विझिंजम पोर्ट भारत का पहला गहरे पानी का ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह है, जो केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित है। इसे तिरुवनंतपुरम पोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह बंदरगाह भारत के समुद्री व्यापार को बढ़ाने और विदेशी बंदरगाहों पर निर्भरता कम करने के लिए बनाया गया है। इसे अदाणी ग्रुप और केरल सरकार मिलकर बना रहे हैं। 2 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे देश को समर्पित करेंगे। इस पोर्ट से भारत को कितना फायदा होगा और यह अन्य पोर्ट से कितना अलग है, यहां जानें सबकुछ। 

 

विझिंजम बंदरगाह क्या है?

यह भारत का पहला सेमी-ऑटोमेटेड बंदरगाह है, जो बड़े-बड़े जहाजों को संभाल सकता है। इसका मुख्य काम ट्रांसशिपमेंट है, यानी विदेशी जहाजों से माल उतारकर छोटे जहाजों में लादना और भारत के अन्य बंदरगाहों तक पहुंचाना। यह कंटेनर, बल्क कार्गो और क्रूज जहाजों को भी संभालेगा। इसे केरल सरकार ने शुरू किया और अदाणी ग्रुप इसे 40 साल तक चलाएगा। 

 

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यह कहां है और क्यों खास है?

यह पोर्ट तिरुवनंतपुरम से 16 किमी दूर, कोवलम बीच के पास, केरल के दक्षिणी छोर पर स्थित है। खासियत की बात करें तो यह 10 नॉटिकल मील (लगभग 19 किमी) की दूरी पर अंतरराष्ट्रीय शिपिंग मार्ग (यूरोप, खाड़ी, और सुदूर पूर्व को जोड़ने वाला) के करीब है। इसकी गहराई 20-24 मीटर, जो भारत के किसी भी बंदरगाह से ज्यादा है। इससे बड़े जहाज आसानी से आ सकते हैं और खुदाई (ड्रेजिंग) की जरूरत नहीं पड़ती। इसका रखरखाव भी कम है यानी गाद कम जमा होती है जिससे रखरखाव सस्ता है। यह हर मौसम में काम कर सकता है और पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों का इस्तेमाल करता है। 

 

 

इसके फायदे क्या हैं?

इस बंदरगाह से भारत को आर्थिक, रणनीतिक और क्षेत्रिय फायदा होगा। आर्थिक फायदे की बात करें तो इस पोर्ट से विदेशी बंदरगाहों पर निर्भरता कम हो जाएगी। अभी भारत का 61 फीसदी माल कोलंबो (श्रीलंका), सिंगापुर, और दुबई जैसे बंदरगाहों से होकर जाता है। विझिंजम इसे भारत में ही संभालेगा, जिससे हर कंटेनर पर 200 डॉलर तक की बचत होगी। इससे रोजगार बढ़ेगा। 1,00,000 से ज्यादा नौकरियां पैदा होंगी। माल की ढुलाई तेज और सस्ती होगी, जिससे लागत और समय की बचत होगी। पहले चरण में 1 मिलियन TEUs (Twenty-Foot Equivalent Unit) (कंटेनर) और अंतिम चरण तक 6.2 मिलियन TEUs की क्षमता होगी। यह भारत की मौजूदा बंदरगाह क्षमता (4.61 मिलियन TEUs) को दोगुना करेगा। 

 

रणनीतिक फायदे की बात की जाए तो यह भारत को वैश्विक समुद्री व्यापार में मजबूत बनाएगा, जो कोलंबो और सिंगापुर जैसे बंदरगाहों से प्रतिस्पर्धा करेगा। भविष्य में नौसेना के लिए बर्थिंग सुविधाएं हो सकती हैं, जो हिंद महासागर में भारत की स्थिति को मजबूत करेंगी। इससे क्रूज टर्मिनल से कोवलम जैसे पर्यटन स्थलों को बढ़ावा मिलेगा।

 

क्षेत्रीय विकास की नजर से देखें तो केरल और दक्षिण भारत में औद्योगिक विकास, सड़क-रेल कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे का विकास होगा। NH-66 और प्रस्तावित रेल कॉरिडोर (भारत का तीसरा सबसे लंबा रेलवे सुरंग) से कनेक्टिविटी बढ़ेगी।

 

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इस पोर्ट की विशेषताएं क्या हैं?

स्वचालित क्रेन: भारत में सबसे ऊंची STS सुपर पोस्ट-पैनामैक्स क्रेन (74 मीटर), जो तेजी से माल उतार सकती है।

ब्रेकवाटर: 3.1 किमी लंबा, जो समुद्री लहरों से बंदरगाह की रक्षा करता है।

30 बर्थ: बड़े जहाजों (18,000+ TEUs) को संभालने की क्षमता।

हरित बंदरगाह: पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों का उपयोग।

क्रूज टर्मिनल: पर्यटकों के लिए सुविधा।

इसका इतिहास और विकास

इस पोर्ट को 1991 में तैयार करने का सोचा गया था। 1940 में  त्रावणकोर के दीवान सी.पी. रामास्वामी अय्यर ने इसकी संभावना देखी थी। 5 दिसंबर 2015 को अदाणी ग्रुप ने काम शुरू किया। इसका कुल लागत 20,000 हजार करोड़, जिसमें केरल सरकार और अदाणी ग्रुप का योगदान है। 

 

विवाद

स्थानीय मछुआरों, खासकर लैटिन कैथोलिक समुदाय के लोगों का दावा है कि बंदरगाह के निर्माण से समुद्री कटाव बढ़ा है, जिससे मछलियों की संख्या कम हुई और इससे उनकी आजीविका पर बुरा असर पड़ा। 2015 में निर्माण शुरू होने के बाद से मछुआरों ने विरोध किया लेकिन यह 2022 में तेज हुआ। अगस्त 2022 से मछुआरों ने बंदरगाह के काम को बार-बार रोका। नवंबर 2022 में, मछुआरों ने विझिंजम पुलिस थाने पर हमला किया, जिसमें 36 पुलिसकर्मी घायल हुए। पुलिस ने 3,000 से ज्यादा लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया।

 

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मछुआरों की मांगें
समुद्री कटाव रोकने के लिए उपाय।

मछुआरों के लिए पुनर्वास और मुआवजा।

निर्माण कार्य रोकना।

लैटिन कैथोलिक चर्च की भूमिका: इस समुदाय ने विरोध की अगुआई की, जिसे कुछ लोगों ने धार्मिक रंग देने की कोशिश की।
 
सांसद शशि थरूर ने संसद में कहा कि बंदरगाह बन गया लेकिन इसे जोड़ने वाली सड़कें नहीं बनीं, जिससे माल की ढुलाई में दिक्कत होगी। हालांकि, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बताया कि अदाणी ग्रुप को सड़क बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन उन्होंने इसे बनाने से मना कर दिया। सड़क कनेक्टिविटी की कमी से बंदरगाह की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पा रहा और स्थानीय लोगों को असुविधा हो रही है।

यह कैसे काम करता है?

विझिंजम बंदरगाह का मुख्य काम ट्रांसशिपमेंट है, यानी बड़े अंतरराष्ट्रीय जहाजों से माल को उतारना और उसे छोटे जहाजों में लादकर भारत या अन्य जगहों पर भेजना। यह भारत के समुद्री व्यापार को तेज और सस्ता बनाने में मदद करता है। विझिंजम बंदरगाह की 20-24 मीटर गहराई (भारत में सबसे ज्यादा) इसे बड़े-बड़े कंटेनर जहाजों (18,000-24,000 TEUs) के लिए सही रहेगी। ये जहाज यूरोप, मध्य पूर्व, और सुदूर पूर्व से माल लाते हैं। बंदरगाह का स्थान अंतरराष्ट्रीय शिपिंग मार्ग (सुएज-फॉर ईस्ट) से सिर्फ 10 नॉटिकल मील दूर है, इसलिए जहाज आसानी से यहां रुकते हैं। उदाहरण के लिए, एक जहाज सिंगापुर से यूरोप जा रहा है लेकिन भारत के लिए माल उतारना चाहता है। वह विझिंजम में रुकेगा।

 

प्वाइंट में समझें यह पोर्ट क्या-क्या काम करेगा?

माल उतारना (अनलोडिंग)
जहाज बंदरगाह के 30 बर्थ्स (डॉकिंग क्षेत्र) में से एक पर रुकता है। सेमी-ऑटोमेटेड क्रेन का उपयोग करके कंटेनरों को तेजी से उतारा जाता है। यह क्रेन आधुनिक और तेज हैं, जो माल को जल्दी संभाल सकती हैं। 3.1 किमी लंबा ब्रेकवाटर (लहरों को रोकने वाली दीवार) समुद्री लहरों से जहाजों और माल की रक्षा करता है। उतारे गए कंटेनरों को यार्ड में रखा जाता है, जहां उन्हें डिजिटल सिस्टम से ट्रैक किया जाता है।

 

स्वचालित लॉजिस्टिक्स सिस्टम माल को सही जगह पर पहुंचाने में मदद करता है। यह सिस्टम गलतियों को कम करता है और समय बचाता है। कुछ माल तुरंत छोटे जहाजों में लाद दिया जाता है, जबकि कुछ को भंडारण में रखा जाता है।

 

छोटे जहाजों में माल लादना (लोडिंग)
छोटे जहाज कंटेनरों को विझिंजम से भारत के अन्य बंदरगाहों (जैसे मुंबई, चेन्नई, कोच्चि, या कोलकाता) तक ले जाते हैं। यह छोटे जहाज उन बंदरगाहों तक पहुंच सकते हैं, जहां बड़े जहाज नहीं जा सकते, क्योंकि उनकी गहराई कम होती है। कुछ माल सड़क या रेल के जरिए भी भेजा जाता है।

यह क्यों जरूरी है?

पहले भारत का 61% माल कोलंबो (श्रीलंका), सिंगापुर, या दुबई जैसे विदेशी बंदरगाहों से होकर जाता था। इससे समय और पैसा प्रति कंटेनर 200 डॉलर बर्बाद होता था।

 

विझिंजम पोर्ट के होने से क्या होगा समाधान 
यह भारत में ही माल उतारेगा और भेजेगा, जिससे 1,500 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की बचत होगी। भारत के निर्यात सस्ते और तेज होंगे, जिससे वैश्विक व्यापार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। यह 1,00,000 रोजगार पैदा करेगा और केरल की अर्थव्यवस्था को बढ़ाएगा। इसकी सबसे खास बात यह है कि यह बंदरगाह तूफान या बारिश में भी काम कर सकता है। पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने वाली तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा। भविष्य में भारतीय नौसेना के लिए बर्थिंग सुविधा हो सकती है।