अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे (Minority Status) पर नए सिरे से फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को 3 जजों की बेंच के पास भेज दिया है। सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने बहुमत से साल 1967 के अपने उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को खारिज कर दिया गया था।  सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को भी उलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में यह फैसला सुनाया है। 

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ में यह फैसला बहुमत से सुनाया गया है। साल 1967 के अजीज बाशा केस को पलटने पर 4 जजों ने बहुमत से फैसला सुनाया, वहीं 3 अन्य जजों का फैसला इसके खिलाफ था। इस संवैधानिक पीठ में शामिल अन्य जजों में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस जेबी पादरीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एससी शर्मा शामिल हैं। साल 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जो को नहीं माना था, सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला पलट दिया है। साल 2019 में 3 जजों की बेंच ने इस केस को 7 जजों की संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने अजीज बाशा केस में कहा था कि AMU अल्पसंख्यक दर्जा नहीं ले सकती है क्योंकि इसकी स्थापना, विधिक संस्थान ने की है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि किसी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा, सिर्फ इसलिए नहीं रद्द किया जा सकता है क्योंकि उसकी स्थापना, राज्य ने की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदलात को यह जरूर जांचना चाहिए कि इसकी स्थापना किसने की है, किस उद्देश्य के लिए की है।

 

अगर जांच में अल्पसंख्यक समुदाय की बात आती है तो संस्थान, अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है। इस तथ्य के निर्धारण के लिए संवैधानिक बेंच, इसे एक रेग्युलर बेंच के पास भेज रही है। CJI चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिम  ने इस फैसले को जस्टिस संजीव खन्ना,जस्टिस जेपी पादरीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की ओर से सुनाया। इस फैसले के खिलाफ जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एससी शर्मा रहे।

अजीज बाशा केस क्या था?

साल 1967 के अजीज बाशा केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, इसलिए अल्पसंख्यक संस्थानों को मिलने वाले अधिकार, विश्वविद्यालय को नहीं दिए जाएंगे। अनुच्छेद 30 (1) का लाभ, इस विश्वविद्यालय को नहीं मिलेगा। फैसले में कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को किसी मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय ने नहीं स्थापित किया है। साल 1981 में संसद में एक संशोधन पारित हुआ, जिसमें अलीगढ़ मु्स्लिम विश्वविद्यालय अधनियम में संशोधन किया गया, जिसमें विश्वविद्यालय की परिभाषा बदली गई और यह लिखा गया कि इसे मुस्लिम ने स्थापित किया है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाए।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने साल 2006 में इस संशोधन के खिलाफ फैसला दिया। कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ तत्कालीन यूपीए सरकार और एएमयू प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। साल 2016 में एनडीए सरकार ने याचिका वापस ले ली और अजीज बाशा केस पर सुप्रीम कोर्ट के रुख का समर्थन किया। केंद्र सरकार ने कहा कि 1981 में एएमयू एक्ट में हुए संशोधन का समर्थन सरकार नहीं करती है। 

कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना साल 1920 में अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक उन्नति के लिए हुई थी। तब इसका नाम मुहमडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज था। इसकी प्रकृति इस्लामिक थी। याचिकाकर्ता ने इस फैसले को पलटने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि साल 1981 का सुधार, संसद का फैसला था, जिसे मौजूदा सरकार, अपने अलग राजनीतिक व्यवस्था की वजह से पलटने की इजाजत नहीं दे सकती है। अपने लिए संस्थानिक अल्पसंख्यक दर्जे की मांग करना,अल्पसंख्यकों का हक है। 

सरकार का पक्ष क्या है?

एएमयू प्रशासन की दलील के खिलाफ अटॉर्नी जनरल आर वेंकेटरमनी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्याल की स्थापना और प्रशसान, अल्पसंख्यक संस्थान के तौर पर नहीं होता है। विश्वविद्यालय का चरित्र राष्ट्रीय है, इसलिए इसे धर्मनिरपेक्ष नजरिए से देखा जाए, जिससे व्यापक राष्ट्रीय हित सुलझे।


किन बातों पर हुआ है मंथन?
किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा देने का उद्देश्य क्या है? क्या किसी संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा इसलिए दिया जाना चाहिए क्योंकि इसकी स्थापना करने वाला शख्स किसी एक धर्म या भाषाई अल्पसंख्यक समुदाय का है? कोर्ट ने संविधान पीठ के सामने ये 4 प्रमुख सवाल रहे-
1. क्या एक विश्वविद्यालय, जिसकी स्थापना सरकारी तंत्र ने की है, अल्पसंख्यक दर्जा मांग सकता है?
2. अजीज बाशा बनाम भारत सरकार का फैसला कितना सही है?
3. 1981 के AMU एक्ट का फैसला कितना सही है, जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को फिर से अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया? 
4. इलाहाबाद हाई कोर्ट का साल 2006 में दिया गया फैसला सही था? मलय शुक्ल बनाम AMU केस में कोर्ट ने कहा था कि जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय नहीं है तो मुस्लिमों के लिए यह कैसे 50 फीसदी आरक्षण दे सकता है।

ये भी हैं फैसले की खास बातें
अगर संविधान लागू होने के बाद स्थापित संस्थाओं पर ही अनुच्छेद 30 का विस्तार होगा तो इसका उद्देश्य पूरा नहीं होगा। निगमन और स्थापना जैसे शब्द, एक-दूसरे की जगह इस्तेमाल नहीं हो सकते हैं। AMU की स्थापना शाही तंत्र के द्वारा हुई थी, इस आधार पर इसे यह नहीं माना जा सकता है कि अल्पसंख्यक ने इसकी स्थापना की है। यह संस्थान केवल अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए ही बना है, यह बात भी कहीं अनिवार्य नहीं है। अजीज बाशा केस के फैसले को पलटा जा रहा है।

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर बवाल क्यों?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम 1920 के तहत हुई है। सर सैय्यद अहमद खान ने की थी। विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सवाल इस आधार पर उठाए गए हैं कि क्या एक विधि द्वारा स्थापित संस्था, अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा ले सकता है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 में अजीज बाशा बनाम भारत सरकार केस की सुनवाई के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को खारिज कर दिया था। 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने यह फैसला सुनाया था। साल 1981 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट में संशोधन के जरिए, एक बार फिर अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार कर दिया गया था। 

अल्पसंख्यक दर्जे पर क्या कहता है संविधान?
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सौरभ शर्मा के मुताबिक भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30, 'शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार' के बारे में बात करता है। यह अनुच्छेद धर्म या भाषा पर आधारित, सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा। अनुच्छेद 30 (2) कहता है कि शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है। 


AMU और सरकार के वकील कौन हैं?
अलीगढ़ यूनिवर्सिटी और AMU ओल्ड बॉयज एसोसिएशन की ओर से सीनियर अधिवक्ता डॉ. राजीव धवन, कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद पेश हुए। भारत सरकार की ओर से अटार्नी जनरल आर वेंकेटरमनी,  सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता और कई कई अन्य लोग शामिल रहे। 

अल्पसंख्यक दर्जे के लाभ क्या हैं?
अगर किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा मिलता है तो ऐसे विश्वविद्यालयों को अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग और आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्ण अभ्यर्थियों को आरक्षण देने के नियम से मुक्त होते हैं। इन संस्थानों को स्वायत्तता मिलती है, जिसके आधार पर ये अपनी गवर्निंग बॉडी और अन्य स्टाफ का चुनाव सकते हैं। ऐसे संस्थान, अपने यहां अभ्यर्थियों के लिए नियम-कानून तय कर सकते हैं और फीस का निर्धारण कर सकते हैं। ये संस्थान अगर राज्य की ओर से वित्तीय सहायता लेते हैं तो गैर अल्पसंख्यकों को भर्ती नहीं रोक सकते हैं।