सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को एक बार फिर फटकार लगाई है। मामला तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन (TASMAC) के खिलाफ ED की जांच से जुड़ा था। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा, 'आपकी ED सारी हदें पार कर रही है। किसी कॉर्पोरेशन के खिलाफ कैसे कार्रवाई कर सकती है?' चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा, 'ED हद पार कर रही है। आप देश के संघीय ढांचे का पूरी तरह से उल्लंघन कर रहे हैं।'


TASMAC तमिलनाडु की सरकारी कंपनी है, जो शराब का कारोबार संभालती है। इस साल मार्च में ED ने इससे जुड़े 20 ठिकानों पर छापेमारी की थी। चेन्नई में कंपनी के हेडक्वार्टर पर भी छापा मारा गया था। ED की इस कार्रवाई को तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।


तमिलनाडु सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 2014 से 2021 के बीच शराब की दुकानों पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर राज्य सरकार ने खुद 41 FIR दर्ज की हैं। इस मामले में 2025 में ED की एंट्री हुई थी। ED ने हेडक्वार्टर पर छापा मारा और अधिकारियों के फोन और डिवाइसेस जब्त कर लिए। 


इस पर चीफ जस्टिस गवई ने कहा, 'आप किसी व्यक्ति के खिलाफ तो केस दर्ज कर सकते हैं लेकिन किसी सरकारी कॉर्पोरेशन के खिलाफ आपराधिक मामला कैसे दर्ज किया जा सकता है? आपकी ED सारी हदें पार कर रही है, मिस्टर राजू।' इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ED को किसी भी तरह की कार्रवाई करने से रोक दिया है।

 

यह भी पढ़ें-- क्या मीर जाफर ने अकेले गद्दारी की थी? 'एक रात की जंग' की पूरी कहानी

इस मामले के बारे में जानें सबकुछ

  • केस क्या है?: आरोप है कि TASMAC के अफसरों ने शराब की हर बोतल पर 10 से 30 रुपये तक सरचार्ज लगा दिया और लोगों से इसकी कीमत ज्यादा वसूली गई। इस मामले में 2014 से 2021 के बीच 41 FIR दर्ज हुई हैं। यह सारी FIR अलग-अलग व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज की गई हैं।
  • ED की एंट्री कैसे?: इस मामले में इसी साल मार्च में ED की एंट्री हुई। इस साल 6 से 8 मार्च के बीच ED ने TASMAC के चेन्नई हेडक्वार्टर समेत 20 ठिकानों पर छापेमारी की थी। ED का दावा है कि TASMAC के अफसरों ने गड़बडियां कीं और इसमें 1,000 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार हुआ है।
  • राज्य सरकार की याचिका क्या?: 23 अप्रैल को मद्रास हाईकोर्ट ने ED की कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसे तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सरकार ने याचिका में कहा कि 41 FIR में से किसी में भी TASMAC आरोपी नहीं है, इसलिए ED इसके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती।
  • ED ने क्या गलत किया?: 6 से 8 मार्च के बीच ED ने TASMAC से जुड़े ठिकानों पर छापा मारा था। तमिलनाडु सरकार ने याचिका में ED की 60 घंटे तक चली कार्रवाई की वैधता पर सवाल उठाए थे। इस दौरान ED ने जो जब्ती की थी, उस पर भी सवाल उठाए थे।
  • ED का क्या है कहना?: सुप्रीम कोर्ट में जांच एजेंसी की तरफ से पेश हुए ASG एसवी राजू ने कहा कि इस मामले में 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का भ्रष्टाचार हुआ है और ED इस मामले में तो कम से कम अपनी हद पार नहीं कर रही है।
  • सुप्रीम कोर्ट में अब आगे क्या?: चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने इस मामले पर ED को नोटिस दिया है। इस पर 14 दिन में जवाब मांगा है। इस बीच इस मामले में ED किसी भी तरह की कार्रवाई पर रोक लगा दी है।

यह भी पढ़ें-- कट्टरता नहीं, वफादारी जरूरी; आतंकियों की भर्ती का पैटर्न क्या होता है?

बार-बार उठ रहे ED की कार्रवाई पर सवाल?

यह पहली बार नहीं है, जब ED की कार्रवाई पर सवाल उठे हों। हाल के सालों में कई मामलों में ED की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं।


हाल ही में 6 मई को छत्तीसगढ़ के कथित शराब घोटाले में गिरफ्तारियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'अब कई सारे मामलों में देखने को मिल रहा है और यह ट्रेंड सा बन रहा है कि ED बिना किसी सबूत के आरोप लगा दे रही है।' 


पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने ED के गिरफ्तारी करने के अधिकार पर बड़ा फैसला दिया था। पहले ED के पास यह अधिकार था कि अगर उसे लगता है कि कोई व्यक्ति मनी लॉन्ड्रिंग का दोषी हो सकता है तो उसे गिरफ्तार कर सकती थी। ED को यह अधिकार PMLA की धारा 19 के तहत मिला था। पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा था कि अगर स्पेशल कोर्ट ने किसी मामले का संज्ञान ले लिया है तो ED फिर आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती। अगर ED गिरफ्तार करना चाहती है तो उसे स्पेशल कोर्ट से मंजूरी लेनी होगी।


इसी साल जनवरी में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ED की कार्रवाई को 'अत्याचार' और 'अमानवीय' बताया था। कोर्ट ने यह टिप्पणी हरियाणा की सोनीपत सीट से पूर्व विधायक सुरेंद्र पंवार से 15 घंटे तक की गई पूछताछ पर की थी। 


कोर्ट ने कहा था, 'यह ED के अफसरों का अमानवीय बर्ताव था। क्योंकि मामला किसी आतंकी गतिविधि से नहीं, बल्कि कथित अवैध खनन से जुड़ा था। ऐसे मामलों में लोगों के साथ बर्ताव करने का यह तरीका नहीं है। आपने एक व्यक्ति को बयान देने के लिए मजबूर किया है।'

 

यह भी पढ़ें-- संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर 'हमले' के 'विवाद' बनने की पूरी कहानी

ED कितनी ताकतवर है?

साल 1947 में फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (FERA) बना। इसी के तहत, 1 मई 1956 को ED का गठन हुआ था। शुरुआत में ED का काम विदेशों में चल रहे स्टॉक मार्केट में लेनदेन कर रहे लोगों की जांच करना था। बाद में कई और कानून बने, जिसने ED की ताकत बढ़ा दी। साल 2012 तक ED मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े उन्हीं मामलों की जांच कर सकती थी, जिनमें 30 लाख से ज्यादा की हेराफेरी हुई थी। 2013 में यूपीए की सरकार ने कानून में संशोधन कर इस 30 लाख की सीमा को खत्म कर दिया गया। 

 


ED की सबसे ज्यादा ताकत तब बढ़ी, जब 2019 में मोदी सरकार ने PMLA में जबरदस्त बदलाव किए। सरकार ने इस कानून की धारा 17(1) और 18 में बदलाव किया। इसने ED को किसी के घर पर छापा मारने, तलाशी लेने और गिरफ्तारी करने का अधिकार दे दिया। इससे पहले तक ED ऐसा तभी कर पाती थी, जब किसी दूसरी जांच एजेंसी या पुलिस FIR या चार्जशीट में PMLA की धाराएं लगाती थीं। अब ED खुद ही FIR दर्ज कर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है।

 


इस कानून में एक नई धारा 45 भी जोड़ी गई। इसमें जमानत की शर्तें कठोर कर दी गईं। धारा 45 में दो शर्तें तय की गईं हैं और वह पूरी होने पर ही आरोपी को जमानत मिलती है। पहली शर्त यह है कि आरोपी को जमानत देने से पहले ED को इसका विरोध करने का पूरा मौका दिया जाएगा। दूसरी शर्त यह है कि ED के विरोध के बावजूद अगर कोर्ट को लगता है कि आरोपी निर्दोष है और जमानत पर रिहा करने पर वह कोई अपराध नहीं करेगा, तो उसे जमानत दी जा सकती है।


धारा 45 में ही यह प्रावधान किया गया कि ED चाहे तो बिना वारंट के भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है। ED अगर किसी को समन जारी करती है, तब भी उसे यह बताने की जरूरत है कि व्यक्ति को क्यों बुलाया जा रहा है। 

 


ED के मामले में एक सख्त बात यह भी है कि उसके सामने दिया गया कोई बयान कोर्ट में सबूत के तौर पर मान्य होता है। जबकि, दूसरी जांच एजेंसियों के मामलों में बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया जाता है। इसमें सबसे बड़ी सख्ती यह है कि 'बर्डन ऑफ प्रूफ' आरोपी पर होता है। यानी आरोपी को अपनी बेगुनाही खुद साबित करनी होती है।

 

यह भी पढ़ें-- कहानी कश्मीर की... कुछ पाकिस्तान के पास तो कुछ चीन के पास

ED के मामलों में कितनी सजा?

ED तीन तरह के अपराधों की जांच करती है। पहला- मनी लॉन्ड्रिंग। दूसरा- विदेशी मुद्रा का अवैध लेन-देन। और तीसरा- भगोड़े आर्थिक अपराधियों के अपराध की जांच करना और उनकी संपत्ति जब्त करना।


ED की 2024-25 की रिपोर्ट के मुताबिक, PMLA आने के बाद से अब तक जांच एजेंसी ने 7,771 केस दर्ज किए हैं। इनमें से 1,739 मामलों में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है। ED की रिपोर्ट बताती है कि PMLA के अब तक 47 मामलों का निपटारा हो चुका है, जिनमें 44 में आरोपी का दोषी साबित हुआ है। इस तरह से ED का कन्विक्शन रेट 93.6% है।  

 


इसी साल 18 मार्च को केंद्र सरकार ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में राजनेताओं के खिलाफ दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग के मामले और कन्विक्शन के बारे में जानकारी दी थी। 


वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू ने बताया था कि 1 अप्रैल 2015 से लेकर 28 फरवरी 2025 के बीच मौजूदा और पूर्व सांसदों, विधायकों और किसी भी पार्टी के नेताओं के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के 193 मामले दर्ज किए हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि इनमें से सिर्फ 2 ही मामलों में सजा मिली थी। 2016-17 और 2019-20 में 1-1 नेता को दोषी ठहराया गया था।