लव मैरिज और अपहरण, सुप्रीम कोर्ट तक कैसे पहुंचा ADGP का मामला?
तमिलनाडु में एडीजीपी एचएम जयराम को हिरासत में लेने और निलंबित करने का मामला खूब चर्चा में है। अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबी-सीआईडी को सौंप दी है। जानिए पूरा मामला।

एडीजीपी एचएम जयराम। ( Photo Credit: X/@sathrak1967)
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADGP) एचएम जयराम के खिलाफ जांच क्राइम ब्रांच-क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीबी-सीआईडी) को सौंप दी है। शीर्ष अदालत ने एचएम जयराम को हिरासत में लेने के हाईकोर्ट के निर्देश को भी खारिज कर दिया। जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और मनमोहन की पीठ ने निर्देश दिया कि मामले सुनवाई मद्रास हाई कोर्ट की अन्य पीठ करेगी। पुलिस अधिकारी कि विरुद्ध कार्रवाई का निर्देश देने वाली पीठ मामले में दखल नहीं देगी। आइये जानते हैं कि एडीजीपी जयराम पर क्या आरोप हैं और यह मामला कैसे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा?
पूरा मामला तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले के थिरुवलंगडु तालुका का है। यहां के रहने वाले धनुष का थेनी जिले की 21 वर्षीय विजया के साथ प्रेम प्रसंग था। लड़की ने परिवार के खिलाफ जाकर धनुष से विवाह किया। धनुष चेन्नई की एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता है। विवाह के बारे में जब लड़की के परिजनों को पता चला तो वह धनुष के घर पहुंचे। 6 मई को लड़की के परिवार वालों ने धनुष के छोटे भाई का अपहरण कर लिया। लड़के की मां की शिकायत पर पुलिस ने 5 लोगों को गिरफ्तार किया।
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इनकी हुई गिरफ्तारी
- लड़की के पिता वनराजा
- मणिकंदन
- गणेशन
- सरथकुमार
- बर्खास्त पुलिस अधिकारी माहेश्वरी
क्या कहती है पुलिस की कहानी?
पुलिस के मुताबिक पूछताछ में आरोपियों ने विधायक पूवई एम जगन मूर्ति और एडीजीपी जयराम का नाम लिया। पुलिस का कहना है कि लड़की के पिता ने पूर्व कांस्टेबल महेश्वरी से संपर्क किया। उसने कथित तौर पर एडीजीपी जयराम से बात की। आरोप के मुताबिक बाद में जयराम ने विधायक जगन मूर्ति से मदद मांगी। जब लड़की का परिवार धनुष को खोज नहीं पाया तो विधायक के लोगों ने उसके छोटे भाई को अगवा कर लिया। मगर मामला पुलिस तक पहुंचने पर उसे छोड़ दिया। पूवई एम. जगन मूर्ति तमिलानाडु की किल्वैथिनाकुप्पम सीट से विधायक और पुरात्ची भारतम पार्टी के मुखिया हैं। उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया है।
एडीजीपी एचएम जयराम पर क्या आरोप?
एचएम जयराम पर अपहरण में शामिल होने और अपनी कार देने का आरोप है। पुलिस का आरोप है कि एडीजीपी जयराम की कार में अगवा लड़के को ले जाया गया। कार को एक कांस्टेबल चला रहा था। इसमें वनराजा और महेश्वरी भी सवार थे। बाद में बस स्टैंड के पास एडीजीपी की आधिकारिक कार से लड़के को छोड़ा गया। हाई कोर्ट में अभियोजन पक्ष ने बताया कि 7.5 लाख रुपये की नकदी भी मिली है।
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कैसे हाई कोर्ट पहुंचा मामला?
15 जून को तमिलनाडु पुलिस ने तिरुवल्लूर जिले में विधायक पूवई एम जगन मूर्ति को गिरफ्तार करने की कोशिश की। इस बीच पार्टी के लगभग 2000 कार्यकर्ताओं ने हंगामा कर दिया और विधायक मौके से निकलने में कामयाब रहे। अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ विधायक ने मद्रास हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की। 16 जून को हाई कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के दौरान तीखी टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने विधायक को पुलिस के सामने पेश होने का निर्देश दिया। विधायक की याचिका पर हाई कोर्ट ने कहा था कि आप पुलिस जांच से क्यों डरते हैं? विधायक को तो एक रोल मॉडल होना चाहिए। हाई कोर्ट ने एडीजीपी जयराम को हिरासत में लेने का निर्देश दिया।
जयराम को गिरफ्तार नहीं किया: तमिलनाडु
एडीजीपी जयराम ने मद्रा हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 18 जून को शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश पर हैरानी जताई। एडीजीपी जयराम के वकील का आरोप है कि उनके मुवक्किल को 24 घंटे हिरासत में रखा गया और 17 जून को शाम करीब 5 बजे रिहा किया गया। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया। बुधवार को तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जयराम को गिरफ्तार नहीं किया गया है। वह पहले ही जांच में शामिल हो चुके हैं।
'गिरफ्तार नहीं किया तो निलंबित कैसे किया'
शीर्ष अदालत ने कहा, 'कल राज्य के वकील ने बताया कि उन्हें (जयराम) गिरफ्तार नहीं किया गया। अगर उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया तो उन्हें किस आधार पर निलंबित किया गया है?' अदालत ने निलंबन को मनोबल गिराने वाला बताया और तमिलनाडु सरकार से निलंबन आदेश को रद्द करने के लिए निर्देश मांगने को कहा। तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि वह चाहते हैं कि निलंबन आदेश जारी रहे। जांच पूरी होने के बाद निलंबन को रद्द करने पर निर्णय लिया जाएगा।
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निलंबन के पीछे सरकार का क्या तर्क?
जयराम के वकील का तर्क है कि उन्हें उच्च न्यायालय के आदेश की वजह से निलंबित किया गया है, जबकि उन पर कोई आरोप नहीं थे। तमिलनाडु सरकार ने बताया कि उन्हें अनुशासनात्मक प्राधिकारी के नियमों के तहत निलंबित किया गया है। यह नियम भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के किसी भी उस सदस्य को निलंबित करने का अधिकार देते हैं, जिसके खिलाफ आपराधिक आरोप से जुड़ी जांच लंबित होती है।
शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दवे से पूछा था कि क्या एडीजीपी जयराम के खिलाफ जांच को विशेष शाखा या सीआईडी को स्थानांतरित किया जा सकता है। इसके बाद वरिष्ठ वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि प्रदेश सरकार मामले को सीबी-सीआईडी को सौंपने पर सहमत है। अब शीर्ष अदालत ने मामले की जांच सीबी-सीआईडी को सौंप दी है।
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