दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर अक्टूबर से ही खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। शनिवार को भी दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 341 स्तर पर है। PM10 का स्तर 329 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। PM2.5 का स्तर 244 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर बना हुआ है। एयर क्वालिटी इंडेक्स के सारे पैमाने इशारा कर रहे हैं कि दिल्ली की हवा में सांस लेना जोखिमभरा है। दिल्ली की हवा को साफ करने के लिए जगह-जगह वाटर स्प्रिंकलर का इस्तेमाल किया जा रहा है।
दिल्ली में मोबाइल एंटी-स्मॉग गन और मैकेनिकल रोड स्वीपर तैनात किए गए हैं। रूफटॉप स्प्रिंकलर और फव्वारों से हवा सुधारने की कवायद की जा रही है। कई जगह दावा किया जाता है कि इन उपायों से हवा साफ हो रही है। CPCB का मानना है कि इनसे हवा साफ होती है। हल्की बारिश के बाद भी हवा में मौजूद प्रदूषण घटते हैं और हवा साफ होती है। कभी सोचा है कि दिल्ली में भीषण कोहरा, ओस की बूंदे और शीतलहर के बाद भी क्यों हवा साफ नहीं हो रही है।
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अगर जमीन पर देखेंगे तो आपको सुबह-सुबह बारिश जैसी नमी नजर आएगी। बारिश जैसा माहौल दिखता है, ओस की बूंदे लगातार टपकती हैं फिर भी हवा साफ नहीं है। ऐसा क्यों होता है, क्यों वाटर स्प्रिंकलर की तरह ओस की बूंदे हवा साफ नहीं कर पाती हैं, क्या वॉर स्प्रिकंलर से हवा साफ होती है, आइए इनके बारे में विस्तार से समझते हैं-
क्यों ओस की बूंदे नहीं सुधार पाती हैं AQI?
एमएलके (पीजी) कॉलेज में भौतिकी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आलोक बताते हैं, 'ओस की बूंदें, कोहरा या शीत हवा से कुछ प्रदूषक कणों को अवशोषित करके हवा की गुणवत्ता सुधार सकती हैं। हवा में मौजूद कण, इनके न्यूक्लियस कंडेंशन के साथ मिलकर ओस बनने की स्थिति में सतह पर जमा हो सकते हैं। सामान्य मौसम में ओस PM2.5 जैसे कड़ों को कम कर सकते हैं लेकिन दिल्ली-NCR में अभी प्रदूषण की स्थिति ज्यादा खराब है। कोहरा या धुंध के साथ ओस की क्षमता कम हो जाती है। मौसम की स्थितियां स्थिर होती हैं, तापमान कम होता है, हवा की गति कम होती है। हवा में टेंपरेचर इन्वर्शन की स्थिति बनती है। यह वह स्थिति होती है, जब नीचे ठंडी हवा होती है, ऊपर गर्म हवा की परत बन जाती है। इससे प्रदूषक हवा में फंस जाते हैं और ऊपर नहीं उठ पाते हैं।'
डॉ. आलोक बताते हैं, 'ओस या कोहरा बनने की वजह से प्रदूषक कण हवा में रहते हैं, कोहरे की बूंदों में घुल जाते हैं। सांस के साथ ये फेफड़ों में भी पहुंच सकते हैं। कोहरा प्रदूषकों का संजाल बनाता है। ओस की बूंदे कोहरे में बदलती हैं तो ये बूंदें PM2.5 और PM10 जैसे कणों को अपने अंदर कैद कर लेती हैं। हवा साफ होने की जगह, स्मॉग में बदल जाता है। धुआं और कोहरा मिलकर एयर क्वालिटी इंडेक्स और बिगाड़ देता है। दिल्ली में कोहरा घना होने से प्रदूषण बिखरने की जगह जमा हो जाता है। गाड़ियां, उद्योगों के प्रदूषक, टायर, अलाव जैसे कई सोर्स, हवा को और प्रदूषित कर देते हैं।' यही वजह है कि CPCB, पानी की फुहारों से हवा साफ होने का दावा करता है लेकिन ओस की बूंदों से नहीं।
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वाटर स्प्रिंकलर से दिल्ली में प्रदूषण कम हो पाता है?
दिल्ली सरकार ने मई 2025 में बड़ा फैसला लिया था कि ऊंची इमारतों वाली कमर्शियल बिल्डिंग्स, मॉल, होटल, ऑफिस पर एंटी-स्मॉग गन लगाना अनिवार्य है। इसका मकसद धूल और प्रदूषण को कम करना था। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) की एक विश्लेषण में दावा किया कि दिल्ली में करीब 58,500 इमारतें हैं, लेकिन इस नियम के तहत सिर्फ 452 हाई-राइज बिल्डिंग्स ही क्वालीफाई करती हैं। इनमें से ज्यादातर साउथ और सेंट्रल दिल्ली में हैं, जैसे मालवीय नगर, ग्रेटर कैलाश और दरियागंज में। वहीं, जहां धूल ज्यादा है, जैसे जहांगीरपुरी, वजीरपुर और मुंडका में, वहां ये इमारतें कम हैं। रिपोर्ट कहती है कि इन गनों से दिल्ली की सिर्फ 2 फीसदी सड़कें ही कवर हो पाएंगी। हाई-राइज के आसपास 50 मीटर का इलाका मिलाकर भी सिर्फ 3-7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही प्रभावित होगा, जबकि दिल्ली का कुल क्षेत्रफल 1,487 वर्ग किलोमीटर है। यानी कवरेज बहुत कम है। इनका असर, सीमित जगहों पर ही प्रभावी होता है, जैसे फुहारे के ठीक नीचे की हवा साफ मानी जा सकती है।
CEEW रिपोर्ट बताती है कि सर्दियों में रोड डस्ट से PM2.5 का सिर्फ 15 फीसदी हिस्सा आता है, फिर भी धूल नियंत्रण पर ज्यादातर पैसा खर्च हो रहा है। एंटी-स्मॉग गन की प्रभावशीलता पर वैज्ञानिक सबूत कम हैं। ये सिर्फ सहायक उपाय हो सकते हैं, मुख्य समाधान नहीं। रिपोर्ट सुझाती है कि दिल्ली को धूल नियंत्रण के लिए वैज्ञानिक मूल्यांकन करना चाहिए। बेहतर होगा कि धूल के हॉटस्पॉट्स पर फोकस करें और लंबे समय के उपाय अपनाएं। CEEW की यह रिपोर्ट अर्पण पात्रा, मोहम्मद सहबाज अहमद और कार्तिक गणेशन ने किया था।
बारिश हवा कैसे साफ करती है?
नेशनल वेदर सर्विस, अमेरिका की एक स्टडी बताती है कि हवा में बहुत सारी गंदगी होती है। हवा में धूल, धुआं, छोटे-छोटे कण, गैस और प्रदूषक मौजूद होते हैं। प्रदूषण बढ़ने की एक वजह इन्हें माना जाता है। जब बारिश होती है तब बारिश की बूंदें धूल और कणों को चिपका लेती हैं। बारिश की बूंदें ऊपर से नीचे गिरते हुए हवा में तैरते कणों से टकराती हैं। उन्हें अपनी सतह पर चिपका लेती हैं। कोई गीला कपड़ा धूल साफ करता है, वैसे ही बूंदें हवा को साफ करती हैं। चिपकी हुई गंदगी वाली बूंदें जमीन पर गिरती हैं तो हवा से प्रदूषण कम हो ने लगता है। इसे 'वेट डिपॉजिशन' या 'वॉशआउट' कहते हैं। यही वजह है कि बारिश के बाद हवा साफ और ताजा लगती है और AQI सुधर जाता है।
ओस या वाटर स्प्रिंकलर की बूंदें यही नहीं कर पाती हैं। ओस हवा में मौजूद जलवाष्प के जमीन या निचली सतहों पर सर्दी की वजह से बनती है। ओस सतह के संपर्क में आने पर संघनित होती है, इसलिए यह ऊंचाई पर नहीं बनती। बारिश पैदा करने वाले बादल 2,000 से 18,000 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई पर होते हैं। वे ज्यादा विस्तृत स्तर पर फैली गंदगी को लेकर साथ गिरते हैं।
एयर क्वालिटी इंडेक्स कैसे मापते हैं?
भारत में हवा का प्रदूषण, एयर क्वालिटी इंडेक्स से मापता हैं। AQI की रैंकिंग 0 से 500 तक के बीच में होता है। अगर AQI 0 से 50 के बीच है तो इसे अच्छा माना जाता है। अगर AQI 51 से 100 के बीच है तो इसे संतोषजनक कहते हैं। अगर AQI, 300 से ऊपर है तो यह गंभीर प्रदूषण की स्थिति है।
AQI, PM2.5, PM10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओजोन जैसी गैसों की मात्रा से तय किया जाता है। PM2.5 बहुत बारीक कण होते हैं, जो फेफड़ों में गहरे तक घुसकर दिल और सांस की बीमारियां बढ़ा सकते हैं। PM10 इससे बड़े कण हैं, जो नाक-गले में रुकते हैं लेकिन अस्थमा जैसी समस्या पैदा कर सकते हैं। ज्यादातर शहरों में PM2.5 ही AQI को खराब बनाता है।
PM2.5 और PM10 का मतलब क्या है?
AQI में PM का मतल पार्टिक्युलेट मैटर कहते हैं। PM10 उन कणों को कहते हैं जो 10 माइक्रोमीटर (µm) या उससे छोटे होते हैं। ये धूल, पराग, फैक्ट्री का धुआं आदि से आते हैं। ये नाक और गले में फंस जाते हैं। PM2.5 इससे भी बारीक कण होते हैं। 2.5 माइक्रोमीटर या इससे भी छोटे। ये वाहनों का धुआं, जलते कचरे, फैक्ट्री उत्सर्जन से बनते हैं। ये फेफड़ों में गहराई तक घुस जाते हैं और खून में मिलकर दिल की बीमारियां, सांस की तकलीफ बढ़ाते हैं। इन्हें ज्यादा खतरनाक माना जाता है।
