मैंने सिर्फ दो किताबें पढ़ी हैं। एक तो मुझे किसी ने दी थी, उसका ताल्लुक मेरी किसी फिल्म की रिसर्च से था इसलिए पढ़ी। दूसरी- एक बंदे का वैसे मैं बहुत आशिक हूं, इसलिए मैंने मंगवाकर पढ़ ली। आप उनको जानते नहीं होंगे। उनका नाम है सरदार मोहिंदर सिंह रंधावा। जब हिंदुस्तान आजाद हुआ और पंडित नेहरू स्पीच दे रहे थे, उस वक्त आजाद हिंदुस्तान के शहर दिल्ली के पहले डिप्टी कमिश्नर थे एम एस रंधावा। उन्होंने यूरोप से डॉक्टरेट की थी। चंडीगढ़ में जितने भी पेड़ लगे हैं, उन पर कभी पतझड़ नहीं आता क्योंकि वे बहुत रिसर्च के बाद लगे हैं। पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी लुधियाना उनकी देन है। चंडीगढ़ शहर उनकी देन है। हरित क्रांति उनकी देन है। ट्रैक्टर उनकी देन हैं। बंटवारे के वक्त जो आदमी पाकिस्तान से उठकर पंजाब आया, उसकी जितनी जमीन वहां थी, अगर नहर के पास थी तो यहां नहर के पास देने का काम डेढ़ साल तक रंधावा ने किया। वह छठे दरिया थे हिंदुस्तान के। उनके बारे में हमारे पंजाब के लोग ही नहीं जानते हैं।
मशहूर गायक सतिंदर सरताज ने 'द लल्लनटॉप' को दिए एक इंटरव्यू में ये बातें कहीं तो मोहिंदर सिंह रंधावा का नाम अचानक चर्चा में आ गया। गूगल सर्च में बेहद कम रिजल्ट में सिमटे इस नाम के काम को पंजाब से लोग हर दिन देखते हैं लेकिन शायद उस नाम को नहीं जानते हैं। सतिंदर सरताज ने मोहिंदर सिंह रंधावा को पांच नदियों वाले पंजाब का 'छठा दरिया' यानी छठी नदी कहा। इसकी वजह पंजाब के लिए उनका योगदान है। ऐसे में इस शख्स के बारे में जानना बेहद जरूरी हो जाता है। आइए जानते हैं उन्हीं मोहिंदर सिंह रंधावा के बारे में जिनके बारे में शायद बेहद कम जाना गया है।
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इंटरनेट सर्च पर मोहिंदर सिंह रंधावा का नाम खोजने पर गिने चुने जो लेख या दस्तावेज मिलते हैं, उनमें जिक्र है कि उन्होंने भारत की हरित क्रांति में अहम योगदान दिया। एक अफसर के रूप में देश की सेवा की और पंजाब के साथ-साथ देश के कई अन्य हिस्सों के लिए खूब काम किया। किताबें लिखीं तो उनमें दुनियाभर के पेड़-पौधों, कई राज्यों की पेंटिंग और ऐसी चीजों को संकलित कर दिया, जो आज भी बहुत सारे स्टूडेंट्स के लिए रेफरेंस है। मूलरूप से ICS अधिकारी रहे रंधावा ने कला और पेंटिंग को संरक्षित रखने, तमाम वनस्पतियों पर रिसर्च करने और कृषि के क्षेत्र जो काम किए वे बताते हैं कि वह इस गुमनामी के हकदार तो बिल्कुल नहीं थे।
क्या है मोहिंदर सिंह रंधावा की कहानी?
साल 1909 में 2 फरवरी को पंजाब के फिरोजपुर के जीरा गांव में मोहिंदर सिंह रंधावा में पैदा हुए थे। हालांकि, उनका पैतृक गांव होशियारपुर जिले के बोदालन में है। 1924 में खालसा हाई स्कूल मुक्तसर से स्कूली पढ़ाई हुई और 1930 में गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से वनस्पति विज्ञान में M.SC. (ऑनर्स) किया। 1934 में ही वह इंडियन सिविल सर्विसेज (ICS) के अधिकारी मिल गए और यूपी काडर मिला। आगे चलकर उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से साल 1955 में डॉक्टरेट किया।
साल 1953 में मोहिंदर सिंह रंधावा को डेवलमेंट कमिश्नर और रीहैबिलिटेशन एंड कस्टोडिन कमिश्नर बनाया गया। सरदार जगताप सिंह कैरों के साथ मिलकर रंधावा ने पाकिस्तान से भारत आए लोगों के लिए घर और जमीन का इंतजाम किया। इस काम में उन्होंने यह ध्यान दिया कि जिसकी जैसी जमीन पाकिस्तान में थी, उसे वैसी ही जमीन भारत में मिल जाए। साल 1955 में इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल (ICAR) का वाइस प्रेसिडेंट बनाया गया। उन्होंने नेचुरल रिसोर्सेज प्लानिंग कमीशन के सलाहकार के रूप में भी काम किया। 1955 में ही जब चंडीगढ़ शहर की योजना बन रही थी तब वह डॉ. रंधावा ही उस कमेटी के चेयरमैन थे। 1966 में वही चंडीगढ़ के पहले चीफ कमिश्नर भी बने।
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देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसी शख्सियतों के साथ काम करने वाले रंधावा उस वक्त दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर थे जब देश को आजादी मिली। 15 अगस्त 1947 के दिन जिस कार्यक्रम में पंडित नेहरू ने वह ऐतिहासिक भाषण भाषण दिया, उसके आयोजन की जिम्मेदारी भी रंधावा पर ही थी। देश को आजादी मिली तो पाकिस्तान से आ रहे लोगों के पुनर्वास का काम बेहद चुनौतीपूर्ण था। इस काम को निभाने के लिए मोहिंदर सिंह रंधावा महानिदेशक (पुनर्वास) बनाया गया। मोहिंदर सिंह रंधावा को मशहूर लेखक गुलजार सिंह संधू ने 'पंजाब दा छेवां दरिया' यानी पंजाब की छठी नदी है।
दिल्ली और चंडीगढ़ में भी किया काम
चंडीगढ़ के इतिहास में दर्ज हो चुके मोहिंदर रंधावा ही इस शहर के पहले चीफ कमिश्नर थे। साल 1966 से 1968 तक चीफ कमिश्नर पद पर रहने के दौरान ही मोहिंदर रंधावा ने इस शहर को खूबसूरत बनाने में अहम भूमिका निभाई। चंडीगढ़ के सेक्टर 16 का रोज गार्डन हो, सेक्टर 10 में मौजूद सरकारी म्यूजियम और आर्ट गैलरी हो और लुधियाना की पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी हो, इन सबके पीछे मोहिंदर सिंह रंधावा का ही हाथ था। ICS अधिकारी रहने के साथ-साथ कला-साहित्य, इतिहास और वनस्पतियों पर काम करने वाले रंधावा ने काई पर दर्जनों रिसर्च पेपर लिखे। उन्होंने इन विषयों पर कुल 33 किताबें लिखीं।
दिल्ली में दंगे और नेहरू के निशाने पर रंधावा
आजादी के तुरंत बाद दिल्ली में दंगे हो गए और उस वक्त मोहिंदर सिंह रंधावा दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर थे। पंडित नेहरू ने कई बार रंधावा को कुछ निर्देश दिए लेकिन उनकी राय में रंधावा उन बातों को लेकर सजग नहीं हो रहे थे। इसको लेकर पंडित नेहरू ने तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को चिट्ठी भी लिखी। इस चिट्ठी में वह लिखते हैं, 'मैं रंधावा को कई साल से जानता हूं, जब वह यूपी में थे। रंजीत पंडित उन्हें जानते थे और पंसद भी करते थे। मेरी खुद की राय रही है कि वह अच्छे अफसर हैं। इन गड़बड़ियों से कुछ महीने पहले तक दिल्ली में उनका काम भी अच्छा रहा है। यही वजह है कि मैंने उनसे बात की और कुछ सुझाव दिए। मुझे हैरानी हुई कि पहले से जानकारी दिए जाने के बावजूद ऐक्शन नहीं लिया गया और संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार भी नहीं किया गया। मुझे पता चला है कि इंटेलिजेंस ने सूचना दी थी कि दिल्ली में क्या हो सकता है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। कई दिनों तक दंगे होने के बावजूद ऐक्शन नहीं लिया गया।'
पंडित नेहरू और सरदार पटेल के बीच हुए पत्राचार में कई बार रंधावा का जिक्र आया लेकिन सरदार पटेल उनका ट्रांसफर करने को राजी नहीं हुए। पंडित नेहरू ने भी उनकी राय का सम्मान किया। वह दिल्ली में ही बने रहे और काम करते रहे। आगे चलकर इन्हीं रंधावा को पुनर्वास का काम भी सौंपा गया।
हरित क्रांति और डॉ. M S रंधावा
ICAR का उपाध्यक्ष बनने के बाद रंधावा ने हरित क्रांति के लिए भी काम करना शुरू किया। उन्होंने सरकार को सलाह दी कि पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी बनाई जाए, भाखड़ा बांध बनाया जाए और वहां बिजली बनाकर पंजाब के गांवों को रोशन किया जाए। उनकी बात मानी भी गई और लुधियाना में एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी भी बनी और भाखड़ा बांध भी बना।
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चंडीगढ़ के कमिश्नर पद से हटने के बाद साल 1968 में वह पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बने और कई वैज्ञानिकों को अमेरिका समेत कई देशों में भेजा ताकि वे नई-नई चीजें सीखकर आएं। रंधावा की शख्सियत ऐसी थी कि पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार लक्ष्मण सिंह गिल ने भी उनसे राज्य के विकास को लेकर सलाह मांगी। उस वक्त रंधावा की सलाह थी कि पंजाब के सभी गांवों और शहरों को सड़कों से जोड़ जाए। साथ ही, नहरें बनाई जाएं, बिजली पहुंचाई जाए और ट्यूबवेल का इंतजाम करके किसानों को सशक्त किया जाए। रंधावा की अगुवाई में ही कल्याण और PV18 जैसी गेहूं की किस्में विकसित की गईं और हरित क्रांति ने अपना जलवा दिखाना शुरू किया।
आर्ट कलेक्शन और डॉ. रंधावा
अपने काम के दौरान डॉ. रंधावा को कई बार ऐसी पेंटिंग मिली जो बेहद दुर्लभ थीं। उन्हें रखने की जरूरत महसूस हुई और चंडीगढ़ म्यूजियम की स्थापना हुई। इसके बारे में खुद एम एस रंधावा ने कहा था, 'जब पेंटिंग इकट्ठा की जाती हैं तो उनके लिए कोई जगह भी होनी चाहिए। इसी के चलते मैंने चंडीगढ़ म्यूजियम की स्थापना की जहां पहाड़ी पेंटिंग का सबसे बड़ा कलेक्शन रखा गया है।'
पहाड़ों पर बनाई जाने वाली पेंटिंग में कांगड़ा पेंटिंग को संरक्षित करने का अहम का डॉ. रंधावा ने ही किया। तब ये पेंटिंग कई राजाओं और अन्य जागीरदारों के पास थीं। डॉ. रंधावा ने सरकार को इस बात के लिए राजी किया कि इन पेंटिंग को खरीदकर संरक्षित किया जाए क्योंकि ये पंजाब के इतिहास का हिस्सा हैं। उन्होंने राजा बलदेव सिंह गुलेर, मियां निहाल सिंह (चंबा), राजा देविंदर सिंह (नूरपूर) आदि से ये पेंटिंग खरीदीं और उन्हें चंडीगढ़ म्यूजियम में रखा गया।
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इन पेंटिंग को और बेहतर ढंग से दर्ज करने के लिए ही रंधावा ने किताबें लिखीं और कई तरह की पेंटिंग के बारे में जमकर लिखा। ऐसी ही एक किताब 'बसोहली पेंटिंग्स' में वह रामायण से जुड़ी 270 पेंटिंग के बारे में लिखते हैं। 1953 में उन्होंने इन्हीं पेंटिंग के बारे में एक रिसर्च पेपर लिखा। यह रिसर्च पेपर मुल्क राज आनंद के जर्नल 'मार्ग' में छापा गया।
लंबे समय तक पेंटिंग इकट्ठा करने, उनको किताबों की शक्ल में बदलने और कृषि के क्षेत्र में देश को सशक्त बनाने वाले रंधावा को आज बहुत कम लोग ही जानते हैं। साल 1986 में 3 मार्च को खराड़ गांव में स्थित फार्म हाउस में मोहिंदर सिंह रंधावा का निधन हो गया। अब सतिंदर सरताज जैसी शख्सियत ने उनका जिक्र करके एक बार फिर से उनके नाम को जिंदा कर दिया है।
