDP अनुपात करीब 67% है, एक गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है, जबकि अमेरिका, चीन, जापान जैसे देश अपेक्षाकृत स्थिर हैं।
खबरगांव इस लेख में इसी बात का विश्लेषण करेगा कि यह विरोधाभासी स्थिति क्यों है और क्यों पाकिस्तान की हालत सबसे खराब है, जबकि अन्य बड़े अर्थव्यवस्था वाले देश उससे कहीं अधिक ऋण होने के बावजूद मजबूत स्थिति में हैं।
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कर्ज़ का आकार बनाम कर्ज़ की गुणवत्ता
ज्यादा ऋण यानी कि ढेर सारा ऋण किसी देश की अर्थव्यवस्था को तभी नुकसान पहुंचाता है जब उसकी चुकाने की क्षमता (repayment capacity) कमजोर हो। यह क्षमता निर्भर करती है उस देश की जीडीपी वृद्धि, मुद्रा की स्थिरता, विदेशी मुद्रा भंडार, राजनीतिक स्थिति, राजस्व को कलेक्ट करने के सिस्टम और वैश्विक संस्थाओं पर देश की विश्वसनीयता पर। उदाहरण के लिए, अमेरिका भले ही 35 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा कर्ज़ में डूबा हो, लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी है। डॉलर एक वैश्विक मुद्रा है और अमेरिका को कर्ज़ देने वाले देश जानते हैं कि उनकी रकम सुरक्षित है। यही बात भारत और चीन व जापान के बारे में भी लागू होती है। इन देशों की भी स्थिति वित्तीय रूप से काफी मजबूत है।
दूसरी ओर पाकिस्तान का ऋण आकार कम होने के बावजूद उसकी आंतरिक अर्थव्यवस्था डांवाडोल है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार कई बार केवल हफ्तों का आयात पूरा करने जितना ही रह जाता है। सरकारें बार-बार बदलती हैं, टैक्स आधार बहुत कमजोर है, और वैश्विक निवेशकों का भरोसा निरंतर गिरता रहा है। यही कारण है कि कम ऋण होने के बावजूद पाकिस्तान दिवालियेपन की कगार पर खड़ा है।
आंतरिक बनाम बाहरी ऋण
ऋण की एक महत्वपूर्ण विशेषता होती है कि वह आंतरिक (domestic) है या बाहरी (external)। भारत, जापान, चीन और अमेरिका जैसे देशों का अधिकांश ऋण घरेलू स्रोतों से है। भारत का लगभग 90% सार्वजनिक ऋण भारतीय बैंकों, बीमा कंपनियों और नागरिकों से लिया गया है। इसी तरह जापान का 92% से अधिक ऋण उसकी अपनी केंद्रीय बैंक, वित्तीय संस्थानों और पेंशन फंड्स के पास है। इससे इन देशों की ऋण चुकाने की विश्वसनीयता बनी रहती है क्योंकि उन्हें विदेशी मुद्रा की ज़रूरत नहीं होती।
जबकि पाकिस्तान के ऋण का एक बड़ा हिस्सा — लगभग 33% — बाहरी ऋण है, जो IMF, वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं और चीन व सऊदी अरब जैसे देशों से लिया गया है। इन ऋणों को डॉलर या अन्य मजबूत मुद्राओं में चुकाना होता है। जब देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार नहीं होता, तो वह डिफॉल्ट की स्थिति में आ जाता है। पाकिस्तान के साथ यही हो रहा है — वहां डॉलर की भारी कमी है, जिससे उसे IMF के आगे बार-बार झुकना पड़ता है।
ऋण का उपयोग
एक और अंतर है कि ऋण का इस्तेमाल कैसे और कहां किया जा रहा है। भारत सहित चीन, जापान और अमेरिका जैसे अन्य विकसित देशों ने अपने सार्वजनिक ऋण का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे में निवेश, सड़कें, रेलवे, स्वास्थ्य सेवा, डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों में किया है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को गति मिली है। चीन ने भी ऋण का भारी उपयोग शहरीकरण, हाई-स्पीड रेल और वैश्विक परियोजनाओं जैसे बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव में किया है।
जापान का ऋण उच्च सामाजिक सुरक्षा और वृद्धजन कल्याण योजनाओं में खर्च हो रहा है, जबकि अमेरिका में सार्वजनिक ऋण मुख्यतः रक्षा, हेल्थकेयर और वैज्ञानिक अनुसंधान में जाता है। इन निवेशों से इन देशों की अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन, उत्पादकता में वृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूती आई है।
इसके विपरीत, पाकिस्तान का एक बड़ा हिस्सा रक्षा खर्च, घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रम और आयात पर निर्भरता पूरी करने में चला गया है। वहां के इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में अपेक्षित निवेश नहीं हो पाया है। इसका परिणाम यह है कि ऋण से उत्पादकता नहीं बढ़ी, बल्कि ऋण चुकाने के लिए और ऋण लेना पड़ा।
मुद्रा की स्थिरता और FDI
भारत, अमेरिका, चीन और जापान की मुद्राएं तुलनात्मक रूप से स्थिर रही हैं। भारतीय रुपये ने भले ही डॉलर के मुकाबले समय-समय पर गिरावट देखी हो, लेकिन कुल मिलाकर मुद्रा की स्थिरता निवेशकों के भरोसे को बनाए रखती है। भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) और पोर्टफोलियो निवेश लगातार बढ़ रहे हैं।
दूसरी ओर पाकिस्तान की मुद्रा में तेज़ गिरावट हुई है। वर्ष 2022–24 के बीच पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले 40% से अधिक टूट चुका है। विदेशी निवेशकों ने अपने पैसे पाकिस्तान से निकालना शुरू कर दिया है। इसका सीधा असर यह हुआ कि पाकिस्तान को नया ऋण लेने के लिए ऊंची ब्याज दर चुकानी पड़ रही है। IMF की शर्तें कड़ी होती जा रही हैं और जनता पर महंगाई का भारी बोझ पड़ रहा है।
राजनीतिक स्थिरता और वैश्विक छवि
भारत, अमेरिका, चीन और जापान की एक बड़ी ताकत उनकी अपेक्षाकृत राजनीतिक स्थिरता है। भले ही इन देशों में वैचारिक मतभेद हों, लेकिन सरकारें नीतियों को लागू करने और आर्थिक योजनाओं को आगे बढ़ाने में सक्षम हैं। भारत में केंद्र और राज्य मिलकर योजनाएं चला रहे हैं। जापान में लंबे समय से निरंतर नीतिगत निर्णय लिए जा रहे हैं।
पाकिस्तान की सबसे बड़ी कमजोरियों में से एक है — राजनीतिक अस्थिरता। पिछले कुछ वर्षों में वहां बार-बार सरकारें बदली हैं, प्रधानमंत्री को हटाया गया है और सेना का हस्तक्षेप लगातार बना रहता है। ऐसी स्थिति में कोई दीर्घकालिक आर्थिक नीति बनाना मुश्किल हो जाता है, जिससे निवेशकों और ऋणदाताओं का भरोसा डगमगाता है।
रेवेन्यू कलेक्शन
ऋण सेवा लागत (Debt Servicing Cost) का अर्थ है — ऋण की किस्तों और ब्याज का भुगतान। भारत जैसे देश का टैक्स बेस बड़ा है। भारत का जीएसटी सिस्टम मजबूत होता जा रहा है, और टैक्स कलेक्शन में हर साल वृद्धि हो रही है, जिससे सरकार के पास ऋण चुकाने की बेहतर क्षमता है।
पाकिस्तान में टैक्स-जीडीपी अनुपात मात्र 9–10% के आसपास है, जो दुनिया में सबसे कम है। इसका मतलब है कि सरकार को आय कम हो रही है और ऋण चुकाने के लिए नए ऋण लेने पड़ रहे हैं। इससे ‘debt trap’ यानी कर्ज़ के जाल में फंसने की स्थिति बन जाती है।
संक्षेप में कहा जाए तो केवल कर्ज़ का अनुपात यह तय नहीं करता कि कोई देश संकट में है या नहीं। ऋण की संरचना, उपयोग, मुद्रा की स्थिरता, राजनीतिक माहौल, विदेशी मुद्रा भंडार, और राजस्व का कलेक्शन — ये सभी फैक्टर मिलकर किसी देश की ऋण प्रबंधन क्षमता (Debt Management Capacity) को तय करते हैं।
भारत, जापान, अमेरिका और चीन अपने भारी ऋण के बावजूद स्थिर इसीलिए हैं क्योंकि उनके पास उसे संभालने की क्षमता है, प्लानिंग है, और वैश्विक आर्थिक प्रणाली में उनका भरोसा बना हुआ है। वहीं पाकिस्तान की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसके पास संसाधन सीमित हैं, नीतिगत निरंतरता नहीं है और जनता पर बोझ बढ़ता जा रहा है।