5 अगस्त 2019 को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में अनुच्छेद 370 के निरसन के लिए विधेयक पेश किया था। कश्मीर को कुछ हद तक 'स्वायत्तता' देने वाले इस अनुच्छेद के खत्म होने के बाद कहा गया कि जम्मू और कश्मीर में आतंकियों की कमर टूट गई है। गृहमंत्री लोकसभा से राज्यसभा तक में कई बार कह चुके हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने और अनुच्छेद 370 रद्द होने के बाद घाटी में आतंकवाद 70 फीसदी कम हो गया है।

21 मार्च 2025 को गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में कहा था, 'मोदी सरकार की नीतियों के कारण जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद 70% कम हुआ है। पहले आतंकियों के जनाजे में जुलूस निकलते थे, अब आतंकी जहां मारे जाते हैं, वहीं दफनाए जाते हैं। आतंकवाद और इसके समर्थकों की कमर टूट चुकी है।'


गृहमंत्री अमित शाह कई बार कह चुके हैं कश्मीर घाटी में आतंक के इस वजह से पांव सिमट रहे हैं, क्योंकि सरकार आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाती है। सेना ने घुसपैठ रोका है, अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद से कश्मीर के युवा, मुख्य धारा का हिस्सा बन रहे हैं। कश्मीर में सरकार के तमाम दावों के बाद भी लगभग हर महीने आतंकवादी गतिविधियों की खबरें सामने आती हैं। शोपियां, कठुआ, श्रीनगर, रियासी, रामबन और डोडा जैसी जगहों पर हाल के दिनों में आतंकी हमले हुए हैं।

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आतंकी हमलों में जवानों के शहीद होने की खबरें सामने आती हैं। यह सच है कि अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद आतंकी समूहों की गतिविधियां कमजोर पड़ी हैं लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है। आंकड़े कुछ और इशारा कर रहे हैं। 

 

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370 हटने के बाद क्या-क्या बदला?

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मुताबिक अनुच्छेद 370 हटने के बाद आतंकी घटनाओं, ग्रेनेड हमलों, और पथराव में भारी कमी आई है। सुरक्षा बलों की सतर्कता, ड्रोन निगरानी, और सर्जिकल स्ट्राइक जैसी गतिविधियों की वज से आतंकी संगठन कमजोर पड़े हैं। उरी और पुलवामा हमले के बाद हालात संभले हैं। कश्मीर में करीब 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हुए, जो शांतिपूर्ण रहे। अलगाववादियों ने चुनाव का बहिष्कार नहीं किया था। गृहमंत्रालय का दावा है कि आतंकवाद में 70 फीसदी गिरावट आई है, आतंकी सिर्फ कुछ इलाकों तक सिमट गए हैं। 



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चुनौतियां क्या हैं?

साल 2024 में उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कई आतंकी हमले हुए। गांदरबल में हुए हमले में 7 मजदूरों को आतंकियों ने मार डाला था, वहीं बडगाम में भी मजदूरों को निशाना बनाया गया। 2024 में जम्मू में एक के बाद एक करीब 15 आतंकी हमले हुए। रियासी बस अटैक में 8 से ज्यादा लोग मारे गए। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान समर्थिक लश्कर-ए-तैयबा और उसके सहयोगी आतंकी संगठन सक्रिय हैं. हाल के दिनों में TRF जैसे संगठन भी उभरकर सामने आए हैं। कश्मीर में टारगेट किलिंग बढ़ गई है। कश्मीरी पंडित और बाहरी मजदूरों को निशाना बनाया जा रहा है, पर्यटकों पर भी हमले हो रहे हैं। खुफिया एजेंसियां भी मानती हैं कि ड्रोन की वजह से हथियारों की तस्करी बढ़ी है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में ड्रग्स की तस्करी बढ़ी है, ISI समर्थित गतिविधियां भी सामने आई हैं।