केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश की भाषा विरासत और गौरव को दोबारा स्थापित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, 'हमारे सबके जीवन में अंग्रेजी बोलने वालों को शर्म आएगी। ऐसे समाज का निर्माण अब दूर नहीं है। हमारी देश की भाषाएं, हमारी संस्कृति का गहना हैं। देसी भाषाओं के बगैर हम भारतीय ही नहीं रहते हैं।' शाह ने कहा कि हमारे देश, इतिहास, संस्कृति और धर्म को कोई विदेशी भाषा नहीं समझा सकती है। दृढ़ निश्चयी लोग ही बदलाव ला सकते हैं। आधी-अधूरी विदेशी भाषाओं से संपूर्ण भारत की कल्पना नहीं हो सकती, केवल और केवल भारतीयता और भारतीय भाषाओं से हो सकती है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आगे कहा, 'मुझे पता है कि यह लड़ाई कितनी कठिन है। मुझे यह भी मालूम है कि यह लड़ाई भारतीय समाज जीतेगा। एक बार फिर से आत्म गौरव के साथ हम हमारा देश चलाएंगे, सोच, शोध और नतीजे निकालेंगे। अपनी भाषाओं में विश्व का नेतृत्व भी करेंगे। इसमें किसी को कोई संशय करने की जरूरत नहीं है।' पूर्व आईएएस अधिकारी आशुतोष अग्निहोत्री की पुस्तक 'मैं बूंद स्वयं, खुद सागर हूं' के विमोचन के मौके पर अमित शाह ने कहा कि हमें गुलामी के अवशेषों को त्यागना होगा और अपनी भाषाओं को गर्व से अपनाना होगा।
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'2047 में हम दुनिया में सर्वोच्च स्थान पर होंगे'
अपने संबोधन में गृह मंत्री शाह ने कहा कि पीएम मोदी ने अमृतकाल में पंच प्राण की नींव रखी है। विकसित भारत का लक्ष्य, गुलामी के हर अंश से मुक्ति, अपनी विरासत पर गर्व, एकता और एकजुटता को समर्पित रहना और हर नागरिक में कर्तव्य की भावनाओं को प्रदीप्त करना। मैं देशभर में घूमता हूं और लोगों से संवाद करता हूं। यह पंच प्राण आज 130 करोड़ लोगों का संकल्प बन चुका है। 2047 में हम विश्व में सर्वोच्च स्थान पर होंगे। इसमें हमारी भाषाओं का बहुत बड़ा योगदान होगा। हमारी भाषाओं को न केवल भारत बल्कि विश्व कल्याण के लिए तकनीकी आधार पर उपलब्ध कराने में हम सफल होंगे।
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प्रशासनिक अधिकारियों की ट्रेनिंग में बदलाव की आवश्यकता: शाह
प्रशासनिक अधिकारियों की ट्रेनिंग में सुधार की बात केंद्रीय गृह मंत्री ने कही। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों की ट्रेनिंग में बदलाव की जरूरत है। मौजूदा प्रणाली में औपनिवेशिक युग की झलक दिखती है। गृह मंत्री ने साहित्य को समाज का आत्मा बताया। साहित्य ऐसी शक्ति है जिसने ऐतिहासिक चुनौतियों के वक्त भारत को संभाले रखा। उन्होंने आगे कहा कि जब हमारा देश घोर अंधकार में डूबा था तब भी साहित्य ने हमारे धर्म, आजादी और संस्कृति के दीप जलाए रखे।