तिरुपति हो या हाथरस, जब-जब भगदड़ मचती है प्रशासन पर सवाल उठते हैं। क्या आपको पता है कि भारत में हर साल भगदड़  से कितने लोग मरते हैं। अगर औसतन आंकड़े निकाले जाएं तो करीब 130 से ज्यादा लोग हर साल भगदड़ में मारे जाते हैं। ये आंकड़े डरावने हैं।

आंध्र प्रदेश के तिरुमला के भगवान वेंकटेश्वर मंदिर में बुधवार रात भगदड़ मची और 6 लोगों की मौत हो गई। 30 से ज्यादा लोग गंभीर तौर पर जख्मी हो गए। श्रद्धालु वैकुंठ द्वार दर्शनम के लिए टिकट के इंतजार में थे। वे लाइन में लगे थे तभी कुछ ऐसा हुआ कि भगदड़ मची और 6 लोग मारे गए।
 
मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने तिरुमला तिरुपति देवस्थानम और राज्य प्रशासन को निर्देश दिया है कि ऐसे हादसे दोबारा नहीं होने चाहिए। भगदड़ से बचने के लिए सभी जरूरी इंतजाम किए जाएं। उत्तर प्रदेश में भी ऐसे निर्देश दिए जा चुके हैं, जब हाथरस में हादसा हुआ है। 

हाथरस में 2 जुलाई 2024 को एक हादसा हुआ था। नारायण साकार हरि उर्फ भोलेबाबा के सत्संग में एक भगदड़ मची और 121 लोगों की मौत हो गई। भोलेबाबा जब प्रवचन करके बाहर निकला तो उसकी पैरों की धूल लेने के लिए लोग भागे। 80 हजार की भीड़ आने वाली थी, 2.5 लाख श्रद्धालु जुटे। भीड़ मैनेजमेंट के लिए सिर्फ 50 पुलिसकर्मी तैनात थे। सवाल प्रशासन पर ही उठे। 

गलतियां क्या होती हैं?
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर ने हाथरस केस की सुनवाई के दौरान एक अहम बात कही है। जस्टिस शेखर ने कहा, 'गरीब अनपढ़ लोगों की भीड़ बुला ली जाती है, कोई व्यवस्था नहीं की जाती है। श्रद्धा-विश्वास में भीड़ आपा खो देती है और भगदड़ में मौतें हो जाती हैं। प्रशासनिक जिम्मेदारी बनती है।'

भगदड़ के वक्त क्या सोचते हैं लोग?
मनोविज्ञानिक और रिसर्चर ड्रिग हेल्बिंग कहते हैं कि भगदड़ के वक्त लोगों की मनोदशा 'ब्लैक होल' इफेक्ट की तरह होती है। जैसे ब्लैक होल में तारे और क्षुद्रग्रह तक समा जाते हैं, ठीक वैसे ही भगदड़ के वक्त होता है। ड्रिग हेल्बिंग ईटीएच ज्युरिख में कंपाउटेशनल सोशल साइंस के प्रोफेसर हैं। यह संस्था क्राउड डायनेमिक्स पर अध्ययन करती है। ड्रिग हेल्बिंग का कहना है कि भगदड़ के वक्त भीड़ में मौजूद लोग सोचते हैं कि किसी तरह भागें। वह अनजाने में ही उसी भीड़ में शामिल हो जाते हैं जिनकी वजह से और लोग हादसे का शिकार हो जाते हैं।

ऐसे हादसों को कैसे रोकें?
- अफवाहों पर तत्काल रोक लगाकर।
- भीड़ को नियंत्रित करके
- परिसर की क्षमता से ज्यादा भीड़ की इजाजत ही न देकर। 
- प्रति व्यक्ति इतना अंतराल हो कि आपदा की स्थिति में बिना एक-दूसरे को कुचले लोग आगे बढ़ सकें।
-  भीड़ के आने और जाने के रास्ते साफ हों।
- सुरक्षाकर्मियों की पर्याप्त नियुक्ति हो। 
- कंट्रोल रूम हो, जिसके जरिए भीड़ पर निगरानी रखी जा सके। 
- बिना प्रशासनिक इजाजत के किसी भी बड़े आयोजन की इजाजत न दी जाए।

सावधानी क्या बरतें?
- बहुत भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें।
- जिस भीड़ में प्रशासनिक हस्तक्षेप न हो, वहां बिलकुल न जाएं।
- अगर भगदड़ मच गई है तो सुरक्षित जगह भागें न कि उस दिशा में भागें जिधर भीड़ भाग रही है।
-  अफवाहों से बचें और अफवाहें न फैलाएं। 
- भगदड़ की आशंका दिखे तो तत्काल पुलिस को सूचना दें।

साल दर साल भगदड़ के आंकड़े क्या हैं?
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बाते हैं कि हर साल भगदड़ के मामले सामने आते हैं। साल 2009 से 2024 तक के आंकड़े डरावने हैं। साल 2008 में भगदड़ के 105 मामले सामने आइए थे। साल 2009 में देश में भगदड़ के 1532 केस सामने आए थे। साल 2010 में 107, 2011 में 314, 2012 में 62, 2013 में 557, 2014 में 139, 2015 में 424, 2016 में 31, 2017 में 26, 2018 में 5, 2019 में 14, 2020 में 16, 2021 में 25 केस सामने आए थे।


हर साल भगदड़ की वजह से कितनी मौतें?

NCRB के ही आंकड़े बताते हैं कि साल 2001 से 2022 तक भगदड़ की वजह से कितनी मौतें हुई हैं। साल 2001 से 2022 के बीच भगदड़ की वजह से 3074 लोगों की मौत हुई है। साल 2008 में 43, 2009 में 110,  2010 में 113, 2011 में 489, साल 2012 में 70, 2013 में 400, 2014 में 178, 2015 में 480, 2016 में 45, 2017 में 49, 2018 में 6, 2019 में 12, 2020 में 14, 2021 में 23, 2022 में 22 लोगों ने भगदड़ में अपनी जानें गंवाई हैं।