एक का नाम आदिल ठोकर उर्फ आदिल गुरी तो दूसरे का सैयद आदिल हुसैन। पहलगाम अटैक के बाद इन दो 'आदिल' की चर्चा हो रही है। एक आदिल हुसैन था, जिन्होंने पर्यटकों की खातिर गोलियां खाईं। दूसरा आदिल गुरी है, जिसने पर्यटकों पर आंखे मूंदकर गोलियां बरसाईं।


आदिल का मतलब वैसे तो 'इंसाफ', 'ईमानदार' या 'निष्पक्ष' होता है। आदिल हुसैन ने तो अपने नाम के मतलब को सच कर दिखाया लेकिन आदिल गुरी ने अपने नाम के साथ न सिर्फ 'नाइंसाफी' की बल्कि उसने रास्ता भी 'आतंक' का अख्तियार किया। एक आदिल गुरी है, जो लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी है तो दूसरा आदिल हुसैन था जो घोड़ा चलाता था। आदिल गुरी 20 साल का था तो आदिल हुसैन की उम्र 30 साल थी।


आदिल गुरी दक्षिणी कश्मीर के बिजबेहरा के गुरी गांव का रहने वाला है। आदिल ने 22 अप्रैल को पहलगाम की बैसरन घाटी में पर्यटकों पर गोलियां बरसाईं, जिसमें 26 लोगों की मौत हो गई। पिछले हफ्ते आदिल के घर में ब्लास्ट हो गया था। अधिकारियों का कहना है कि उसके घर में विस्फोटक रखे थे, जिस कारण धमाका हो गया। 

 

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आदिल गुरी की पहचान एक 'आतंकी' के तौर पर है। मगर एक वक्त था जब वह होनहार छात्र हुआ करता था। उसने खानाबल के एक सरकारी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था। बाद में इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (IGNOU) से मास्टर्स डिग्री ली। उसके पड़ोसियों का दावा है कि आदिल हमेशा शांत रहता था और उसका ध्यान पढ़ाई पर रहता था।

 


29 अप्रैल 2018 को आदिल गुरी परीक्षा देने के लिए बड़गाम गया था। वह वैलिड वीजा लेकर पाकिस्तान गया था और बाद में उसके लापता होने की खबर आई। बाद में पता चला कि आदिल लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ गया था। लश्कर के साथ जुड़कर उसने हथियार चलाना सीखा और आतंक की ट्रेनिंग ली। जांच एजेंसियों का मानना है कि 2024 में वह LoC पार कर भारत वापस आया। आदिल जम्मू के डोडा और किश्तवाड़ में एक्टिव था। 


आदिल की मां शहजादा बानो ने कहा, '2018 के बाद से हमारी उससे कोई बात नहीं हुई। अगर वह इसमें शामिल था तो सुरक्षाबलों को उसी हिसाब से सजा देनी चाहिए।' उन्होंने आदिल से सरेंडर करने की अपील की ताकि परिवार शांति से रह सके। पहलगाम अटैक के बाद से आदिल फरार है। अनंतनाग पुलिस ने उसके ऊपर 20 लाख रुपये का इनाम रखा है।

 

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एक आदिल हत्यारा है तो दूसरा आदिल हीरो है। आदिल अपने परिवार में इकलौते कमाने वाले थे। गुजर-बसर करने के लिए आदिल हुसैन टट्टू चलाते थे और पर्यटकों को पहलगाम से 6 किलोमीटर दूर 'मिनी स्विट्जरलैंड' कही जाने वाली बैसरन घाटी ले जाते थे। 22 अप्रैल की सुबह भी आदिल हुसैन के लिए रोज की तरह ही थी लेकिन दोपहर कयामत बनकर आई। 

 


उनके भाई सैयद नौशाद ने बताया, 'आतंकियों ने जब पर्यटकों पर हमला किया तब मेरे भाई ने उन्हें रोकने की कोशिश की।' नौशाद ने बताया कि आतंकियों ने उनके भाई के सीने में तीन गोलियां मारी थीं। इस कायराना हमले में जान गंवाने वाले आदिल इकलौते कश्मीरी हैं। बताया जा रहा है कि आदिल ने आतंकियों की राइफल छीनने की कोशिश की थी, जिसके बाद आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी।

 

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आदिल की बहन आसमा ने बताया, 'सुबह मैंने उससे कहा था कि वह न जाए, क्योंकि मुझे पता था कि कुछ बुरा होने वाला है लेकिन उसने मेरी बात नहीं सुनी और चला गया।'

 

उनके पिता सैयद हैदर शाह ने कहा, 'गांव के कई लड़के काम की तलाश में पहलगाम जाते हैं लेकिन कौन जानता था कि ऐसा होने वाला है। आतंकियों ने मेरे बेटे को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि उसने उनका सामना किया।' उन्होंने बताया, 'जब वह शाम को नहीं लौटा तो हमने उसे फोन करना शुरू किया लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया।'

 


आदिल को दफनाने से पहले आखिरी नमाज पढ़ने वाले गुलाम हुसैन ने कहा, 'हमें हर किसी के लिए कुर्बानी देने के लिए तैयार रहना चाहिए, फिर चाहे वह सिख हो, पंडित हो या मुस्लिम। हमारा मजहब हमें यही सिखाता है।'


आदिल हुसैन ने इसी बात को माना और दूसरों के लिए खुद को जान दे दी। दूसरा आदिल गुरी है, जिसने पर्यटकों से उनका धर्म पूछकर गोली मार दी।