कर्नाटक सरकार ने हाल ही में 'सम्मानपूर्वक मृत्यु का अधिकार' (Right to Die with Dignity) को लागू कर दिया है। ऐसा करने वाला कर्नाटक भारत का पहला राज्य बन गया है। इस पहल के तहत, गंभीर और लाइलाज बीमारियों से पीड़ित मरीज, जिनके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है, अब लाइफ सेविंग ट्रीटमेंट को जारी रखने या न रखने का निर्णय स्वयं ले सकेंगे। 

 

इसको लेकर क्या होंगे नियम?

  • मेडिकल बोर्ड की स्थापना: राज्य के अस्पतालों में प्राइमरी और सेकेंडरी मेडिकल बोर्ड स्थापित किए जाएंगे। इन बोर्ड्स में न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, सर्जन, एनेस्थेटिस्ट, या इंटेंसिविस्ट जैसे विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो मरीज की स्थिति का मूल्यांकन करेंगे।


     

  • अग्रिम चिकित्सा निर्देश (AMD) या 'लिविंग विल': मरीज भविष्य में अपनी मेडिकल केयर के संबंध में इच्छाएं दर्ज करा सकते हैं। अगर वे निर्णय लेने में असमर्थ हो जाते हैं, तो पहले से नामित व्यक्ति उनकी ओर से स्वास्थ्य संबंधी निर्णय ले सकेंगे।


     

  • सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: जनवरी 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) के नियमों को सरल बनाया था, जिसके तहत मरीजों को लाइफ सेविंग ट्रीटमेंट को रोकने का अधिकार दिया गया था।

दरअसल, यह निर्णय उन मरीजों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण रखता है, जो ऐसी बीमारियों से ग्रस्त हैं जिनके ठीक होने की संभावना बिल्कुल नहीं है। अब वह अपनी चिकित्सा देखभाल के बारे में सम्मानपूर्वक निर्णय ले सकेंगे, जिससे उनकी गरिमा बनी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला हमें केईएम अस्पताल की नर्स अरुणा रामचंद्र शानबाग की याद दिलाता है, जो 42 वर्षों तक वार्ड नंबर 4 में एक जिंदा लाश की तरह पड़ी रही। 

 

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क्या था अरुणा रामचंद्र शानबाग केस?

27 नवंबर 1973 को एक वार्ड बॉय ने अरुणा का यौन शोषण किया था, जब वह काम के बाद अपने कपड़े बदल रही थी। दुष्कर्म के दौरान आरोपी ने अरुणा के गले में कुत्ते की चेन बांध दी थी। अगली सुबह अरुणा खून से लथपथ पाई गई थी। उसके गले में बंधी चेन के कारण अरुणा के मस्तिष्क को 8 घंटे से ज्यादा समय तक ऑक्सीजन नहीं पहुंची थी जिसके कारण उसके पूरे शरीर में लकवा मार चुका था।

 

बता दें कि जब अरुणा के साथ बलात्कार हुआ, तब उसकी शादी उसी अस्पताल के एक डॉक्टर से तय हुई थी। इस मामले में वार्ड बॉय सोहनलाल भरथा वाल्मीकी को चोरी और हमले के आरोप में पकड़ा और दोषी ठहराया गया लेकिन उसपर रेप और अप्राकृतिक यौन संबंध का कोई केस दर्ज नहीं हुआ। उसे 2 सात साल की सजा हुई जिसके बाद वह रिहा हो गया। 

 

आरोपी को कितनी मिली थी सजा?

बता दें कि शानबाग को ब्रेन स्टेम और सर्वाइकल कॉर्ड में चोट लगी थी जिसके कारण वो 41 साल तक कोमा में रहीं। इस दौरान केईएम अस्पताल में सहकर्मियों और नर्सों ने उन्हें खाना खिलाया और उनकी देखभाल भी की। शानबाग की इतनी अच्छी तरह से देखभाल कि गई की 40 से अधिक वर्षों में एक बार भी उन्हें बिस्तर में कोई समस्या या अन्य बीमारी नहीं हुई।

 

जब 2009 में पहली बार दायर की गई याचिका

शानबाग के मामले पर नजर रखने वाली कार्यकर्ता, पत्रकार और लेखिका पिंकी विरानी ने 2009 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अरुणा के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु की मांग की थी। विरानी ने कहा था कि अरुणा की 'मृत्यु 27 नवंबर, 1973 को हो गई थी'। शानबाग की देखभाल करने वाली नर्सों ने याचिका का विरोध किया और उन्हें  निष्क्रिय इच्छामृत्यु से मरने देने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने 2011 में विरानी की याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि,  बॉम्बे उच्च न्यायालय की मंजूरी से, अस्पताल के कर्मचारी को जीवन रक्षक प्रणाली हटाने का आदेश दे दिया गया था लेकिन अरुणा की मौत 15 मई, 2015 को निमोनिया से हो गई थी।