केंद्र सरकार, संसद के शीतकालीन सत्र में परमाणु ऊर्जा विधेयक-2025 पेश करने की तैयारी में है। देश में परमाणु उर्जा से जुड़े नियम कानून, साल 1962 में आए परमाणु ऊर्जा अधिनियम के हिसाब से चलते हैं, जिनमें अब बदलाव नजर आ सकता है। अगर यह अधिनियम संसद से पास हुआ तो प्राइवेट कंपनियों के लिए सिविल न्यूक्लियर सेक्टर में हिस्सा लेने का रास्ता साफ हो जाएगा। संसद के इस कदम से प्राइवेट संस्थाओं परमाणु सेक्टर में बड़ा मौका मिल सकता है।

सरकार, परमाणु ऊर्जा की दिशा काम करने वाली कंपनियों की जवाबदेही बढ़ाने के लिए भी प्रावधान लाने की कवायद कर रही है। केंद्र सरकार ने 1 दिसंबर से शुरू होने वाले विंटर सेशन के लिए लोकसभा बुलेटिन में परमाणु ऊर्जा विधेयक 2025 को लिस्ट किया है। यह भी चर्चा है कि सरकार, परमाणु कानूनों से जुड़े कानून, सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट (CLNDA), 2010 में भी बदलाव कर सकती है। CLNDA में संशोधन, फिलहाल इस सत्र में सरकार नहीं कर रही है। 

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कैसे शुरू हुई इस विधेयक की कवायद?

1 फरवरी 2025 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था कि साल 2047 तक, कम से कम 100 गीगावाट परमाणु उर्जा का विकास, हमारी ऊर्जा खपत के लिए जरूरी है। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए प्राइवेट सेक्टर की सक्रिय भागीदारी की जरूरत पड़ेगी। परमाणु ऊर्जा अधिनियम और सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट में संशोधन करेंगे। सरकार, तब से ही दोनों कानूनों में बदलाव लाने की बात कर रही है। 

एक बार ये बदलाव पास हो जाएं, तो ये ऐसे समय में एक बड़ा सुधार होंगे जब भारत ने 2047 तक कम से कम 100 GW न्यूक्लियर एनर्जी बनाने का टारगेट रखा है। पावर सेक्टर के एक्सपर्ट कुछ समय से इस बात पर दुख जता रहे हैं कि जब तक प्राइवेट प्लेयर्स नहीं आते, भारत के लिए सिर्फ़ सरकारी और कंट्रोल वाली एंटिटीज़ के ज़रिए इस बड़े टारगेट को पूरा करना मुश्किल होगा।

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CLDNA और परमाणु ऊर्जा अधिनयम क्या हैं?

परमाणु ऊर्जा अधिनयम, प्राइवेट सेक्टर या राज्य सरकारों के परमाणु कार्यक्रमों में हिस्सा लेने पर रोक लगाता है। इस कानून की वजह से न्यूक्लियर पावर प्लांट चलाने की ताकत सिर्फ केंद्र सरकार या उसकी बनाई कंपनियों और कॉर्पोरेशन्स के पास होती है। CLDNA किसी न्यूक्लियर हादसे के पीड़ितों को मुआवजे के लिए कानूनी ढांचा मुहैया करता है और कड़ी जवाबदेही तय करता है। साल 2010 में इसे लेकर अहम बदलाव हुए और यह कानून ज्यादा मजबूत बनाया गया। 

देश के परमाणु कार्यक्रमों को कौन सी कंपनी चला रही है?

न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL), देश के परमाणु कार्यक्रमों को चला रही है। यह परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत काम करने वाली एक पब्लिक सेक्टर यूनिट है, जिसके सिर पर सभी परमाणु प्लांट चलाने की जिम्मेदारी है। देश के पास 24  जो डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी के तहत एक PSU है, अभी न्यूक्लियर पावर प्लांट चलाने वाली अकेली एंटिटी है। यह अभी देश के सभी 24 कमर्शियल न्यूक्लियर पावर रिएक्टर चलाती है।

सरकार की परमाणु योजना क्या है?

सरकार ने 2047 तक 100 गीगावाट न्यूक्लियर पावर क्षमता का लक्ष्य रखा है। अभी देश में सिर्फ 8,180 मेगावाट न्यूक्लियर बिजली है। न्यूक्लियर एनर्जी मिशन फॉर विकसित भारत सरकार का एजेंडा है। इसके लिए 20,000 करोड़ रुपये का विशेष फंड रखा गया है। इस मिशन का मुख्य फोकस स्वदेशी 'स्माल मॉड्यूलर रिएक्टर' या SMR विकसित करना है। सरकार ने लक्ष्य रखा है कि साल 2033 तक कम से कम 5 देसी SMR चालू हो जाएं। 

यह संभव हो पाए इसलिए, परमाणु ऊर्जा विधेयक लाया जा रहा है। सरकार की मंशा है कि प्राइवेट सेक्टर निवेश करेगा, NPCIL डिजाइन, सुरक्षा और संचालन देखेगा। इसके लिए एटॉमिक एनर्जी एक्ट और न्यूक्लियर लायबिलिटी एक्ट में संशोधन होंगे। सरकार 'भारत स्मॉल रिएक्टर' और 'भारत स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर' पर तेजी से काम कर रही है। ये छोटे रिएक्टर स्टील, एल्यूमिनियम जैसी बड़ी फैक्टरियों के पास लगाए जाएंगे, जिससे कोयले की जगह साफ-सुथरी बिजली मिले।

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पुरानी कोल प्लांट की जगह भी SMR लगाए जा सकते हैं। साल 2031-32 तक न्यूक्लियर क्षमता 22,480 मेगा वाट करने का प्लान है। 10 नए रिएक्टर बन रहे हैं, 10 और को मंजूरी मिल चुकी है। सरकार का कहना है कि न्यूक्लियर एनर्जी सस्ती, सुरक्षित और 24 घंटे उपलब्ध होगी। इससे 2030 तक 500 गीगावाट नॉन-फॉसिल एनर्जी का लक्ष्य हासिल होगा।

कानूनों में बदलाव की जरूरत क्यों पड़ेगी?

परमाणु प्लांट चलाने के लिए जिन उपकरणों की जरूरत पड़ती है, ज्यादातर अमेरिका और यूरोपीय देशों से आते हैं। अमेरिका की वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियां और परमाणु कार्यक्रमों में भाग लेने की इच्छआ रखने वाली संस्थाएं भी CLNDA के सख्त प्रावधानों को लेकर आशंकित रहती हैं। विदेशी कंपनियों परमाणु कार्यक्रमों से दूरी बनाई है। अब अगर प्राइवेट कंपनियों को मौका देना है तो कुछ कड़े प्रावधानों को आसान करना होगा। भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता अभी सिर्फ 8,180 मेगावाट है। यह देश के कुल ऊर्जा का दो फीसदी हिस्सा है। दुनिया एक तरफ परमाणु पर अपनी निर्भरता बढ़ा रही है, वहीं भारत में अभी यह शुरुआती चरण में है।

भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का भविष्य क्या है?

परमाणु ऊर्जा, पर महंगे संसाधन खर्च होते हैं। भारत ने साल 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा का लक्ष्य रखा है, ऐसे में प्राइवेट कंपनियों के बिना इस लक्ष्य को हासिल करना थोड़ा मुश्किल है। सरकार मौजूदा कानूनों में बदलाव, इसी वजह से चाहती है। बिना कानून बदले, प्राइवेट निवेश हो नहीं सकता है, सरकार ने इसलिए ही इसे शीतकालीन सत्र में लिस्ट किया है।

क्या बदलाव हो सकता है?

परमाणु अधिनियम का सेक्शन 3 सिर्फ केंद्र सरकार और उसकी कंपनियों को रेडियोएक्टिव और संवेदनशील चीजों को बनाने, खरीदने, स्टोर करने और डिस्पोज करने की इजाज़त देता है। इनका इस्तेमाल एटॉमिक एनर्जी के प्रोडक्शन और इस्तेमाल के लिए किया जा सकता है।

भारत में परमाणु ऊर्जा और रेडियोएक्टिव पदार्थों से जुड़ा हर काम, उत्पादन से लेकर सुरक्षा, गोपनीयता और बिजली बनाने तक, पूरी तरह केन्द्र सरकार के नियंत्रण में है। निजी व्यक्ति या कंपनी बिना सरकार की अनुमति के कुछ भी नहीं कर सकती। सरकार इस धारा में बदलाव करेगी। 

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केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से गठित एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह प्रस्ताव दिया है कि परमाण ईंधन फ्यूल की हैंडलिंग से जुड़ी गतिविधियों को किसी भी कंपनी को करने की इजाजत दी जा सकती है। सरकार इन्हें लाइसेंसिंग के जरिए नियंत्रित कर सकती है। 

अब तक कैसे चल रहा था काम-काज?

परमाणु ऊर्जा से जुड़े मामलों के लिए जिम्मेदार संस्था डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी (DAE) है। परमाणु ऊर्जा पर बनी समति का कहना है कि ऊर्जा मंत्रालय, इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 2003 और एनर्जी कंजर्वेशन एक्ट, 2001 के नियमन के लिए जिम्मेदार है, इसलिए उसे न्यूक्लियर पावर डेवलपमेंट की कुछ जिम्मेदारियां शेयर करनी चाहिए। सरकार CLNDA में कुछ बदलाव कर सकती है। यह कानून न्यूक्लियर प्लांट के ऑपरेटर पर सख्त और बिना गलती वाली जवाबदेही तय करता है।

अब तक किसी दुर्घटना से हुए नुकसान की स्थिति में ऑपरेटर को 1,500 करोड़ रुपये तक का भुगतान करना होता है। CLDNA के तहत ऑपरेटर को इंश्योरेंस या दूसरी फाइनेंशियल सिक्योरिटी के जरिए आपदा की स्थिति में जवाबदेही लेनी पड़ती है। अगर नुकसान का दावा 1,500 करोड़ रुपये से ज्यादा होता है, तो सरकार को दखल देना पड़ता है। सख्त नियमों की वजह से विदेशी कंपनियां, परमाणु कार्यक्रमों में रुझान दिखाने से भी बचती रहीं हैं। अब इन्हें उदार किए जाने की जरूरत है। न्यूक्लियर इंस्टॉलेशन ऑपरेटर से जुड़े नियमों में भी बदलाव हो सकते हैं। 

संसद में क्या होने वाला है?

  • सरकार लोकसभा में 'परमाणु ऊर्जा बिल 2025' ला रही है। विधेयक में 'कंपनी' की परिभाषा बदलने की बात कही जा रही है। यह प्रावधान किया जा सकता है कि न सिर्फ सरकारी, बल्कि 'कंपनी एक्ट' के तहत रजिस्टर्ड कोई भी प्राइवेट कंपनी लाइसेंस लेकर परमाणु ऊर्जा का उत्पादन कर सकें।

  • ऊर्जा मंत्रालय को भी परमाणु ऊर्जा विकास में कुछ जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं, जो अभी तक सिर्फ परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के पास थीं। मुआवजे का कानून, CLNDA के तहत तय होता है। यह कानून तय करता है कि अगर परमाणु संयंत्र में कोई दुर्घटना हो जाए तो मुआवजा कौन देगा।

  • विदेशी कंपनियां भारत आने से डरती हैं क्योंकि यह कानून बहुत सख्त है। इसमें हादसे की स्थिति में कंपनी पर भारी जुर्माने और मुआवजे का प्रावधान है। सरकार इस कानून में भी ढील देना चाहती है ताकि विदेशी कंपनियां बिना डरे भारत में निवेश कर सकें।

  • सरकार का यह कदम भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक बहुत बड़ा सुधार माना जा रहा है। इसका सीधा मकसद है, परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में प्राइवेट पैसा और तकनीक लाना, जिससे भारत अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा कर सके।

  • अभी परमाणु बिजली सिर्फ सरकार बना सकती है। अगर कानून बदला तो टाटा, अडाणी, रिलायंस और विदेशी कंपनियां भी परमाणु बिजली प्लांट बना सकेंगी। इससे 2047 तक 100 गीगावॉट का सपना पूरा हो सकता है। पहले परमाणु ऊर्जा विधेयक पेश होगा, दूसरे सत्र में CLNDA में बदलाव लाया जा सकता है।