जब किसी बाजार को एक ही कंपनी नियंत्रित करने लगे तो उसे 'मोनोपोली' कहा जाता है। अर्थशास्त्र में हम सबने यही पढ़ा है। कमोबेश 'मोनोपोली' जैसा ही एक उदाहरण तब देखने को मिला जब इंडिगो एयरलाइंस की उड़ानें धड़ाधड़ रद्द होने लगीं। जो उड़ानें उड़ी भीं, उन्होंने भी कई घंटों तक इंतजार करवाया। हजारों यात्री 12-12 घंटों तक एयरपोर्ट पर फंसे रहे। कोई शादी में जा रहा था तो किसी का एग्जाम था। एयरपोर्ट पर यात्रियों की भीड़ इस तरह थी, जिस तरह त्योहारी सीजन में रेलवे स्टेशनों पर दिखाई देती है।
इंडिगो में 1 दिसंबर से यह संकट शुरू हुआ था। तब से अब तक 4 हजार से ज्यादा उड़ानें रद्द की गईं। बताया जा रहा है कि भारत की एविएशन इंडस्ट्री में इस तरह का संकट पहली बार देखने को मिला।
सरकार हरकत में आई। उसने इंडिगो पर ऐक्शन भी लिया लेकिन आखिरकार फ्लाइट ड्यूटी (FDTL) से जुड़े उन नियमों को वापस ले लिया, जिनका बहाना इंडिगो मार रही थी। तमाम एविएशन एक्सपर्ट ने इसे इंडिगो की 'ब्लैकमेलिंग' बताया।
कइयों ने कहा कि अगर बाजार में इंडिगो की 'मोनोपोली' नहीं होती तो शायद ये सब नहीं होता। वह इसलिए क्योंकि फ्लाइट ड्यूटी से जुड़े जिन नियमों का हवाला दिया जा रहा था, वह अचानक से नहीं आए थे। जनवरी 2024 में ही नोटिफाई हो गए थे। पिछले साल ही लागू किए जाने थे लेकिन एयरलाइन कंपनियों की तरफ से समय मांगे जाने के बाद इन्हें टाला गया। फिर तय हुआ कि उन्हें दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहला चरण इस साल जुलाई में लागू किया और दूसरा चरण 1 नवंबर से। कुल मिलाकर समय काफी था, फिर भी इस तरह के हालात बने।
क्यों बने इस तरह के हालात?
इंडिगो संकट को लेकर जब दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई हुई तो चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेदेला की बेंच ने केंद्र सरकार से पूछा- 'सवाल यह है कि आखिर यह संकट क्यों पैदा हुआ और आप क्या कर रहे थे?'
केंद्र सरकार और DGCA की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने बताया कि इंडिगो के खिलाफ ऐक्शन लिया गया है। कारण बताओ नोटिस भी भेजा गया है। कंपनी ने माफी भी मांगी है। उन्होंने कहा कि FDTL नियमों को लागू करने के लिए बार-बार समय दिया गया और जब 1 नवंबर की डेडलाइन आई तो बाकी एयरलाइन कंपनियों ने इसे माना लेकिन इंडिगो ने नहीं।
कोर्ट ने पूछा कि जब इंडिगो 1 नवंबर तक नियम लागू नहीं कर पाई तो सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की? कोर्ट ने कहा कि 'क्या सरकार लाचार थी?'
सवाल यही उठ रहे हैं कि जब दो साल का वक्त था, तब भी इस तरह के हालात क्यों बने? फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स ने 4 दिसंबर को न्यूज एजेंसी PTI से कहा, 'FDTL नियमों को पूरी तरह लागू करने से पहले दो साल का समय था। इसके बावजूद एयरलाइन ने बिना किसी वजह की पायलटों की भर्तियां नहीं कीं।'

क्या इंडिगो ने नहीं की पायलटों की भर्ती?
सवाल उठ रहे हैं कि इंडिगो ने जानबूझकर इस तरह के हालात बनाए और यात्रियों को परेशान किया, ताकि सरकार झुके और उसे छूट मिले। हुआ भी ऐसा ही। सरकार ने नियमों को लागू करने पर रोक लगा दी।
सवाल क्यों उठ रहे हैं? इसे समझते हैं। इंडिगो ने DGCA को बताया था कि FDTL के नियम लागू होने से पहले अक्टूबर में 2,186 कैप्टन (पायलट) और 1,948 फर्स्ट ऑफिसर (को-पायलट) से काम चल रहा था। यानी, कुल मिलाकर 4,134 पायलट। नवंबर में जब नियम लागू हुए तो 2,422 पायलट और 2,153 को-पायलट की जरूरत पड़ी। यानी, कुल 4,575 पायलट। दिसंबर में उड़ानों के लिए उसे 2,357 पायलट और 2,194 को-पायलट की जरूत पड़ेगी। यानी, कुल मिलाकर 4,551 पायलट।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि नवंबर की तुलना में दिसंबर में सिर्फ 24 पायलटों की कमी है। इसके बावजूद हजारों की संख्या में उड़ानें कैसे रद्द हो गईं?

31 मार्च 2025 तक इंडिगो के पास 5,456 पायलट थे। हालांकि, 8 दिसंबर को ही राज्यसभा में केंद्र सरकार ने बताया है कि देश की 6 एयरलाइन कंपनियों में 13,989 पायलट काम करते हैं। सबसे ज्यादा 6,350 पायलट एयर इंडिया के पास है। नवंबर 2024 तक एयर इंडिया में 3,462 पायलट थे।
नवंबर 2024 तक इंडिगो के पास 5,174 पायलट थे। वहीं, दिसंबर 2025 तक इंडिगो के पास 5,085 पायलट रह गए।
दिलचस्प बात यह है कि इंडिगो की तुलना में एयर इंडिया के पास विमान कम हैं। इसी साल 24 मार्च को केंद्र सरकार ने बताया था कि एयर इंडिया के 198 विमान ही ऑपरेशनल हैं। वहीं, इंडिगो की फ्लीट में 400 से ज्यादा विमान हैं लेकिन उसके 319 विमान ही ऑपरेशन हैं। इन आंकड़ों पर गौर करें तो 198 विमानों वाली एयर इंडिया के पास 6,300 से भी ज्यादा पायलट हैं, जबकि 319 विमानों वाली इंडिगो के पास लगभग 5 हजार पायलट हैं।

2 लाख करोड़ की कंपनी के पास पायलट नहीं?
इंडिगो भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी है। हर दिन 2,300 से ज्यादा विमान उड़ान भरते हैं। इंडिगो की वेबसाइट के मुताबिक, भारत की 90 और दुनिया की 40 जगहों पर इंडिगो के विमान उड़ान भरते हैं। इंडिगो की मार्केट कैप 2 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा है।
2006 में नई दिल्ली से इंफाल (मणिपुर) के बीच इसकी पहली फ्लाइट उड़ी थी। अगस्त 2012 में ही इंडिगो का मार्केट 27% के पार चला गया था और यह तभी सबसे बड़ी कंपनी बन गई थी। आज इसका मार्केट शेयर 65% से भी ज्यादा है।
DGCA के डेटा के मुताबिक, अक्टूबर में इंडिगो का मार्केट शेयर 65.6% रहा है। इस साल जनवरी से अक्टूबर तक लगभग 13.74 करोड़ यात्रियों ने हवाई सफर किया है। इसमें से 8.86 करोड़ यात्रियों ने इंडिगो की फ्लाइट से सफर किया है। इसका मतलब हुआ कि हर तीन में से दो यात्रियों ने इंडिगो की फ्लाइट से ही उड़ान भरी है।
इंडिगो के बाद टाटा ग्रुप की एयर इंडिया का मार्केट शेयर अक्टूबर में 25.7% रहा है। जनवरी से अक्टूबर तक एयर इंडिया ग्रुप की फ्लाइट से 3.66 करोड़ यात्रियों ने सफर किया है। इसका मतलब हुआ कि 91.3% मार्केट सिर्फ इंडिगो और एयर इंडिया का ही दबदबा है।
इंडिगो भले ही देश की सबसे बड़ी विमान कंपनी है लेकिन उसके पास एयर इंडिया से भी कम पायलट हैं। DGCA की रिपोर्ट बताती है कि इंडिगो में हर साल औसतन 600 पायलटों की भर्ती होती है। पायलटों की भर्ती के कारण खर्चा भी बढ़ता है। 2023-24 में इंडिनो ने अपने 5,038 पायलटों पर 3,122 करोड़ रुपये खर्च किए थे। यानी हर पायलट पर औसतन 62 लाख रुपये। इससे पहले 2022-23 में इंडिगो ने 4,407 पायलटों पर 2,303 करोड़ रुपये खर्च किए थे। इस हिसाब से 2022-23 में एक पायलट पर औसतन 52 लाख रुपये खर्च हुए थे।

क्या भारत में पायलट की कमी है?
सरकार दावा करती है कि भारत में पायलटों की कमी नहीं है। नवंबर 2024 तक देश में बड़ी एयरलाइन कंपनियों में 11,775 पायलट कम थे। दिसंबर 2025 तक इनकी संख्या बढ़कर 13,989 हो गई। नवंबर 2024 में सरकार ने संसद में बताया था कि देशभर में 26,539 पायलटों के पास लाइसेंस है।
जनवरी से अक्टूबर 2024 तक 13.21 करोड़ यात्रियों ने हवाई सफर किया था। वहीं, जनवरी से अक्टूबर 2025 तक 13.74 करोड़ यात्रियों ने हवाई सफर किया। यानी, एक साल में हवाई सफर करने वाले यात्रियों की संख्या 4% बढ़ गई है। इसी दौरान पायलटों की संख्या लगभग 19% बढ़ी है।
कोई भी व्यक्ति तभी पायलट बनता है, जब उसे DGCA से लाइसेंस मिल जाता है। लाइसेंस की तीन कैटेगरी होती है। पहली- प्राइवेट पायलट लाइसेंस (PPL), जो प्राइवेट प्लेन उड़ाने के लिए मिलता है। दूसरी- कमर्शियल पायलट लाइसेंस (CPL), जो किसी एयरलाइन कंपनी में पायलट बनने के लिए जरूरी है। और तीसरी- एयरलाइन ट्रांसपोर्ट पायलट लाइसेंस (ATPL), जो बड़े विमानों को उड़ाने के लिए जरूरी है।
लाइसेंस तभी मिलता है जब DGCA की ओर से एप्रूव फ्लाइंट ट्रेनिंग ऑर्गनाइजेशन (FTO) से ट्रेनिंग पूरी कर लेते हैं। 8 दिसंबर को सरकार ने बताया है कि नवंबर तक देशभर में 40 FTO हैं। अगर ट्रेनिंग के दौरान 200 घंटे तक की उड़ान कर लेते हैं तो कमर्शियल पायलट का लाइसेंस मिल जाता है। ज्यादातर पायलट यही लेते हैं क्योंकि इसी से फिर आगे का रास्ता खुलता है। वहीं, ATPL के लिए 1,500 फ्लाइंग आवर्स जरूरी होते हैं।
संसद में केंद्र सरकार की ओर से दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, 2019 से 2024 के बीच 6 सालों में कमर्शियल पायलट के 6,184 लाइसेंस जारी किए गए हैं। 2023 में सबसे ज्यादा CPL जारी हुए थे। उस साल 1,622 लोगों को लाइसेंस मिला था।

भारत में अगले 9 साल में हजारों पायलटों की जरूरत होगी। इस साल मार्च में नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने बताया था कि इंडियो के पास अभी साढ़े 5 हजार पायलट हैं और उसे 2034 तक 11,778 पायलटों की जरूरत और होगी। यानी, 2034 तक अकेले इंडिगो को ही 16 हजार से ज्यादा पायलटों की जरूरत पड़ेगी।
पायलटों की जरूरत सिर्फ इसलिए नहीं होगी, क्योंकि यात्रियों की संख्या बढ़ रही है, बल्कि इसलिए भी होगी क्योंकि कंपनियां अपनी फ्लीट लगातार बढ़ा रही हैं। 2024 में ही एयरलाइन कंपनियों की फ्लीट में 134 नए विमान बढ़े थे। अकेले इंडिगो की फ्लीट में ही 75 विमान बढ़ गए थे।
अगले 10 साल के अंदर देश की दो बड़ी कंपनियों- इंडिगो और एयर इंडिया की फ्लीट में एक हजार से ज्यादा नए विमान जुड़ जाएंगे। एयर इंडिया को 2025 से 2034 के बीच 570 नए विमान मिलने हैं। इसी तरह इंडिगो ने भी मार्च 2023 में A320 फैमिली के 500 विमानों का ऑर्डर दिया था, जिनकी डिलीवरी 2030 से शुरू होगी।

