पाकिस्तान से अफगानिस्तान जितना दूर जा रहा है, उतना ही भारत के करीब आ रहा है। 9 अक्टूबर को तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने भारत का छह दिवसीय दौरा किया था। इसके बाद 19 से 25 नवंबर तक अफगानिस्तान के उद्योग और वाणिज्य मंत्री अलहाज नूरुद्दीन अजीजी ने भारत की यात्रा की। इन दोनों नेताओं ने 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार आने के बाद भारत का दौरा, उस वक्त किया जब पाकिस्तान के साथ सीमा पर तनाव है। 

 

पाकिस्तान से संघर्ष के बीच अफगानिस्तान अब भारत के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाना चाहता है, क्योंकि अभी अफगानिस्तान की पाकिस्तान के बाजार पर निर्भरता अधिक है। पाकिस्तान ने सभी सीमाओं को भी बंद कर दिया है। तालिबान की सरकार पाकिस्तान का विकल्प खोजने में जुटी है। यही वजह है कि वह ईरान और भारत समेत अन्य पड़ोसियों से संबंध मजबूत बनाने में जुटा है। हाल ही में अफगानिस्तान ने पाकिस्तान से आने वाली दवाओं पर बैन लगाया। इसके बाद तालिबान सरकार ने भारत के साथ एक बड़ी डील भी कर ली।

 

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नई डील के मुताबिक भारत की कंपनी अफगानिस्तान को मेडिकल प्रोडक्ट की आपूर्ति करेगी। यह समझौता 100 मिलियन डॉलर का हुआ है। तालिबान के वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक भारतीय कंपनी अफगानिस्तान में अपना एक दफ्तर खोलेगी। भविष्य में घरेलू स्तर पर निर्माण भी शुरू कर सकती है। बता दें कि भारत सस्ते मेडिकल प्रोडक्ट और दवाओं का सबसे बड़ा बाजार है। 

किसके साथ हुआ समझौता?

संयुक्त अरब अमीरात में अफगानिस्तान के राजदूत की मौजूदगी में दुबई स्थित अफगान वाणिज्य दूतावास में अफगान कंपनी रूफी इंटरनेशनल ग्रुप और जाइडस लाइफसाइंसेस के बीच हुआ है। इसके तहत जाइडस लाइफसाइंसेस अफगानिस्तान को मेडिकल प्रोडक्ट की आपूर्ति करेगी और स्थानीय व्यापारियों की मदद के लिहाज से काबुल में अपना दफ्तर भी खोलेगी।

 

इस साल 9 अक्टूबर की रात पाकिस्तान की सेना ने अफगानिस्तान में एयर स्ट्राइक की। इसके दो दिन बाद यानी 11 अक्टूबर से दोनों देशों के बीच व्यापार ठप्प है। पाकिस्तान के बॉर्डर बंद करने से हजारों अफगान ट्रक सीमा पर ही फंसे हैं। हजारों टन कच्चा माल बर्बाद हो चुका है। पाकिस्तान ने बॉर्डर खोलने पर शर्त भी रख दी है। उसका कहना है कि जब तक तालिबान तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ एक्शन नहीं लेगा तब तक सीमा पार से व्यापार दोबारा शुरू नहीं होगा।   

पाकिस्तान के लिए कितना बड़ा झटका?

संयुक्त राष्ट्र के कॉमट्रेड डेटाबेस के मुताबिक 2024 में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान को 186.69 मिलियन डॉलर के मेडिकल उत्पादों का निर्यात किया। अब दवा निर्यात बंद होने से पाकिस्तान को सीधे तौर पर 200 मिलियन डॉलर का झटका लगा है। इसे पाकिस्तान फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ताहिर आजम के एक बयान से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के कुल दवा निर्यात का करीब 35% हिस्सा अफगानिस्तान जाता है। दवा व्यापार पर लगा झटका बहुत बड़ा है। वर्षों में हमने वहां अपने ब्रांड और नेटवर्क को तैयार किया और अब भारत हमारे बाजार पर कब्जा करने को तैयार है। 

 

एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के सीमा बंद करने से अफगानिस्तान को हर महीने करीब 200 मिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ रहा है। वहीं अगर सीमा तीन महीने तक बंद रही तो पाकिस्तान को 150 से 169 मिलियन डॉलर के नुकसान का अनुमान है। अब जब तालिबान ने पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया तो यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है। सबसे अधिक नुकसान का खामियाजा पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत को उठाना पड़ेगा, क्योंकि यहां लगे अधिकांश उद्योगों की निर्भरता अफगान बाजार पर है। 

 

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पाकिस्तान ने इसी साल अगले पांच साल में दवा निर्यात 30 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा था। फार्मा निर्यात शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान पर खास फोकस करने की बात कही गई थी। पाकिस्तान फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष तौकीर उल हक ने कहा था कि अकेले अफगानिस्तान को निर्यात सालाना 500 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। मगर अब तालिबान के कदम से पूरा व्यापार ही रुक गया है। वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान अभी 500 मिलियन डॉलर की दवाओं का निर्यात करता है।

पाकिस्तान का विकल्प क्यों तलाश रहा तालिबान?

अब अफगानिस्तान बिल्कुल ही पाकिस्तान पर न तो भरोसा करना चाहता है और न ही निर्भर रहना चाहता है। 12 नवंबर को तालिबान के उप-प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने पाकिस्तानी दवाओं की गुणवत्ता और निर्भरता पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने पाकिस्तान से आने वाली दवाओं पर बैन के अलावा अफगान व्यापारियों को तीन महीने का समय दिया और  पाकिस्तान का विकल्प तलाशने को कहा। अफगान व्यापारियों को अन्य देशों से आयात करने की सलाह दी। तालिबान के इसी फैसले के बाद अफगानिस्तान और भारत की कंपनियों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी हैं।

 

अफगानिस्तान का मानना है कि पाकिस्तान की सरकार व्यापार का हथियार और सियासी दबाव के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। इस बीच अमेरिका ने ईरान के चाबहार पोर्ट पर प्रतिबंध पर छह महीने की छूट दी। यह अफगानिस्तान के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। अब तालिबान सरकार पाकिस्तान की बजाय ईरान के रास्ते अपना माल अन्य देशों के भेज सकता है। पाकिस्तान का विकल्प तलाशने की एक वजह यह है कि अफगानिस्तान में उसके खिलाफ आक्रोश है। लगातार एयर स्ट्राइक और मासूम लोगों की मौत से लोग खफा हैं। यही कारण कि अफगानिस्तान अब पाकिस्तान से दूर जाना चाहता है। 

दोनों देशों के बीच कब-कब बंद हुआ व्यापार?

अगर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के व्यापारिक इतिहास पर निगाह डालें तो मौजूदा संकट के अलावा तीन बार और व्यापार ठप्प हो चुका है। पहली बार साल 1949 में महीनों तक दोनों देशों के बीच व्यापार बंद रहा। दूसरा मौका 1955 में आया। उस वक्त पांच महीने कोई व्यापार नहीं हुआ। इसके बाद 1961 से 1963 के बीच 22 महीनों तक पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच व्यापार निलंबित रहा। पाकिस्तान के साथ हर विवाद के बाद अफगानिस्तान को एक नया विकल्प तलाशना पड़ा।

आटे की तरह क्या बदलेगा दवाओं का खेल?

अफगानिस्तान पहले पाकिस्तान से गेहूं का आटा खूब खरीदता था। मगर 2015 के बाद उसने कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों पर अपनी निर्भरता बढ़ाई। 2015 में अफगानिस्तान ने पाकिस्तान से जहां 320 मिलियन डॉलर का आटा खरीदा तो वहीं 2024 में कोई भी आटा नहीं खरीदा। अबकी साल की पहली तीन तिमाही में अफगानिस्तान ने 572.6 मिलियन डॉलर का गेहूं का आटा खरीदा है। इसमें से 98 फीसद आटा सिर्फ उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान से आया है।