झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को बहुत बड़ी चेतावनी दी है। मुख्यमंत्री ने साफ शब्दों में केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर झारखंड को कोयले की रॉयल्टी का बकाया नहीं मिलता है तो झारखंड कोयला खदानों को बंद कर देगा। उन्होंने यह बातें धनबाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के 53वें स्थापना दिवस कार्यक्रम के अवसर पर कहीं।
सीएम हेमंत सोरेन ने कहा 'अगर हमने कोयला रोक दिया, तो पूरा देश अंधेरे में डूब जाएगा!' उन्होंने कहा, 'झारखंड की धरती से खनिज संसाधन निकालकर देशभर में ऊर्जा सप्लाई की जाती है, लेकिन हमारे अपने अधिकारों की अनदेखी की जाती है। यह अब और बर्दाश्त नहीं होगा।' सोरेन के इस बयान के बाद सियासी गलियारों से लेकर केंद्र सरकार के अंदर हलचल मचा दी है।
क्या चाहते हैं हेमंत सोरेन?
हेमंत ने केंद्र को यह चेतावनी ऐसे ही नहीं दी है, बल्कि इसके पीछे बड़ा कारण छिपा हुआ है। दरअसल, केंद्र सरकार को झारखंड को खनिज रॉयल्टी के तौर पर बकाया 1.36 लाख करोड़ रुपये चुकाने हैं, जो अभी तक नहीं चुकाया गया है। मुख्यमंत्री राज्य के इसी पैसे की मांग कर रहे हैं। जेएमएम नेता के इस बयान की दिल्ली तक चर्चा है।
राज्य सरकार ने विषयवार- क्षेत्रवार अलग-अलग परियोजनावार बकाया राशि का आकलन किया है। सरकार ने यह आकलन जिला स्तर पर खनन कंपनियां के साथ तैयार किया गया है। कोयला मंत्री ने आदेश दिया कि केंद्र सरकार के अधिकारी राज्य सरकार के साथ मिलकर इसकी प्रमाणिकता का आकलन करें। केंद्रीय कोयला मंत्री ने मुख्यमंत्री सोरेन को झारखंड के बकाए के भुगतान का भरोसा दिलाया।
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अगर सीएम हेमंत सोरेन झारखंड से कोयला खनन पर रोक लगा देते हैं और कोयले की सप्लाई बंद कर देते हैं तो इससे देशभर में बिजली संकट गहरा सकता है। केंद्र सरकार ऐसी स्थिति कभी नहीं चाहेगा। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या केंद्र सरकार को झारखंड को उसकी बकाया राषि 1.36 लाख करोड़ रुपये चुकाएगा?
कोयले के लिहाज से झारखंड कितना अहम है?
भारत में सबसे बड़ा कोयला भंडार झारखंड में है। झारखंड कोयला उत्पादन के मामले में देश में सबसे ऊपर है। राज्य के झारिया कोलफील्ड में भारत में सबसे बड़ा कोयला भंडार है। अकेले यहां 19.4 अरब टन कुकिंग कोलार मौजूद है। यहां मौजूद भंडार अगले 100 सालों तक देश की जरूरतें पूरी कर सकता है। यही वजह है कि केंद्र सरकार के लिए झारखंड बेहद महत्वपूर्ण है।
झारखंड रोजाना औसतन तीन लाख टन कोयले का उत्पादन करता है और सालाना 125 मिलियन टन। इस कोयले की आपूर्ति देश के अलग-अलग राज्यों में की जाती है। इन कोयले का इस्तेमाल राज्यों में बिजली उत्पादन, कई उद्योगों के अलावा इस्पात कंपनियों को की जाती है। बीसीसीएल, ईसीएल, सीसीएल, एनटीपीसी जैसी कंपनियां झारखंड में कोयले का उत्पादन करती हैं।
केंद्र सरकार के लिए झारखंड भले जरूरी हो, लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है कि इन कोयले खदानों की कीमत झारखंड की जनता चुका रही है। यहां की जमीन, पर्यावरण और लोगों के अधिकारों की बलि चढ़ाई जा रही है। यहां की जनता गरीब है, लेकिन जो यहां से कोयला लेकर बाहर लेकर जा रहे हैं वो करोड़ों के मालिक हैं।
लोगों को वापस करनी होगी जमीनें
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब हेमंत सोरेन ने इस मामले को उठाया है। इससे पहले भी उन्होंने दुमका में एक कार्यक्रम के दौरान यही मुद्दा उठाया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर हमारी मांगों पर केंद्र सरकार गंभीरता से विचार नहीं करती है तो हम अपना हक छीन कर लेंगे। झारखंड में कोयला खनन के बाद खाली पड़ी हुई जमीनों को अब जमीन मालिकों को वापस करना होगा। हमें अपनी जमीन वापस लेने के लिए एक लड़ाई और लड़नी होगी। इसके लिए हमें एकजुट होना होगा।
बजट में भी कुछ नहीं मिला
मुख्यमंत्री हेमंत बजट में झारखंड की उपेक्षा को लेकर भी केंद्र सरकार पर बरसे हैं। सोरेन ने कहा है कि जो देश का बजट पेश हुआ है, उसमें भी झारखंड को कुछ नहीं मिला है। मनरेगा की राशि कम कर दी गई है। केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 50 लाख करोड़ का बजट पेश किया।
बता दें कि 9 जनवरी को केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री जी किशन रेड्डी झारखंड दौरे पर आए थे। इस दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की थी। झारखंड सरकार ने फिर से कोयला मंत्री से कोल रॉयल्टी मद की बकाया राशि की मांग की थी। हालांकि, हेमंत सोरेन की मांग पर केन्द्र और राज्य सरकार के अधिकारियों की भविष्य में मामले का निष्पादन करने की सहमति जताई थी।