आतंकवादियों ने पहलगाम में हमला कर 26 यात्रियों की हत्या क्यों की? स्त्रियों और बच्चों को छोड़कर, पुरुषों को चुनकर, उनका नाम और धर्म पूछकर क्यों मारा? क्या उनका उद्देश्य सिर्फ 26 लोगों को मारने का था? 26 लोगों को मारने से क्या हासिल होगा?


आतंकवाद एक मनोवैज्ञानिक लड़ाई है। इसके दो उद्देश्य हैं- एक राजनैतिक लीडरशिप को बैकफुट पर लाना, जिससे जनता के मन में उनके प्रति अविश्वास पैदा हो और लीडरशिप देश के अन्य महत्वपूर्ण कार्यों से बिल्कुल ध्यान हटाकर इसे नियंत्रित करने में लग जाए। दूसरा, जनता के मन में एक दूसरे के प्रति संशय पैदा करना ताकि लोग अपने आस पास के लोगों पर शक करें कि कहीं यही तो नहीं, जिसने आतंकवादियों की मदद की हो।

 

यहां पर तीन बातें महत्वपूर्ण हैं। पहली बात कि 2019 में धारा 370 खत्म होने के बाद बहुत कयास लगाए जा रहे थे कि कश्मीर में यह होगा, वह होगा। कश्मीर ये गया कि वो गया लेकिन आंकड़े कुछ और बताते हैं। कश्मीर में टूरिज्म कई गुना बढ़ गया। 2020 में जहां 34 लाख लोग गये थे, वहीं 2024 में छह महीनों में ही एक करोड़ से ऊपर लोग पहुंच गए थे।

 

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इस टूरिज्म ने वहां के लोगों को अभूतपूर्व रोजगार दिया था। जब कश्मीर में पत्थरबाजी होती थी तब यही कहा जाता था कि पांच-पांच सौ रुपये देकर बेरोजगार युवकों से पत्थरबाजी कराई जाती थी पर टूरिज्म ने युवकों के हाथ में नोटों की गड्डियां पकड़ानी शुरू कर दीं। नतीजा हमें देखने को मिला है- पहलगाम हमले के बाद लाल चौक पर कश्मीरियों ने तिरंगा यात्रा निकाली। कैंडल मार्च निकाला। जहां पहले कश्मीर के नेता भारत सरकार को दोष देते थे, इस बार सबने एक सुर से भारत सरकार का समर्थन किया है। चारों तरफ से खबरें आई हैं कि फंसे हुए पर्यटकों को कश्मीरियों ने हर तरह की मदद की है। यह साबित करता है कि कश्मीर में कुछ बदला है जिससे पाकिस्तान की टेरर फैक्ट्री को परेशानी है।

कश्मीर में आतंकवाद और बॉलीवुड

 

कश्मीर को पॉपुलर करने में जहांगीर से लेकर अंग्रेजी राज, पहले प्रधानमंत्री नेहरू से लेकर बॉलीवुड तक के प्रयास रहे हैं। बॉलीवुड की फिल्में कश्मीर की कली से लेकर बेताब और बजरंगी भाईजान, थ्री इडियट्स तक सारी फिल्मों ने कश्मीर को अलग तरीके से प्रस्तुत किया। बेताब फिल्म के नाम पर तो कश्मीर में बेताब वैली है। इन चीजों ने आम भारतीय जनता को कश्मीर की खूबसूरती से जोड़ दिया। जरा सा पैसा इकट्ठा होते ही लोगों का कश्मीर प्लान बन जाता है। यह प्लान 2016 में उरी और 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी नहीं बदला है पर आतंकवाद यही नहीं चाहता। उसका उद्देश्य है कि ये सारे प्लान बदल जाएं- आम आदमी के प्लान। वह ना जाए कश्मीर, आम कश्मीरी चार पैसे ना कमाए। आतंकवाद चाहता है कि कश्मीरी बिहारी, मराठी, पंजाबी, असमी, बंगाली, तमिल, मलयाली लोगों पर शक करे और बाकी लोग कश्मीरियों पर क्योंकि आतंकवाद कश्मीर को भारत से अलग देखता है जबकि कश्मीर भारत ही है लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से आतंकवाद अलग तरीके की लड़ाई लड़ रहा है। लोगों में उन्माद फैल रहा। एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोग पर शक कर रहे।

अपने पास जूस बेचने वाले पर शक कर रहे। उन्हें लग रहा कि ये आदमी आतंकवाद का प्रतिनिधि है। यहीं पर आतंकवाद जीतता हुआ दिख रहा है। अगर कश्मीर का टूरिज्म सेक्टर बर्बाद होता है, तो उन्हीं लोगों का फायदा है।

 

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दूसरी बात कि पाकिस्तान खुद फंसा हुआ है। इमरान खान की सरकार को गिराने के बाद वहां जनतंत्र सेना के हाथ की कठपुतली बना हुआ है। इमरान खान जेल में हैं और उनके समर्थकों पर पुलिसिया लाठी बरसाई जा रही। अमेरिका से आतंकवाद से लड़ने के नाम पर पाकिस्तान जो मदद ले रहा था, वे पैसे अब मिल नहीं रहे। आए दिन पाकिस्तान की खस्ता इकॉनमी की खबरें प्रचारित होती हैं। आईपीएल की तर्ज पर पाकिस्तान पीएसएल कराता है और इसमें मैन ऑफ द मैच को हेयर ड्रायर तक दे रहा। उनका आर्मी चीफ जान बूझकर महीनों से भड़काऊ बयान दे रहा जबकि इस बात के प्रमाण हैं कि वह खुद लंदन में अपनी प्रॉपर्टी बना चुका है। यह पाकिस्तानी आर्मी का पुराना रूप है। वहां की आर्मी सिर्फ आर्मी नहीं है, एक कंपनी है- उसे एस्टाब्लिशमेंट कहते हैं। ऐसा कोई बिजनेस नहीं है, जो पाकिस्तानी आर्मी नहीं करती है। धंधे से बड़ा कोई ईमान नहीं होता। तो अपने धंधे के लिए पाकिस्तानी आर्मी किसी भी हद तक जा सकती है। ऐसे में पाकिस्तानी जनता का ध्यान खुद से हटाने के लिए आतंकवाद का सहारा लेना उनके लिए सामान्य बात है।

बलूचिस्तान, भारत और पाकिस्तान

 

तीसरी बात कि बलूचिस्तान को लेकर पाकिस्तान भारत पर हमेशा उंगली उठाता रहा है। पिछले महीने बलूचिस्तान के विद्रोहियों ने एक पूरी पाकिस्तानी ट्रेन अगवा कर ली थी। इसके अलावा वह लगातार पाकिस्तानी आर्मी पर हमला करते रहे हैं। ऐसा नहीं कि आतंकवाद को पोसने से पाकिस्तान को घाटा नहीं होता। तहरीक-ए-तालिबान नाम का आतंकवाद संगठन तो पाकिस्तानी आर्मी के ही खिलाफ हो गया था। एक बार उन्होंने आर्मी अफसरों के बच्चों को मार गिराया था। पाकिस्तानी आर्मी ने इस संगठन के खिलाफ महा अभियान चलाया था जिसमें बहुत हत्याएं हुई थीं लेकिन फिर वही बात, धंधे के आगे कुछ भी नहीं। पाकिस्तानी आर्मी का पूरा फोकस इस बात पर है कि पाकिस्तान में कोई लीडर ना पनपे क्योंकि तब इनके गुनाह खुलने शुरू होंगे और यह सारा धंधा चौपट हो जाएगा। कुल मिलाकर पाकिस्तान शेर की सवारी कर रहा है, उससे उतरना अब उसके लिए मुश्किल है तो उसको यही रास्ता नजर आता है कि जो आस पास हैं, उनको डराने की कोशिश की जाए।

 

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अगर सोशल मीडिया पर फैला उन्माद देखें तो भारत के कुछ लोग भी उसी शेर की सवारी करना चाहते हैं। वे लगातार उकसा रहे कि भारतीय सरकार पाकिस्तान पर हमला कर दे, मिसाइल दाग दे, परमाणु बम गिरा दे। जैसे कि रोड रेज करना चाहते हों। यह सरकार पर बेजा दबाव बनाने की कोशिश है। अभी दुनिया में हम इजराइल-फिलीस्तीन, रूस-यूक्रेन युद्ध देख रहे कि कितनी बर्बादी हुई है। इससे पहले अमेरिका-इराक, अमेरिका-अफगानिस्तान, अमेरिका-लीबिया, अमेरिका-सीरिया युद्धों को देख चुके हैं। हम यह भी देख रहे हैं कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ अमेरिका क्या व्यवहार कर रहा। कश्मीर मामले पर भी अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है कि भारत और पाकिस्तान दोनों मेरे दोस्त हैं और वे दोनों ‘पिछले डेढ़ हजार सालों से’ आपस में लड़ रहे हैं और वो एक ना एक दिन इसका हल निकाल लेंगे।

 

बांग्लादेश की चुनी हुई सरकार को गिराकर वहां पर एक पपेट युनुस को बैठा दिया गया। निर्वासित बांग्लादेशी लीडर चीख चीखकर कह रहे कि इसमें अमेरिका का हाथ है। म्यानमार में डेमोक्रेसी को सामने खत्म होने दिया गया और वहां पर सैन्य शासन है। तो यह बात बिल्कुल सामने है कि युद्ध की स्थिति में कौन किसके साथ होगा। साथ ही पाकिस्तान बिल्कुल चीन के कब्जे में है। चीन भारत के साथ कभी भी सामान्य रिश्ते नहीं होने देता। जबसे एप्पल ने यह निर्णय लिया कि अब आईफोन की फैक्ट्री भारत में ही लगाई जाएंगी, तब से चीन और पाकिस्तान यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत एक सुरक्षित जगह नहीं है। ऐसे में अगर कुछ भारतीय उन्माद ही फैलाएंगे तो जीत किसकी होगी, यह भी स्पष्ट है।