जब किसी दंपति के बीच तलाक होता है तो पति को पत्नी के जीवन-निर्वाह के लिए गुजारा भत्ता देना होता है। कुछ मामलों में पत्नी भी सक्षम हो, तब भी गुजारा भत्ता देने का भार पति पर होता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्थायी गुजारा भत्ता की राशि तय करते वक्त कुछ दिशा-निर्देशों का पालन जरूरी बताया है।

यह फैसला तब आया है, जब बेंगलुरु में एक आईटी एक्सपर्ट ने अपनी पत्नी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाकर खुदकुशी कर ली। उसने न्यायपालिका से लेकर महिला संबंधी कानूनों तक पर सवाल उठाए और अपने अंतिम वीडियो में कहा कि पत्नी और ससुराल के लोग जबरन वसूली कर रहे हैं, प्रताड़ित कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला, हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि विवाह में शादी बचाने के लिए जरूरी हर बात खत्म हो चुकी है। स्थायी गुजारा भत्ता देना ही विकल्प है। लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने मंगलवार को तलाक से जुड़े एक केस की सुनवाई के दौरान 8 दिशा-निर्देश दिए हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा है?
- पक्षकारों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का ध्यान रखें।
- पत्नी और आश्रित बच्चों की अनिवार्य जरूरतें क्या हैं।
- पक्षकारों की व्यक्तिगत योग्यताएं क्या हैं, रोजगार की स्थिति क्या है।
- आवेदक के पास कितनी संपत्ति है, उनसे आय कितना हो रहा है।
- वैवाहिक घर में पत्नी किस जीवन स्तर में जी रही है।
- महिला ने पारिवारिक जिम्मेदारियां उठाने के लिए किस स्तर की नौकरी छोड़ी है।
- जो महिला  कामकाजी नहीं है, उसने मुकदमे के दौरान जो खर्च किया है, वह भी दिया जाए।
- पति की हैसियत, उसकी आय, भरण और पोषण की जिम्मेदारी और कर्ज के आधार पर गुजारा भत्ता तय किया जाए।


सुप्रीम कोर्ट ने और क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये 8 फैक्टर, एक सिंपल फॉर्मूला नहीं है, स्थायी गुजारा भत्ता तय करने के लिए ये दिशानिर्देश हैं। कोर्ट ने किरण ज्योत मैनी बनाम अनीश प्रमोद पटेल का जिक्र करते हुए कहा कि स्थायी गुजारा भत्ता की राशि पति को सजा न दे बल्कि पत्नी के एक सभ्य जीवन स्तर के लिए हो। क्रूरता कानून का दुरुपयोग व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए नहीं होनी चाहिए।