राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने राज्यों के बिल पर डेडलाइन तय करने के सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाए हैं। राष्ट्रपति मुर्मू ने पूछा है कि जब संविधान में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट कैसे समयसीमा तय करने का फैसला दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 8 अप्रैल को एक फैसला दिया था, जिसमें राज्यों के बिल पर गवर्नर और राष्ट्रपति को फैसला करने के लिए 3 महीने की डेडलाइन तय की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला तमिलनाडु सरकार और गवर्नर के मामले में दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल बिल को लंबे समय तक रोककर नहीं बैठ सकते।
अब राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट की इस वैधता पर सवाल उठाए हैं। इसके लिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 का हवाला दिया है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 200 में राज्यपाल और 201 में राष्ट्रपति की शक्तियों और बिल को मंजूरी देने या न देने की प्रक्रियाओं का जिक्र है लेकिन इनमें कोई समयसीमा तय नहीं की गई है।
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राष्ट्रपति ने पूछे 14 सवाल
- अनुच्छेद 200 के तहत बिल पेश किए जाने पर राज्यपाल के कौन से संवैधानिक विकल्प हैं?
- क्या राज्यपाल इन विकल्पों का प्रयोग करने के लिए कैबिनेट की सलाह लेने के लिए बाध्य हैं?
- क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?
- क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल के फैसलों की न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है?
- अगर संविधान में राज्यपाल के लिए कोई समयसीमा नहीं है तो क्या अदालत ऐसा कर सकती है?
- क्या राष्ट्रपति के फैसले को भी अदालत में चुनौती दी जा सकती है?
- क्या राष्ट्रपति के फैसलों के लिए भी अदालत कोई समयसीमा तय कर सकती है?
- अगर राज्यपाल के पास कोई बिल है तो क्या राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से राय ले सकते हैं?
- क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों से लागू होने वाले कानून से पहले ही अदालत उस पर सुनवाई शुरू कर सकती है?
- क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करके राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसलों को बदल सकता है?
- क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की सहमति के बिना विधानसभा से पास कानून लागू होता है?
- क्या संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच को भेजना जरूरी है?
- क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत ऐसा फैसला दे सकता है जो संविधान के मौजूदा प्रावधानों से मेल न खाता हो?
- क्या संविधान सुप्रीम कोर्ट को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवाद को सुलझाने की अनुमति देता है?
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
पिछले कुछ सालों में कई बार ऐसे हालात बने हैं, जब विधानसभा से पास हुए बिल राज्यपाल के पास अटक गए। यह मामला तमिलनाडु की स्टालिन सरकार और गवर्नर से जुड़ा था। तमिलनाडु सरकार का कहना था कि कई बिलों को राज्यपाल आरएन रवि ने लटका कर रखा है। इसे लेकर ही 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्यपाल को अपने पास बिल को अनिश्चितकाल के लिए रोकने का अधिकार नहीं है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने डेडलाइन तय की थी। कोर्ट ने कहा था कि अगर कैबिनेट की सलाह पर राज्यपाल बिल को रोकते हैं या उसे राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो उन्हें यह सब एक महीने के भीतर करना होगा।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर राज्यपाल बिल पर मंजूरी रोकते हैं या उसे राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर इस पर फैसला लेना होगा। इसके अलावा, अगर राज्यपाल बिल को वापस भेजते हैं और विधानसभा दोबारा उसे पास कर देती है तो फिर राज्यपाल को एक महीने में इसे मंजूरी देनी होगी।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया था कि अगर राज्यपाल या राष्ट्रपति समयसीमा के भीतर कोई फैसला नहीं लेते हैं तो सरकारें अदालत जा सकती हैं।