खेती से लेकर पीने के पानी तक के लिए हम काफी कुछ भूमिगत जल यानी कि जमीन के नीचे के पानी पर निर्भर हैं, लेकिन इसको लेकर वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है कि जमीन के नीचे से पानी की अत्यधिक निकासी न केवल हमारे जल भंडारों को खत्म कर रही है, बल्कि पृथ्वी के घूर्णन को भी बदल रही है। 2023 में जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण अध्ययन, जिसका नेतृत्व सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी के की-वॉन सियो ने किया, ने बताया कि पानी की इस निकासी से पृथ्वी का ध्रुव (पोल) खिसक रहा है और समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है। इस खुलासे ने भूमिगत जल के उपयोग को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।

 

पृथ्वी का ध्रुव वह काल्पनिक रेखा है जिसके चारों ओर हमारा ग्रह घूमता है। यह रेखा स्थिर नहीं रहती, बल्कि थोड़ी-थोड़ी हिलती रहती है, जिसे पोलर मोशन कहते हैं। यह हिलना समुद्री धाराओं, हवा के दबाव और बर्फ के पिघलने जैसे कारणों से होता है। लेकिन नया शोध बताता है कि जमीन के नीचे से पानी निकालना भी इस हिलने का एक बड़ा कारण है।

 

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1993 से 2010 के बीच, इंसानों ने 2,150 गीगाटन (21.5 खरब टन) पानी जमीन के नीचे से निकाला। यह पानी ज्यादातर खेती और पीने के लिए इस्तेमाल हुआ, खासकर उत्तर-पश्चिमी भारत, पश्चिमी उत्तरी अमेरिका और मध्य-पूर्व जैसे इलाकों में। इस पानी को निकालकर सतह पर लाने और फिर समुद्र में पहुंचाने से पृथ्वी का संतुलन बिगड़ गया।

 

नतीजा? पृथ्वी का ध्रुव 17 साल में 80.48 सेंटीमीटर (लगभग 32 इंच) पूर्व की ओर खिसक गया, यानी हर साल औसतन 4.36 सेंटीमीटर। यह खिसकाव छोटा लग सकता है, लेकिन इसके प्रभाव बड़े हो सकते हैं।

 

कैसे बिगड़ता है पृथ्वी का बैलेंस?

जब जमीन से पानी निकाला जाता है, खासकर मध्य अक्षांश (latitude) वाले इलाकों से, तो यह पानी धरती की सतह पर आने के बाद जल चक्र यानी कि वॉटर साइकिल को पूरा करके समुद्र में चला जाता है। इससे पृथ्वी का संतुलन धीरे-धीरे बदलता है, क्योंकि पानी का वजन एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट हो जाता है। उत्तर-पश्चिमी भारत (लगभग 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश) और पश्चिमी उत्तरी अमेरिका (लगभग 35 डिग्री उत्तरी अक्षांश) जैसे इलाके इस बदलाव में बड़ा योगदान देते हैं।

 

रिसर्च के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। 1993 से 2010 तक, जमीन से निकाले गए पानी ने समुद्र के जल स्तर को 6.24 मिलीमीटर बढ़ाया। इस दौरान कुल जल स्तर 31 मिलीमीटर बढ़ा, जिसमें बर्फ का पिघलना और समुद्र का गर्म होना भी शामिल है। 2,150 गीगाटन पानी इतना है कि यह एक 12.9 किलोमीटर लंबा, चौड़ा और ऊंचा पानी का घन बन सकता है।


कहां हो रही है सबसे ज्यादा निकासी?

शोध में कुछ खास इलाकों को चिह्नित किया गया। उत्तर-पश्चिमी भारत में खेती के लिए हर साल कुछ जगहों पर 20 सेंटीमीटर तक पानी निकाला गया, जिससे 300-400 गीगाटन पानी कम हुआ। बड़े पैमाने पर खेती को सपोर्ट करने वाले अमेरिका के ओगालाला एक्वीफर से 200 गीगाटन पानी निकाला गया। सऊदी अरब और उत्तरी चीन जैसे क्षेत्र भी पानी की भारी निकासी के लिए जिम्मेदार हैं।

 

इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। समुद्र में पानी बढ़ने से तटीय इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। 2100 तक समुद्र का स्तर 50-100 सेंटीमीटर बढ़ सकता है, जिसमें जमीन के पानी की निकासी का भी योगदान होगा। साथ ही, ध्रुव का खिसकना लंबे समय में मौसम के पैटर्न को बदल सकता है।

 

जुटाया 17 साल का डेटा?

वैज्ञानिकों ने 17 साल (1993-2010) के डेटा का विश्लेषण किया। उन्होंने वेरी लॉन्ग बेसलाइन इंटरफेरोमेट्री (VLBI) और ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) जैसे उपकरणों से ध्रुव की स्थिति को मिलीमीटर की सटीकता से मापा।

 

उन्होंने कई कारकों का अध्ययन किया, जैसे ग्रीनलैंड की बर्फ (1,200 गीगाटन), अंटार्कटिका की बर्फ (600 गीगाटन), पहाड़ी ग्लेशियर (300 गीगाटन), हवा का दबाव, समुद्री धाराएं और बांधों में जमा 1,050 गीगाटन पानी। नासा के GRACE सैटेलाइट ने पानी की कमी को मापने में मदद की। जब पानी की निकासी का विश्लेषण किया गया तो इसके द्वारा होने वाले ध्रुव के शिफ्टिंग का पता चला।

 

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क्या यह चिंता की बात है?

कुछ वैज्ञानिक सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। 12,742 किलोमीटर व्यास वाले ग्रह पर 80 सेंटीमीटर का खिसकाव मापना बहुत जटिल है। प्राकृतिक कारणों से ध्रुव हर साल 5-10 मीटर तक हिलता है, जो पानी के प्रभाव से कहीं ज्यादा है। लेकिन नासा और अन्य संस्थानों के शोध इस निष्कर्ष की पुष्टि करते हैं।

 

सोच समझ कर करना होगा उपयोग

रिसर्च के मुताबिक इससे बचने के लिए बताता है कि पानी का उपयोग कम करना जरूरी है। कुछ उपाय हैं, जैंसे ड्रिप इरिगेशन और सूखा-रोधी फसलें की खेती करना, जमीन के नीचे पानी पहुंचाने के लिए एक्वीफर तक दोबारा पानी पहुंचाना, समुद्र के पानी को प्रयोग में लाने की टेक्नॉलजी पर ज्यादा निवेश करना और बारिश के पानी को उपयोग में लाना।

 

कैलिफोर्निया में 2014 का सस्टेनेबल ग्राउंडवाटर मैनेजमेंट एक्ट 2040 तक पानी के उपयोग को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। भारत के पंजाब में कुछ जगहों पर रिचार्ज से 10% सुधार हुआ है।

 

रिसर्च से नए सवाल उठे हैं। 19वीं सदी के डेटा से लंबे समय के प्रभावों का पता लगाया जा सकता है। 2050 तक पानी की निकासी 20% बढ़ सकती है, जिससे ध्रुव का खिसकाव दोगुना हो सकता है। जलवायु परिवर्तन से सूखा और पानी की मांग बढ़ेगी, जिससे समस्या और गंभीर होगी।