तमिलनाडु की राजनीति में नई सियासी हलचल मची है। एक तरफ राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन केंद्र सरकार की तीन भाषा नीति के खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठे हैं, दूसरी तरफ राज्य में नए गठजोड़ के साथ आने की सुगबुगाहट है। गठबंधन टूटने के 2 साल बाद एक बार फिर बीजेपी और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) साथ नजर आ रहे हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि 2026 में होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी है। गृहमंत्री अमित शाह और AIADMK के महासचिव ई के पलानीस्वामी की मुलाकात भी सुर्खियों में है। 25 मार्च को हुई इस बैठक की चर्चा दक्षिण भारतीय राजनीति में शुरू हो गई है।
ई पलानी स्वामी का कहना है कि यह बैठक गठबंधन के सिलसिले में नहीं थी, वहीं अमित शाह ने मुलाकात के बाद कुछ ऐसा लिखा, जिसके बाद अटकलें लगाई जाने लगीं कि 2023 में बिखरा यह गठबंधन जुट सकता है। अमित शाह ने इशारा किया है कि तमिलनाडु में अगले साल एनडीए की सरकार बनेगी। 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों को लेकर अब चर्चा शुरू हो गई है कि बीजेपी और AIADM साथ आ रहे हैं।
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तमिलनाडु में BJP-AIDMK की दावेदारी में कितना दम?
साल 2019 में AIADMK और BJP साथ मिलकर चुनाव लड़े थे। एनडीए को 30.7 प्रतिशत वोट मिले लेकिन सीट सिर्फ एक हासिल हुई। यूपीए को 35 सीटें मिलीं, 50 प्रतिशत वोट शेयर रहा। दिलचस्प बात यह है कि एनडीए गठबंधन के बाद भी सिर्फ 1 सीट हासिल कर पाई। BJP का वोट शेयर 3.7 प्रतिशत रहा, वहीं AIADMK का वोट शेयर 18.7 प्रतिशत रहा। तमिलनाडु में कुल 39 सीटें हैं। AIADMK ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था, BJP 5 सीटों पर उतरी थी। नतीजे एनडीए के लिए ठीक नहीं रहे।
साल 2024 के लोकसभा चुनावों में सब ठीक चल रहा था लेकिन 2023 में गठबंधन ही टूट गया। AIDMK का कहना था कि राज्य बीजेपी के अध्यक्ष के अन्नामलाई, AIADMK के बड़े चेहरो के बारे में अपमानजनक बातें कर रहे हैं। उन पर संस्थापक एमजी रामचंद्रन से लेकर जयललिता तक के अपमान के आरोप लगे। दोनों दलों में बात गठबंधन को लेकर बन नहीं पाई। दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़े।
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2024 के सबक से सीखेंगे दोनों दल?
BJP के साथ न होने की वजह से AIADMK ने उम्मीद जताई कि राज्य की क्रिश्चियन और मुस्लिम आबादी समर्थन दे सकती है। चुनाव के नतीजे तब भी ठीक नहीं रहे। राज्य की 39 सीटों पर डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन को जीत मिली। बीजेपी का खाता तक नहीं खुला। AIDMK का वोट शेयर इस चुनाव में 20.46 प्रतिशत रहा, BJP 11.24 प्रतिशत वोट हासिल कर ली। DMK का वोट शेयर करीब 26.93 रहा। कांग्रेस 10.67 और लेफ्ट की पार्टियों का वोट शेयर 4 प्रतिशत से ज्यादा रहा। राजनीति विश्लेषकों का कहना है कि अगर दोनों दल साथ होते तो शायद जमीन पर स्थितियां अलग हो सकती थीं।
सबक क्या है?
AIADMK के लिए यह आंकड़े ठीक नहीं रहे। 7 लोकसभा सीटें ऐसी रहीं, जहां AIADMK की जमानत तक जब्त हो गई। जिस पार्टी का 3 दशक तक तमिलनाडु में शासन रहा है, उस पार्टी के लिए ऐसा प्रदर्शन शर्मनाक रहा। चेन्नई दक्षिण, कन्याकुमारी, पुडुचेरी, थेनी, थूथुकुडी, तिरुनेलवेली और वेल्लोर में AIADMK का प्रदर्शन बेहद खराब रहा, इन्हीं सीटों पर जमानत जब्त हुई थी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि दोनों पार्टियों के साथ आने की वजह से समीकरण कुछ बदले-बदले नजर आएं। शायद यही वजह है कि बीजेपी और AIADMK एक बार फिर से साथ आने की प्रक्रिया में हैं।
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तमिल प्रथम की राजनीति पर स्टालिन, AIDMK-BJP का मेल कैसे?
बीजेपी दक्षिणी राज्यों में पार्टी के विस्तार के लिए संघर्ष कर रही है। कर्नाटक इकलौता ऐसा दक्षिणी राज्य था, जहां बीजेपी की सरकार थी लेकिन साल 2023 में बीजेपी ने यह किला गंवा दिया, अब बीजेपी की नजरें तमिलनाडु पर है। साल 2023 से पहले तक बीजेपी और AIDMK का गठबंधन अस्तित्व में रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी से तीन भाषा नीति और द्रविड़ आंदोलन पर असहमति के बाद भी दोनों दल साथ आ सकते हैं।

बीजेपी वहां हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के पिच पर अपनी जमीन तैयार कर सकती है , दूसरी तरफ AIADM का रुख भी एनडीए से बहुत अलग नहीं है। साल 1972 में स्थापित यह इस पार्टी ने अपनी छवि हिंदुत्व विरोधी नहीं बनने दी। डीएमके और स्टालिन बार-बार दावा करते रहे कि बीजेपी हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है, वहीं AIDMK सभी सूबों को साथ लेकर चलने की वकालत की है। AIADMK नेताओं का कहना है कि वह हिंदी थोपे जाने के खिलाफ हैं लेकिन अगर कोई स्वेच्छा से हिंदी सीखने की इच्छा रखता है तो वह उसके खिलाफ नहीं है। बीजेपी के साथ इस आधार पर AIADMK में बहुत मतभेद नहीं है।
कहां बिखराव, कहां एक जैसे हालात?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हिंदुत्व के मामले में भी AIADMK का रुख साफ है। AIADMK सभी धर्मों को साथ लेने की पक्षधर है लेकिन हिंदुत्व की आलोचक नहीं है। जयललिता भी अगर मंदिरों का जीर्णोद्धार कराती थीं तो रोजा और इफ्तार के लिए व्यवस्था कराती थीं। वह ईश्वर को मानती थीं लेकिन उनकी राजनीति वंचितों और पिछड़ों पर ज्यादा केंद्रित रहा। बच्चों के लिए पोषण से लेकर विकास तक, उनके अहम एजेंडे में शामिल रहा। बीजेपी की राजनीति भी इन दिनों इसी तरह से ही है। AIADMK से उलट DMK और स्टालिन की राजनीति हिंदुत्व विरोधी रही है। वह बार-बार सार्वजनिक मंचों से कह रहे हैं कि बीजेपी हिंदुत्व थोप रही है।

दोनों दलों के साथ आने की क्या वजह हो सकती है?
तमिलनाडु में बीजेपी और AIADM दोनों एक दूसरे के साथ कई वजहों से आ सकते हैं। बीजेपी को राज्य में विस्तार चाहिए, AIADMK सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है। तमिलनाडु में एक नई पार्टी, तमिलगा वेट्री कड़गम भी द्रविड़ राजनीति करने उतरी है, जिसका नेतृत्व फिल्म अभिनेता विजय कर रहे हैं। तमिलनाडु में फिल्मी हस्तियों का राजनीति में सफल होना, चौंकाने वाला नहीं है। वह किसी के साथ गठबंधन के मूड में नहीं हैं। नाम तमिलर काची भी तमिल राष्ट्रवाद की नीति पर आगे बढ़ रही है। AIADMK, तमिल राष्ट्रवाद, भाषाई पूर्वाग्रह से उलट जन कल्याणकारी नीतियों पर एक साथ आ सकते हैं। अमित शाह के साथ बैठक के बाद ई पलानीस्वामी क्या करेंगे, अभी तक यह साफ नहीं है।