मानसूनी सीजन में भारत, पाकिस्तान और नेपाल में मौसम का कहर देखने को मिल रहा है। तीनों देशों में अब तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। फ्लैश फ्लडिंग और बादल फटने की घटनाओं ने पहाड़ी राज्यों में जन-जीवन न केवल अस्त-व्यस्त किया है, बल्कि जिंदगियों को खतरे में डाला है। विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालय, काराकोरम और हिंदुकुश पर्वत रेंज में बादल फटने की घटनाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन है। ऐसी घटनाएं आने वाले वर्षों में और तेज होंगी। आइये जानते हैं कि भारत और उसके पड़ोसी देशों में मौसम से होने वाली तबाही अचानक क्यों बढ़ने लगी है?

 

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में लोग मौसम की मार से अभी उबरे नहीं हैं। यहां के बुनेर जिले में अचानक आई बाढ़ ने भीषण तबाही मचाई। 10 से ज्यादा गांव बाढ़ में उजड़ चुके हैं। 321 से अधिक लोगों की जान गई और कई लापता हैं। कुछ अध्ययन में सामने आया है कि पाकिस्तान को जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक नुकसान होने की आशंका है। मतलब साफ है कि पाकिस्तान में मौसम से होने वाली तबाही थमने वाली नहीं है।

 

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अगर भारत की बात करें तो एक महीने में जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। 14 अगस्त को किश्तवाड़ के चशोती में बादल फटा। इसमें 63 लोगों की जान गई। 17 अगस्त को कठुआ में बादल फटने से सात की मौत हुई। बादल फटने के बाद उत्तराखंड का धराली गांव पूरी तरह से नक्शे से मिट चुका है। यहां जानमाल के साथ-साथ लोगों के आशियाने नष्ट हो चुके हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत में भारी बारिश की घटनाओं में तीन गुना से अधिक इजाफा हुआ है।

यहां सबसे ज्यादा फटते हैं बादल

वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु संकट तेज होता जा रहा है। इस कारण बादल फटने, मूसलाधार बारिश और फ्लैश फ्लड की घटनाएं अधिक और बार-बार हो रही हैं। भारत और पाकिस्तान में बाढ़ और भूस्खलन के ज्यादातर मामलों के पीछे बादल फटना ही है। आईएमडी के मुताबिक भारत में जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं आम हैं।

क्या है बादल फटना?

एक निश्चित क्षेत्र में जब अचानक मूसलाधार बारिश होती है तो उसकी वजह से बाढ़ और भूस्खलन जैसी स्थिति पैदा होती है। मानसून सीजन में बादल फटने की घटनाएं अक्सर पहाड़ी इलाकों में होती है। भारत मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक जब प्रति घंटे 4 इंच से अधिक बारिश होती है तो उसे बादल फटना कहा जाता है।

 

क्यों अधिक फट रहे हैं बादल?

बरसात के सीजन में हवा में नमी बहुत अधिक होती है। जब यह हवा पहाड़ों से टकराती है तो तेजी से ठंडी होती है। इसके बाद ऊपर उठते ही बादल बन जाती है। यही बादल पर्वतीय इलाकों में मूसलाधार बारिश के साथ भीषण तबाही मचाते हैं। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने सीएनएन से बातचीत में कहा कि गर्म महासागर मानसून में अधिक नमी को भर रहे हैं। जब नम हवाएं खड़ी पहाड़ी ढलानों पर चढ़ती हैं तो तेज बारिश करती हैं।

 

महासागरों का तापमान बढ़ रहा है। इस वजह से हिंद महासागर और अरब सागर से उठने वालीं हवाएं तेजी से गर्म हो रही हैं। भारत-पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में हिंद महासागर और अरब सागर से आने वाली हवाओं की वजह से मानसूनी बारिश होती है। मगर यह गर्म हवाएं पहाड़ों से टकराने के बाद तबाही मचाती हैं।

पहाड़ियों में क्यों मचती है तबाही?

नेपाल स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के वरिष्ठ जल विज्ञान अनुसंधान सहयोगी प्रदीप डांगोल का कहना है कि अगर समतल जगह पर बादल फटता है तो बारिश का पानी फैल जाता है। इससे नुकसान कम होता है। मगर जब यही घटना पहाड़ी इलाके में होती है तो संकरी घाटियों और ढलानों में अचानक बाढ़ और भूस्खलन होता है और इससे भारी तबाही मचती है।

 

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भविष्यवाणी करना आसान नहीं

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में भारतीय मौसम विभाग के पुणे कार्यालय के वैज्ञानिक एसडी सनप ने बताया कि पश्चिमी हिमालय में बादल फटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यही स्थिति पाकिस्तान तक है। उनका कहना है कि इसकी भविष्यवाणी करना संभव नहीं है। मगर रडार की मदद से घने बादलों के बनने पर नजर रखी जाती है और अधिक बारिश की चेतावनी जारी की जाती है।

भविष्य में और बढ़ेगा खतरा

एक अनुमान के मुताबिक आने वाले 75 वर्षों में धरती का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच जाएगा। इसकी वजह यह है कि इंसान जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को कम करने पर राजी नहीं है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर धरती का तापमान नहीं घटा तो अचानक बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं में भारी इजाफा होगा।