दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर मिले नोट के लिए गठित जांच समिति की रिपोर्ट गुरुवार को सामने आ गई। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोर रूम पर 'गुप्त या सक्रिय नियंत्रण' था, जहां से बड़ी मात्रा में अधजले नोट मिले थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इससे जस्टिस यशवंत वर्मा के भ्रष्टाचार का पता चलता है। यह आरोप इतने गंभीर हैं कि जस्टिस वर्मा को हटाया जाना चाहिए। 

 

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय समिति ने 10 दिनों तक मामले की पड़ताल की। समिति ने इसमें 55 गवाहों से पूछताछ की और जस्टिस वर्मा के आधिकारिक सरकारी आवास के उस स्टोर रूस का दौरा किया, जिसमें आग लगने के बाद अधजली नोट की गड्डियां मिली थीं।

हाई कोर्ट के मौजूदा जज थे जस्टिस वर्मा

यह घटना इसी साल 14 मार्च की है, जब रात करीब 11.35 बजे जस्टिस वर्मा के स्टोर रूम में आग लग गई थी। जस्टिस वर्मा उस समय दिल्ली हाई कोर्ट के मौजूदा जज थे। मामला सामने आने के बाद उनका तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट में कर दिया गया था। हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट में तबादला होने के बाद जस्टिस वर्मा का वहां के वकीलों में काफी विरोध किया था।

महाभियोग चलाने की सिफारिश

रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए भारत के पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर जस्टिस यशवंत न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की थी। जांच समिति ने 64-पेज की अपनी रिपोर्ट जमा की है।

 

यह भी पढ़ें: 'देश में अंग्रेजी बोलने वालों को शर्म आएगी', ऐसा क्यों बोले अमित शाह?

 

समिति ने रिपोर्ट में कहा है, 'इस तरह समिति का मानना ​​है कि नकदी नोट राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के 30 तुगलक क्रीसेंट स्थिति आवास के स्टोर रूम में पाया गया था, जो आधिकारिक तौर पर जस्टिस वर्मा के कब्जे में था। इतना ही नहीं, स्टोर रूम पर जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था।'

सही पाए गए सबूत- समिति

रिपोर्ट के मुताबिक, 'मजबूत सबूतों के जरिए से यह स्थापित होता है कि जले हुए नोट 15 मार्च 2025 को सुबह 30 तुगलक क्रीसेंट स्थित आवास के स्टोर रूम से निकाले गये थे।' रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, 'रिकॉर्ड पर मौजूद प्रत्यक्ष और इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को ध्यान में रखते हुए, यह समिति दृढ़ता से इस बात पर सहमत है कि भारत के चीफ जस्टिस के 22 मार्च के पत्र में वर्णित आरोपों में पर्याप्त तथ्य हैं और भ्रष्टाचार साबित पाया गया है। यह भ्रष्टाचार इतना गंभीर है कि जस्टिस वर्मा को हटाने की कार्यवाही शुरू करने की जरूरत है।'

जांच प्रक्रिया के तहत निष्कर्ष

समिति ने जस्टिस वर्मा और 55 गवाहों के बयानों का गहराई से विश्लेषण किया और आंतरिक समिति द्वारा निर्धारित जांच प्रक्रिया के तहत अपने निष्कर्ष पेश किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जज की ईमानदारी को ऐसे पैमाने से मापा जाता है जो सिविल पदधारक से अपेक्षित ईमानदारी से कहीं ज्यादा कठोर होता है। समिति ने कहा कि जब उच्चतर न्यायपालिका के कार्यालय सवालों के घेरे में होते हैं तो ईमानदारी का तत्व 'प्रमुख, प्रासंगिक और अपरिहार्य' हो जाता है।

 

यह भी पढ़ें: कांग्रेस से मतभेद, असीम मुनीर और ट्रंप पर खुलकर बोले शशि थरूर

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायिक कार्यालय का अस्तित्व आम नागरिकों के विश्वास पर आधारित है और इस विश्वास की गुणवत्ता जज द्वारा न केवल कोर्ट के अंदर बल्कि कोर्ट के बाहर प्रदर्शित व्यवहार और आचरण से जुड़ा होता है। जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की सिफारिश करते हुए समिति ने कहा है, 'इस संबंध में कोई भी कमी जनता के विश्वास को खत्म कर सकती है, जिसे सख्ती से देखा जाना चाहिए।' तीन-सदस्यीय समिति में जस्टिस नागू के अलावा हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिसअनु शिवरामन भी शामिल थे।