बेंगलुरु में एक इंजीनियर की सुसाइड पर देश में हंगामा बरपा है। महिला कानूनों की फिर से समीक्षा करने की मांग उठ रही है, इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों से जुड़े कानून पर अहम टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं को पुरुषों के खिलाफ अपने कानूनों का इस्तेमाल बदला लेने के लिए नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने दारा लक्ष्मी नारायण बनाम स्टेट ऑफ तेलंगाना में यह टिप्पणी की है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान चेतावनी देते हुए कहा कि क्रूरता नियमों का वैवाहिक मामलों में दुरुपयोग न होने पाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क्रूरता कानून किसी से बदला लेने के व्यक्तिगत हथियार नहीं बन सकते हैं।

सप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह ने कहा, 'धारा 489 (ए) पति और उसके परिवार के द्वारा पत्नी पर किए जा रहे अत्याचारों को रोकने के लिए बनाई गई थी। यह सरकार का घरेलू हिंसा रोकने के लिए दखल है।' 

क्या है क्रूरता का कानून?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498 ए की जगह अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 86 काम करती है। धारा 86 के तहत इस मामले में दोषी व्यक्ति को 3 साल या उससे ज्यादा की कैद और जुर्माना भी देना पड़ सकता है।  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाल के दिनों में घरेलू और वैवाहिक मामलों में बेतहाशा इजाफा हुआ है। इसका नतीजा यह है कि लोग 498 ए जैसे अधिनियमों का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। पत्नी के पास अपने पति और उसके परिवार से दुश्मनी निकालने का साधन मिल गया है।

क्या था यह मामला?

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा है कि इस तरह के अस्पष्ट और सामान्य आरोपों की वजह से कानूनी प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल हो सकता है। यह पत्नी और उसके रिश्तेदारों के हाथों में हथियार की तरह साबित हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस केस को खारिज कर दिया है। एक शख्स और उसके परिवार के खिलाफ पत्नी ने केस दाखिल किया था। तेंलगाना हाई कोर्ट ने केस को खारिज कर दिया था। 

क्या है इस कानून का औचित्य?
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सौरभ शर्मा बताते हैं कि IPC की धारा 498 ए महिलाओं को सुरक्षा देने के मकसद से लाई गई थी। महिलाओं पर अत्याचार रोकने के खिलाफ यह धारा मजबूत हथियार है। पत्नियों को पति और उसके घरवालों के अत्याचार से बचाने के लिए यह धारा असरदार साबित हुई थी। अब कुछ मामले ऐसे सामने आए हैं, जब इन कानूनों का दुरुपयोग हुआ है।