युद्ध पीड़ितों और बंदियों की सुरक्षा का जिक्र जिनेवा कन्वेंशन में है। सभी देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं और सभी पक्षों को इसका सम्मान करना अनिवार्य है। जिनेवा में 21 अप्रैल से 12 अगस्त 1949 तक राजनयिक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस दौरान कई अंतरराष्ट्रीय संधियों पर दुनियाभर के देशों ने हस्ताक्षर किए। जिनेवा कन्वेंशन का मुख्य उद्देश्य  युद्ध के वक्त सैनिकों और नागरिकों की रक्षा सुनिश्चित करना है। इसमें साफ कहा गया कि युद्ध में शामिल देश के नागरिकों, स्वास्थ्य कर्मियों, युद्ध बंदी जैसे बीमार और घायल सैनिकों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाए। वह व्यक्ति जिसे युद्ध या सशस्त्र संघर्ष के दौरान दूसरे पक्ष ने बंदी बना लिया है। उसे ही युद्ध बंदी कहा जाता है। इसमें सैनिक के अलावा अन्य लोग भी हो सकते हैं।


अनुच्छेद-2 के मुताबिक जिनेवा कन्वेशन युद्ध के अलावा अन्य सशस्त्र संघर्ष में भी लागू होता है। अगर किसी एक पक्ष ने संघर्ष को युद्ध मानने से भी मना कर दिया तो भी यह लागू होगा। किसी क्षेत्र पर आंशिक या पूर्ण कब्जे के मामले में भी यह लागू होगा।

 

अनुच्छेद 3

 

अनुच्छेद तीन में कहा गया कि युद्ध में भाग न लेने वाले सशस्त्र बल, हथियार डाल चुके, बीमार, हिरासत व किसी अन्य कारण से युद्ध में शामिल न होने वाले जवानों के साथ मानवीय व्यवहार करना होगा। जवानों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

 

  • युद्ध बंदी के साथ क्रूर व्यवहार और हिंसा नहीं की जा सकती। 
  • बंधक बनाना भी मना है।
  • अपमानजनक व्यवहार भी नहीं किया जा सकता है।
  • बिना अदालती सुनवाई के सजा और फांसी नहीं दी जा सकती है।
  • घायलों और बीमार लोगों का इलाज और देखभाल करनी होगी।
  • रेड क्रॉस जैसा निष्पक्ष निकाय अपनी सेवाएं दे सकते हैं।


अनुच्छेद 13: बंदियों के साथ हर हाल में मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए। अगर हिरासत में युद्ध बंदी की मृत्यु हो जाती या स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पहुंचाया जाता तो इसे कन्वेंशन का गंभीर उल्लंघन माना जाएगा। बंदी पर वैज्ञानिक प्रयोग नहीं किए जा सकते हैं। युद्धबंदियों के खिलाफ प्रतिशोध निषिद्ध हैं। अनुच्छेद 14 के तहत युद्धबंदी हर परिस्थिति में सम्मान के हकदार हैं। लिंग के आधार पर उनका पूर्ण सम्मान किया जाएगा।

 

अनुच्छेद 15: बंधक बनाने वाले देश को भरण-पोषण, निशुल्क चिकित्सा की व्यवस्था करना बाध्यकारी है।

 

बंदी को प्रताड़ित नहीं किया जा सकता

अनुच्छेद 17 के मुताबिक युद्ध बंदियों से पूछताछ में शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है। पूछताछ भी बंदी की भाषा में की जाएगी। अनुच्छेद 18 में उल्लेख है कि सैन्य दस्तावेज, हथियार, सैन्य उपकरण और घोड़ों के अलावा निजी इस्तेमाल में आने वाली सभी वस्तुएं बंदी के पास ही रहेंगी। 

 

अधिकारी के आदेश के बिना बंदी से कैश नहीं लिया जा सकता है। अगर लिया जाता है तो उसकी रसीद देनी होगी। अनुच्छेद 19 में यह कहा गया है कि युद्ध बंदियों को तुरंत युद्ध क्षेत्र से बाहर स्थित शिविरों में ले जाना होगा।

 

भोजन-पानी की व्यवस्था करनी होगी

अनुच्छेद 20 के तहत युद्धबंदियों की निकासी हमेशा मानवीय तरीके से की जाएगी। उन्हें पर्याप्त भोजन, पीने योग्य पानी, कपड़े और चिकित्सा सुविधा भी देनी होगी। बंदियों की निकासी के दौरान सावधानी बरतनी होगी। अनुच्छेद 21 के मुताबिक युद्ध बंदियों को नजरबंद किया जा सकता है। उन्हें आंशिक या पूरी तरह से पैरोल पर छोड़ा जा सकता है।

 

शिविर में कैंटीन की व्यवस्था करनी होगी

अनुच्छेद 22 में युद्ध बंदियों को सिर्फ भूमि पर बने परिसरों पर ही नजरबंद करने का प्रावधान है। परिसर में सफाई आदि का ध्यान रखना होगा। अनुच्छेद 28 में कहा गया है कि सभी शिविरों में कैंटीन स्थापित करनी होगी। यहां युद्धबंदी खाद्य पदार्थ, साबुन, तंबाकू और दैनिक इस्तेमाल का सामान खरीदेंगे। किसी भी सामान का मूल्य बाजार से अधिक नहीं होगा।

 

अनुच्छेद 31 के तहत हर महीने स्वास्थ्य की जांच करवाना अनिवार्य है। अनुच्छेद-34 के मुताबिक युद्ध बंदी अपने धर्म का पालन कर सकते हैं। कैदियों के खेलकूद, व्यायाम और बाहर घूमने व पर्याप्त खुली जगह की व्यवस्था करनी होगी।