भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि देश अब 'अवैध विदेशियों के लिए एक स्वर्ग' बनता जा रहा है, जहां कोई भी आकर लंबे समय तक बिना अनुमति के रह सकता है। कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी उस वक्त की है, जब एक इजरायली नागरिक ड्रोर शलोमो गोल्डस्टीन ने अपनी रूसी साथी और दो नाबालिग बेटियों से जुड़ा मामला कोर्ट में उठाया। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका को 'पब्लिसिटी स्टंट' और 'बेवजह मुकदमा' बताते हुए खारिज कर दिया है।

 

सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने तल्ख लहजे में पूछा, 'जब आप इजरायली हैं, तो भारत में रह क्या रहे हैं? आप गोवा में अपना खर्च कैसे चला रहे हैं?' अदालत ने कहा कि भारत किसी के लिए भी मनचाहा ठिकाना नहीं हो सकता, जहां कोई भी विदेशी नागरिक जब तक मन चाहे तब तक रहे।

 

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मामला कहां से शुरू हुआ?

यह पूरा मामला जुलाई 2025 में शुरू हुआ, जब 40 साल की रूसी महिला नीना कुटिना और उसकी दो बेटियों (उम्र 6 और 5 वर्ष) को कर्नाटक के जंगल में एक गुफा से पुलिस ने बचाया था। वह कई हफ्तों से वहां बिना वैध दस्तावेजों के रह रही थीं। बाद में कुटिना और उसकी बेटियों को विदेशी नागरिक केंद्र (डिटेंशन सेंटर) भेजा दिया गया था। ऐसे में कर्नाटक हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि उनके लिए यात्रा दस्तावेज जारी किए जाएं, जिससे उन्हें रूस भेजा जा सके। 28 सितंबर को तीनों को रूस भेज दिया गया।

 

इजरायली नागरिक गोल्डस्टीन, जो खुद को बच्चियों का पिता बताता है, उसने हाई कोर्ट में याचिका दी थी कि उनकी वापसी रोकी जाए और बच्चियों की कस्टडी उसे दी जाए, ऐसे में कोर्ट ने कहा कि जब महिला और बच्चे गुफा में रह रहे थे, तब ड्रोर शलोमो गोल्डस्टीन कहां थे, बच्चे और महिला उस स्थिति में क्यों थे? ऐसे में गोल्डस्टीन कोई सटीक जवाब नहीं दे सके।

 

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कोर्ट ने सुनवाई के दौरान क्या कहा?

कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा, 'यह देश हर तरह के लोगों के रहने के लिए स्वर्ग बन गया है, कोई भी यहां आता है और जब तक चाहता है तब तक यहां रह जाता है।' जजों ने सवाल-जवाब के दौरान गोल्डस्टीन से पूछा, 'आप इजरायली नागरिक हैं, फिर भारत में क्यों रह रहे हैं? आपकी जीविका का साधन क्या है? आप गोवा में कैसे गुजारा कर रहे हैं?'

 

गोल्डस्टीन के वकील दीपक प्रकाश ने अदालत से कुछ समय मांगा, जिससे यह पता चल सके कि क्या बच्चे पहले ही रूस भेजे जा चुके हैं और अगर नहीं भेजे गए हैं तो केंद्र सरकार को याचिका की प्रति दी जा सके लेकिन कोर्ट ने यह मामला लंबित रखने से इनकार कर दिया।

 

बेंच ने कहा, 'हमें यह याचिका पूरी तरह निरर्थक लगती है। लगता है याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा सिर्फ प्रचार के लिए खटखटाया है।' बाद में अदालत ने गोल्डस्टीन को अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी। सुनवाई के दौरान अदालत ने गोल्डस्टीन से यह भी पूछा, 'अगर आप वाकई उन बच्चियों के पिता हैं, तो जब वह जंगल की गुफा में रह रही थीं, तब आप क्या कर रहे थे? क्यों न हम आपका भी देश निकाला कर दें?'

सुप्रीम कोर्ट की दूसरी सख्त टिप्पणी

इसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने एक और मामले में भी ऐसा ही रुख दिखाया। यह मामला सूडान के नागरिक यूसिफ हारून यागूब मोहम्मद से जुड़ा था, जिसने भारत में ज्यादा समय तक रहने के मामले में कार्रवाई से सुरक्षा मांगी थी। उनके वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल के पास संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) का कार्ड है और उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में शरण के लिए आवेदन किया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत UN रिफ्यूजी कन्वेंशन 1951 या उसके 1967 प्रोटोकॉल का सदस्य नहीं है, इसलिए ऐसे कार्ड यहां मान्य नहीं हैं। कोर्ट ने कहा, 'गृह मंत्रालय इन कार्ड को नहीं मानता। उन्होंने एक शो-रूम खोल रखा है जहां कार्ड बांटे जा रहे हैं। अगर आपने ऑस्ट्रेलिया में शरण मांगी है, तो वहीं क्यों नहीं चले जाते?'

 

जजों ने कहा, 'ऐसे मामलों में हमें बहुत सावधान रहना चाहिए। लाखों विदेशी यहां ओवरस्टे (अधिक समय तक ठहराव) कर रहे हैं।'अंत में अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता पहले ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के पास जा चुका है।

विदेशी नागरिकों पर बढ़ी सख्ती 

हाल के महीनों में भारत में विदेशी नागरिकों के अवैध ठहराव पर सख्ती बढ़ी है, खासकर गोवा, कर्नाटक और दिल्ली जैसे राज्यों में। भारत में कोई अलग शरणार्थी कानून नहीं है। ऐसे मामलों को Foreigners Act, 1946 और Passport (Entry into India) Rules, 1950 के तहत निपटाया जाता है।

 

गृह मंत्रालय (MHA) ने 2 मई 2025 को एक आदेश जारी कर देशभर में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों की पहचान और उन्हें वापस भेजने का अभियान शुरू किया था। यह आदेश वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के अधीन है। अदालत ने केंद्र सरकार से इस अभियान की Standard Operating Procedure (SOP) स्पष्ट करने को कहा है, जिससे किसी समुदाय के खिलाफ भेदभाव के आरोप न लगें।