अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) ने 10 दिसंबर को देशभर में विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है। संगठन ने केंद्र सरकार पर भारत की बीज संप्रभुता और किसानों के अधिकारों पर त्रिस्तरीय हमला करने का आरोप लगाया है। AIKS ने देशभर के किसानों से अपील की है कि वे ड्राफ्ट सीड बिल 2025 और अंतरराष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि पादप आनुवांशिक संसाधन संधि (ITPGRFA) का विरोध करें। सवाल यह है कि सरकार ने इन प्रस्तावित बिलों के माध्यम से ऐसा क्या बदलाव किया है, जिसके खिलाफ किसान आवाज उठा रहे हैं।
AIKS ने एक बयान में कहा कि केंद्र सरकार ऐसी नीतियां आगे बढ़ा रही है जो किसानों की आजीविका को खतरे में डालने के साथ-साथ देश के बीज क्षेत्र को बहुराष्ट्रीय कृषि कंपनियों के नियंत्रण में सौंपने का रास्ता साफ कर रही हैं। संगठन ने आरोप लगाया है कि सीड बिल 2025, भारत-अमेरिका ट्रेड बातचीत और लीमा में हुई GB11 बैठक, तीनों मिलकर राष्ट्रीय हित के विरुद्ध एक समन्वित नीतिगत बदलाव दर्शाते हैं।
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ड्राफ्ट सीड बिल 2025 के मुख्य प्रावधान
ड्राफ्ट सीड बिल 2025 सरकार का प्रस्तावित एक नया कानून है, जो पुराने बीज अधिनियम 1966 और बीज नियंत्रण आदेश 1983 की जगह लेगा। इसका मुख्य उद्देश्य भारत के बीज बाजार को आधुनिक बनाना, बीजों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और नकली बीजों की बिक्री पर रोक लगाकर किसानों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करना है। हालांकि, किसान संगठनों का एक बड़ा वर्ग इस विधेयक का कड़ा विरोध कर रहा है, उनका मानना है कि यह छोटे किसानों के हितों की अनदेखी करता है और कॉर्पोरेट बीज कंपनियों को अधिक लाभ पहुंचाता है।
क्वालिटी संबंधित प्रावधान
- सभी तरह के बीजों का रजिस्ट्रेशन बिक्री से पहले अनिवार्य
- बीज उत्पादकों को बाजार में बिकने वाले बीजों की क्वालिटी और शुद्धता सुनिश्चित करनी होगी।
- मानदंडों के पालन के लिए अधिकृत एजेंसियों को बीज सर्टिफिकेटशन उपलब्ध कराए जाएंगे।
- बीजों की लेबलिंग जरूरी होगी। खासकर इसमें वेरायटी, क्वालिटी और अंकुरण दर बतानी होगी।
- गलत जानकारी और घटिया क्वालिटी वाले बीजों की बिक्री पर कानूनी कार्रवाई और दंड का प्रावधान है।
- बीज की जांच के लिए लैब स्थापित की जाएंगी जो क्वालिटी की जांच और विवाद निपटारे में सहायता करेंगी।
- बीजों का आयात तय नियमों के अनुसार ही हो सकेगा, ताकि खराब क्वालिटी के बीज न आ सकें।
किसानों के लिए क्या खास?
- किसानों को अपनी फसल से बीज रखने और उनका इस्तेमाल करने की छूट होगी। इसके लिए उन्हें रजिस्ट्रेशन कराने की जरूरत नहीं होगी।
- अगर बीज बताए गए जानकारी के अनुसार प्रदर्शन नहीं करते तो किसानों को मुआवजा पाने का अधिकार होगा।
- किसान अपने बीजों को किसी कंपनी के ब्रांड नाम से पैक करके नहीं बेच सकते हैं।
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बीज कंपनियों के लिए क्या?
- बीज कंपनियों के लिए पारदर्शी रिकॉर्ड रखना और नियमित ऑडिट अनिवार्य होगा।
- सभी वितरक और विक्रेता के लिए लाइसेंसिंग अनिवार्य होगी।
- हर बीज कंटेनर पर QR कोड लगाना अनिवार्य होगा, जो उत्पादन से लेकर बिक्री तक की पूरी ट्रैकिंग सुनिश्चित करेगा।
- इसके लिए एक केंद्रीय बीज पोर्टल (SATHI) बनाया जाएगा।
सरकार के लिए प्रावधान
- केंद्र सरकार के पास कुछ बीजों को सार्वजनिक हित में नियंत्रित या प्रतिबंधित करने का अधिकार होगा।
- नीतिगत मामलों की सलाह देने के लिए राष्ट्रीय बीज समिति का गठन किया जाएगा।
- सरकार के पास किसी भी बीज की जांच, नमूने लेने और जब्त करने का अधिकार होगा।
- नई बीज वैरायटी के लिए बौद्धिक संपदा सुरक्षा की गारंटी होगी।
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दंड से संबंधित प्रावधान
- नकली या निम्न-गुणवत्ता वाले बीज बेचने पर 30 लाख रुपये तक का भारी जुर्माना और तीन साल तक की जेल का प्रावधान है।
- किसी भी नियम के उल्लघंन पर दंड का प्रावधान है, बार-बार अपराध करने पर दंड में इजाफा होगा।
- किसी भी नए GM बीजों को लाने में पर्यावरण और जैव सुरक्षा मानकों का पालन आवश्यक होगा।
- बीज विवादों के लिए जल्द शिकायत समाधान की व्यवस्था होगी।
- बीजों को लेकर झूठे दावे करने वाले अथवा भ्रामक विज्ञापन प्रतिबंधित रहेंगे।
ITPGRFA और PPV&FR Act 2001
इंटरनेशनल ट्रीटी ऑन प्लांट जेनेटिक रिसोर्स फॉर फुड और एग्रिकल्चर (ITPGRFA) एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। भारत ने ITPGRFA के प्रावधानों को लागू करने के लिए एक घरेलू कानून बनाया जिसे PPV&FR Act 2001 कहते हैं। यह कानून किसानों को बीज बचाना, उपयोग करना, विनिमय करना और बेचना का अधिकार देता है—बशर्ते वे ब्रांडेड बीज न बेचें। प्रस्तावित संशोधनों का मुख्य केंद्र बीज कंपनियों और किसानों के अधिकारों के बीच के संतुलन को बदलना है।
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प्रस्तावित बदलावों से किसानों को संभावित नुकसान
1. बीज स्वायत्तता का हनन
PPV&FR Act की धारा 39 किसानों को अपनी पंजीकृत फसल किस्मों के बीज को बचाने, उपयोग करने, बुवाई करने, विनिमय करने और बेचने का अधिकार देती है। प्रस्तावित संशोधन इस अधिकार को कमजोर या बेचने पर सख्त प्रतिबंध लगाते हैं, तो किसान हर मौसम में बीज कंपनियों से महंगे बीज खरीदने के लिए मजबूर होंगे।
2. कानूनी उत्पीड़न का खतरा
यदि बीज कंपनियों के IPR अधिकार मजबूत होते हैं और किसानों को कानूनी छूट कम मिलती है, तो बीज कंपनियों के पास किसानों पर लाइसेंस शुल्क न देने या अवैध रूप से बीज बेचने के आरोप में मुकदमा चलाने की अधिक शक्ति आ जाएगी। इससे गरीब और छोटे किसानों के लिए कानूनी उत्पीड़न का खतरा बढ़ जाएगा।
3. जैविक विविधता पर प्रभाव
जब किसान कमर्शियल बीजों पर पूरी तरह निर्भर हो जाते हैं, तो वे अपनी स्थानीय और पारंपरिक फसल किस्मों को उगाना बंद कर देते हैं। इससे फसलों की जैविक विविधता का बड़े पैमाने पर नुकसान होता है, जिससे भविष्य में जलवायु परिवर्तन या बीमारियों के प्रति हमारी कृषि प्रणाली कमजोर हो सकती है।
4. लागत में वृद्धि
बार-बार बाजार से बीज खरीदने की मजबूरी से किसानों की कृषि लागत में भारी वृद्धि होगी, जिससे उनका मुनाफा कम होगा और कर्ज का बोझ बढ़ेगा।
AIKS ने सीड बिल 2025 की वापसी, ITPGRFA समझौता प्रस्ताव को अस्वीकार करने तथा किसान हितों को कमजोर करने वाली व्यापार वार्ताओं को रोकने की मांग की। AIKS ने 10 दिसंबर को, जो स्वतंत्रता सेनानी बाबू गनु की स्मृति में मनाया जाता है, राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस के रूप में चुना है। संगठन ने कहा कि किसान सरकार को देश की संप्रभुता और अन्न उत्पादकों के अधिकारों को गिरवी नहीं रखने देंगे।
