अक्टूबर-नवंबर का महीना हो दिल्ली की हवा सांस लेने लायक बची रहे, ऐसा आमतौर पर होता नहीं है। दिल्ली, दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। ऐसा लगता है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा असर, राजधानी दिल्ली पर ही पड़ा है। दिल्ली में पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी तक की नौबत आ जाती है। ठंड के शुरुआती महीने ऐसे होते हैं, जब एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) गंभीर से बहुत गंभीर और खतरनाक स्थिति में पहुंच जाता है। 

 

दिल्ली में जब प्रदूषण बढ़ता है तो सरकार को ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान तैयार करना पड़ता है। इसे कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) लागू करता है। इसमें प्रदूषण के आधार पर कई स्तर के प्रतिबंध लगाए जाते हैं। आखिर दिल्ली में हर साल, ये क्यों करना पड़ता है, आइए जानते हैं एक-एक वजह।

त्योहार भी बनाते हैं बीमार

 

पर्यावरणविद् और सिंगरौली फाइल्स के लेखक अविनाश चंचल बताते हैं कि पटाखे प्रदूषक हैं और अक्तूबर से नवंबर के बीच ऐसे कई त्योहार पड़ते हैं, जब दिल्ली के लोग जमकर पटाखे फोड़ते हैं। प्रतिबंधित होने के बाद भी खूब पटाखे छोड़े जाते हैं। दिल्ली का ग्रीन कवर अच्छा है फिर भी इतनी सघन आबादी, बेतरतीब तरह से बने घर और उद्योगों, गाड़ियों के धुएं स्थितियों को और भयावह कर देते हैं। यहां धुआं तो बनता है, उसके बाहर निकलने की जगह नहीं बचती है। धरती की पहली परत, जिसे हम क्षोभमंडल कहते हैं, प्रदूषकों का असर सबसे ज्यादा यहीं होता है।

 

पटाखों से बहुत तेजी से प्रदूषण फैलता है। पटाखों में पोटैशियम नाइट्रेट, सल्फर, चारकोल, एल्युमिनियम, बेरियम नाइट्रेट, स्ट्रॉन्टियम नाइट्रेट और कॉपर जैसे तत्व पाए जाते हैं। इन्हें जिस तरह से तैयार किया जाता है, फटने के बाद ये और घातक यौगिकों के धुएं छोड़ते हैं। इनकी वजह से पीएम2।5 से लेकर पीएम10 तक के प्रदूषक फैल सकते हैं, जो फेफड़ों के लिए नुकसानदेह हैं। इनके धुएं क्षोभमंडल में घुलनशील नहीं हैं, ये कड़ों के तौर पर पर्यावरण में मौजूद रहते हैं। दशहरा और दीपावली में ऐसे पटाखे, बड़ी संख्या में छोड़े जाते हैं। एयर क्वालिटी इंडेक्स तेजी से खराब होने लगता है, ध्वनि प्रदूषण भी फैलता है और अस्पतालों में सांस के मरीज तेजी से बढ़ने लगते हैं। 

 

पर्यावरण के जानकार अविनाश चंचल बताते हैं कि नवंबर में तेज हवाओं का दौर थम जाता है। पंजाब और हरियाणा में धान की फसलों को काट ने का भी यही सीजन होता है। लोग फसलों को काटने के बाद खाली पड़े खेत में अतिरिक्त जुताई से बचने के लिए धान की डंठलों में आग लगा देते हैं। पराली जलाने के बाद जो धुआं उठता है, उसकी जद में दिल्ली भी आती है और गैस चैंबर में तब्दील होती है। अगर बारिश हो जाए तो दिल्ली को तत्काल राहत मिल जाए, लेकिन यह ऐसे सीजन में होता है, जब बारिश न के बराबर होती है। पहले से ही धुंध में जी रही दिल्ली, पराली के धुएं को और बर्दाश्त नहीं कर पाती है और एयर क्वालिटी इंडेक्स बेहद खराब स्तर पर पहुंच जाता है। 

पराली और पटाखों के अलावा भी दिल्ली में हैं प्रदूषक


दिल्ली में पराली और पटाखों के अलावा भी प्रदूषकों की कोई कमी नहीं है। दिल्ली में ही कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स हैं, जिनकी क्षमता 11,000 मेगावाट की है। ये सभी दिल्ली के 300 किलोमीटर के दायरे में ही हैं। इन प्लांट से निकलने वाले धुआं भी दिल्ली के लिए गंभीर पर्यावरणीय मुश्किलें पैदा करता है। 

 

दिल्ली में गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण भी कम नहीं है। सड़क से ज्यादा लोगों के पास गाड़ियां हैं। अक्सर दिल्ली जाम की स्थिति में रहती है। सुबह से लेकर शाम तक दिल्ली की सड़कों पर निकलना मुहाल हो जाता है। गाड़ियों से निकलने वाला धुआं भी पीएम 10 से लेकर पीएम2।5 तक के प्रदूषक छोड़ता है। 

दिल्ली में कभी नहीं रुकता निर्माण


दिल्ली में कंस्ट्रक्शन का काम हमेशा होता रहता है। जनरेटर से निकलने वाला धुआं, कटर से निकलने वाला धुआं, धूल-गर्दा, शोर, कंट्रक्शन साइट्स पर बेहद आम हैं। ऊंची-ऊंची बैरिकेडिंग लगाने से भी, कंस्ट्रक्शन साइट को ढक देने से भी प्रदूषण नहीं थमता है। दिल्ली में अंधाधुंध निर्माण होता है। सड़क से लेकर मेट्रो तक, चौतरफा निर्माण भी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की एक वजह होते हैं। नवंबर में दिल्ली की हवाओं के लिए ये फैक्टर और भी ज्यादा खतरनाक साबित हो जाते हैं। 

पेड़ ही रोकेंगे प्रदूषण 


दिल्ली में तेजी से जंगल और पेट काटे जा रहे हैं। दिल्ली का ग्रीन कवर हर साल कम हो रहा है। अरावली की पहाड़ियों पर खाली पड़ी जमीनें हैं, लेकिन जंगल नहीं है। जिन धूलकणों को कभी पहाड़ियां रोक पाती थीं, अब वहां उनका अस्तित्व ही नहीं है। हरियाली रहेगी तो खुशहारी भी आएगी। जितनी तेजी से पेड़ काटे जाएं, उससे ज्यादा तेजी से पेड़ों का लगाया जाना भी जरूरी है।

दिल्ली की दमघोंटू हवा ठीक करने का तरीका क्या है?


 ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान को सही तरीके से लागू कर पाना अपने आप में चुनौती है। अगर ये ढंग से लागू हो, लोग सरकार और नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल के सुझावों को मानें तो प्रदूषण कम हो सकता है। जब नवंबर से लेकर जनवरी तक, अगर लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज्यादा इस्तेमाल करें, गाड़ियां लेकर सड़कों पर कम निकलें, ज्यादा प्रदूषण वाली जगहों पर कृत्रिम तरीके से बारिश की जाए, निर्माण कार्यों को रोका जाए और कुछ समय के लिए उद्योगों को बंद किया जाए तो दिल्ली के लोगों को जहरीली हवा से मुक्ति मिल सकती है।