पटाखों को लेकर दिल्ली सरकार की सुप्रीम कोर्ट में किरकिरी हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को आदेश दिया है कि वे दिल्ली में पटाखे जलाने को लेकर हलफनामा दायर करें और ये बताएं कि अगले साल, अपने आदेश को लागू करने के लिए वे क्या कदम उठाने जा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'प्रतिबंध शायद ही लागू किए गए थे। CSE की रिपोर्ट से जाहिर है कि पटाखों पर बैन कितना प्रभावी रहा है, असर ये हुआ कि दिल्ली में वायु प्रदूषण हर साल की तुलना में ज्यादा रहा। साल 2022 और 2023 की दीपावली से ज्यादा खराब स्थिति रही। रिपोर्ट इशारा कर रही है कि दीपावली के दिन ही किसानों ने खेतों में आग भी ज्यादा लगाई।'

जस्टिस अभय ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह, वायु प्रदूषण को लेकर एक केस की सुनवाई कर रहे थे। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की स्थिति को लेकर केस दायर किया गया था। दिल्ली में पटाखे, पराली, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं और उद्योगों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण की प्रमुख वजहों में से एक है।
 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

कोर्ट ने कहा, 'हम दिल्ली सरकार को निर्देशित करते हैं कि वे हलफनामा दायर करें, आदेश के बाद भी पटाखे क्यों छूटे, दिल्ली सरकार ने क्या किया। पुलिस ने क्या किया, यह भी जानकारी दी जाए। अगले कदम क्या उठाए जाएंगे, जिससे दिल्ली में अगले साल यह प्रदूषण बढ़ने न पाए।'

सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों से कहा है कि दिल्ली में पटाखों पर हमेशा बैन लगे। दिल्ली सरकार और दूससे अधिकारी दीपावली के बाद भी पटाखों पर बैन जारी रखें। सुनवाई के दौरान जजों ने उन न्यूज रिपोर्ट्स का भी हवाला दिया, जिनमें पटाखों पर बैन लगाने के बाद भी पटाखे छूटने को लेकर सवाल उठाए गए हैं। उन्होंने सवाल किया कि किस आधार पर दिल्ली में प्रतिबंध लागू किए गए थे, दिल्ली सरकार ऑन रिकॉर्ड यह बताए। 

दीपावली पर 30 प्रतिशत बढ़ा प्रदूषण
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवार्यमेंट (CSE) की रिपोर्ट का जिक्र किया। रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली के दौरान दिल्ली में प्रदूषण 10 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक बढ़ गया है। दिल्ली सरकार ने यह भी बताया कि इस दौरान खेतों में खूब पराली जलाई गई। कोर्ट ने दिल्ली सरकार और पुलिस कमिश्नर को आदेश दिया है कि वे बताएं कि उन्होंने इसे रोकने के लिए किया क्या है। 


सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले एयर क्वालिटी मैनेजमेंट कमीशन (CAQM) ने पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों के पराली जलाने पर अंकुश लगाने के लिए कोई एक्शन न लेने पर चिंता जाहिर की थी। कोर्ट ने अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया था।