देश में अभी फिलहाल इंडिगो संकट की चर्चा बहुत जोरों पर है। 2 दिसंबर को इसकी शुरुआत हुई थी। 6 दिसंबर तक इंडिगो की वजह से 2000 से ज्यादा फ्लाइट कैंसिल करनी पड़ी जिसके कारण दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू और कोलकाता समेत देश भर में लाखों पैसेंजर परेशान होते रहे। यात्रियों को कई घंटों तक एयरपोर्ट पर इंतजार करना पड़ा। हमने ऐसे कई वीडियो और फोटो देखे जिसमें परेशान यात्रियों का दुख साफ देखा जा सकता है। इस संकट के बीच यह समझना बहुत जरूरी है कि लोगों की परेशानी की असल वजह क्या है?

 

हम सब जानते हैं कि देश में लगातार एयरपोर्ट की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। सरकार भी इस तरह के कई प्रोजेक्ट्स की शुरूआत कर रही है जिसमें एयरपोर्ट की संख्या बढ़े और लोगों को हवाई यात्रा में कठिनाई न हो। पर ऐसा क्या है जिसकी वजह से इतने विकास के कामों को बढ़ावा देने के बावजूद यात्रियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है? 


यह बात समझने की जरूरत है कि बढ़ती आबादी के साथ पायलटों की संख्या में बढ़ोतरी क्यों नहीं हो रही है। क्या इसकी वजह सरकारी नीतियों की कमी है? सामने आए कई कारणों में से एक यह माना जा रहा है कि फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) रेगुलेशन के चलते पायलट और क्रू स्टाफ की कमी उत्पन्न हो रही है, जिसे इस बड़े संकट का प्रमुख कारण बताया जा रहा है।


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DGCA के नए नियमों से इंडिगो में संकट

  • हर सप्ताह 48 घंटे का साप्ताहिक रेस्ट जरूरी
  • नाइट ड्यूटी- पहले सुबह 5 तक थी अब रात 12 से सुबह 6 तक शिफ्ट
  • नाइट लैंडिंग पर लिमिट- पहले पायलट 6 लैंडिंग तक करते थे, अब सिर्फ 2 की इजाजत
  • लगातार नाइट शिफ्ट पर रोक- लगातार 2 रातों से ज्यादा ड्यूटी नहीं लग सकती 
  • फ्लाइट ड्यूटी पीरियड लिमिट-प्री-फ्लाइट और पोस्ट-फ्लाइट में अतिरिक्त 1 घंटे से अधिक काम नहीं
  • लंबी उड़ानों के बाद रेस्ट- कनाडा-यूएस जैसी लंबी उड़ानों के बाद पायलट को 24 घंटे का रेस्ट

 

असर क्या हुआ?

  • पायलट और क्रू की संख्या अचानक कम हो गई
  • सभी एयरपोर्ट्स पर फ्लाइट शेड्यूल बिगड़ा
  • कई फ्लाइट्स रद्द या देरी से चलीं
  • अतिरिक्त भर्ती और ट्रेनिंग देनी पड़ रही है


DGCA-सर्टिफाइड संस्थान

भारत में पायलट ट्रेनिंग संस्थानों की संख्या 50 से अधिक है। इन्हें नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) की मान्यता प्राप्त है। पायलट ट्रेनिंग के लिए संस्थान (FTO) सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में मौजूद हैं।

 

नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MCA) और DGCA के आधिकारिक डेटा के अनुसार, भारत में DGCA-मान्यता प्राप्त FTOs की संख्या 50 से अधिक है। इन संस्थानों में विभिन्न राज्यों में स्थित छोटे फ्लाइंग क्लब से लेकर बड़े पेशेवर ट्रेनिंग संस्थान शामिल हैं। 

 

भारत के कुछ  बड़े पायलट  ट्रेनिंग सेंटर-

 

  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी (IGRUA)-  फुरसतगंज, उत्तर प्रदेश    सरकारी
  • नेशनल फ्लाइंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (NFTI)-    गोंदिया, महाराष्ट्र,  निजी (CAE और AAI का ज्वाइंट वेंचर)
  • बॉम्बे फ्लाइंग क्लब (BFC)-  मुंबई, महाराष्ट्र
  • रेडबर्ड फ्लाइट ट्रेनिंग एकेडमी- बारामती, महाराष्ट्र में निजी संस्थान
  • चाइम्स एविएशन एकेडमी- मध्य प्रदेश में निजी संस्थान
  • मध्य प्रदेश फ्लाइंग क्लब (MPFC)- इंदौर/भोपाल,  ट्रस्ट
  • राजीव गांधी एकेडमी फॉर एविएशन टेक्नोलॉजी- हैदराबाद, तेलंगाना और  निजी संस्थान

 

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इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, DGCA ने 2023 में 1622 कॉमर्शियल पायलट्स को लाइसेंस जारी करने की बात कही थी। फिर भी अगले 5 साल में 2375 पायलटों की कमी रह जाएगी। 2029 तक कुल 22,400 पायलटों की जरूरत होगी जबकि अभी केवल 11745 पायलट्स ही हैं। 2022 से 2025 के बीच उड़ाने बढ़ने से पायलट्स खासकर कैप्टन पर काम का बोझ बढ़ा है। पायलट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स की क्षमता बहुत कम है। हर साल केवल 1200 से 1500 पायलट्स को ही ट्रेनिंग के बाद लाइसेंस मिल पाता है जबकि जरूरत इससे कहीं ज्यादा है। 


पायलटों की चयन प्रक्रिया

पायलटों का चयन कई अलग-अलग तरीकों से होता है इसलिए इसकी कोई एक निश्चित संख्या बताना मुश्किल है। दो कैटेगरी में पायलटों का चयन होता है-

  • रक्षा/सरकारी क्षेत्र : भारतीय वायु सेना (IAF), नौसेना (Navy), सीमा सुरक्षा बल (BSF) आदि में।
  • लोगों के लिए: एयरलाइंस (Air India, IndiGo, SpiceJet, आदि) और निजी ऑपरेटरों में।
  • कमर्शियल उड़ान में चुनाव की संख्या मुख्य रूप से एयरलाइंस की मांग पर निर्भर करती है।
  • चयन प्रक्रिया- सिविल पायलट बनने के लिए, उम्मीदवारों को पहले किसी सर्टिफाइड फ्लाइंग स्कूल से कमर्शियल पायलट लाइसेंस (CPL) लेना होता है। इसमें आमतौर पर 1.5 से 2 साल का समय लग जाता है। CPL के बाद, वे कई एयरलाइंस में जूनियर फर्स्ट ऑफिसर या ट्रेनी पायलट के रूप में अप्लाई करते हैं।

 

कुल मिलाकर, भारत में हर साल कम से कम 1000 से 1500 नए पायलट (कमर्शियल, सैन्य और अन्य सरकारी बलों को मिलाकर) भर्ती किए जाते हैं, जिसमें कमर्शियल फ्लाइट्स का हिस्सा सबसे बड़ा होता है। सामान्य परिस्थितियों में, यह संख्या 500 से 800 के बीच रह सकती है।

 

अमेरिका और UK में क्या हैं हालात?

  • अमेरिका के फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FFA) और यूरोप की यूनियन एविएशन सेफ्टी एजेंसी (EASA) ने पायलटों को जरूरी आराम देने के लिए कुछ ऐसे ही नियम बनाए हैं जो अमेरिका और यूरोपीय देशों की लगभग सभी एयरलाइंस पर लागू किए जाते हैं। 
  • अमेरिका में मौजूद नियम के अनुसार पायलट हफ्ते में 32 घंटे और महीने में 100 घंटे से ज्यादा  उड़ान नहीं भर सकते। उन्हें हफ्ते में एक बार लगातार 24 घंटे का आराम दिया जाता है। अगर तीन पायलट क्रू-सेटअप होने पर भी पायलट 12 घंटे से ज्यादा की उड़ान नहीं भर सकते जबकि यूरोप में पायलट एक दिन में 10 घंटे से ज्यादा उड़ान नहीं भर सकते। कुछ खास परिस्थितियों में इसे 12 घंटे तक बढ़ाया जा सकता है। दो उड़ान के बीच इनको 10 से 11 घंटे का आराम देना जरूरी है। इन्हें हफ्ते में एक बार 36 घंटे का आराम मिलता है। 


आबादी बढ़ने के साथ सरकार पायलटों की संख्या बढ़ाने के लिए नीतियां और मजबूत बना सकती है। ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में एंट्री को थोड़ा आसान बनाने से देश में पायलटों की संख्या बढ़ सकती है। सरकारी संस्थाओं में पढ़ाई का खर्चा प्राइवेट संस्थानों से कम है पर वहां एडमिशन मिलना थोड़ा मुश्किल है। इंडिगो मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है।

 

सरकार ने इस संकट के बीच एयर फेयर कैप लागू कर दिया है। इन तमाम दिक्कतों के बीच आबादी के लिहाज से पायलटों की संख्या बेहद कम है। एयरपोर्ट और फ्लाइट्स की संख्या बढ़ाने  के साथ पायलटों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। सरकार अगर FDTL के नियम लागू करना चाहती है तो उन्हें इस समस्या पर खासा ध्यान देने की जरूरत है।