केरल के स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजों से भारतीय जनता पार्टी खुश नजर आ रही है। दक्षिण भारत में जड़े जमाने की कोशिश कर रही पार्टी के लिए यह जीत बड़ी और अहम मानी जा रही है। दशकों की राजनीत में पहली बार ऐसा हुआ है, जब एनडीए की अगुवाई वाले गठबंधन का प्रदर्शन वामपंथ के गढ़ कहे जाने वाले तिरुवनंतपुरम म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन में एनडीए ने पांव जमा लिया है। पहली बार बीजेपी को जीत मिली है। यहां बीते 45 साल से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) की अगुवाई में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट का कब्जा था, बीजेपी ने इस कब्जे को खत्म कर दिया है।
तिरुवनंतपुरम में बीजेपी की जीत को ऐतिहासिक माना जा रहा है। तिरुवनंतपुरम नगर निगम में 101 वार्ड हैं। 100 सीटों पर चुनाव आयोजित कराए गए और बीजेपी ने पूरी बाजी पलट दी। एनडीए गठबंधन के खाते में 50 सीटें आईं। लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट के खाते में 29 सीटें आईं हैं, वहीं यूनाइनेट डेमोक्रेटिक फ्रंट के खाते में 19 सीटें आईं हैं। 2 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी जीते हैं।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी:-
मैं केरल के उन सभी लोगों का आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने राज्य के स्थानी निकाय चुनावों में बीजेपी-एनडीए उम्मीदवारों को वोट दिया। केरल UDF और LDF से तंग आ चुका है। बेहतर शासन और विकसित केरल के लिए एनडीए ही जरूरी है।
बीजेपी के लिए क्यों बड़ी है यह जीत?
केरल में साल 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे। भारतीय जनता पार्टी, साल 2023 में दक्षिण का अपना इकलौता गढ़ कर्नाटक भी गंवा चुकी है। केरल में बीजेपी बीते एक दशक से पांव जमाने की कोशिश कर रही है। बीजेपी को सफलता,राजधानी में मिली है। बीजेपी केरल में हिंदुत्व से ज्यादा विकासवादी एजेंडे पर फोकस कर रही है। बीजेपी केंद्रीय योजनाओं का जिक्र कर रही है। सड़क और अस्पताल का मॉडल केरल में पेश कर रही है। केरल बीजेपी अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने 'विकसित तिरुवनंतपुरम' का नारा दिया था। स्थानीय स्तर पर लोगों में यह हिट गया गया। बीजेपी ने वादा किया था कि अब निकाय स्तर पर भी भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देंगे। बीजेपी ने सबरीमाला गोल्ड चोरी का भी मुद्दा उठाया। सधे कदमों में विकास और हिंदुत्व वाली राजनीति पर काम किया तो नतीजे तिरुवनंतपुरम में बीजेपी के पक्ष में आए।
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जीत के बाद भी क्या हारी बीजेपी?
बीजेपी को सिर्फ तिरुवनंतपुरम में ही जीत हासिल कर पाई है। दूसरी जगहों पर बीजेपी को ज्यादा सफलता नहीं मिली है। बीजेपी ने थ्रिपुनिथुरा और पलक्कड़ नगरपालिका में जीत हासिल की है। यह चुनाव 2026 के विधानसभा चुनाव के लिए सेमीफाइनल माना जा रहा है। अब वहां राजनीतिक समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं।
शशि थरूर, सांसद, तिरुवनंतपुरम
केरल के लोकल सेल्फ-गवर्नमेंट चुनावों में कितने शानदार नतीजे आए हैं। जनादेश साफ है, और राज्य की लोकतांत्रिक भावना साफ झलकती है। निकाय चुनावों में जीत के लिए यूडीएफ को बधाई। यह राज्य विधानसभा चुनावों से पहले एक मजबूत संकेत है। कड़ी मेहनत, एक मजबूत संदेश और सत्ता विरोधी लहर, इन सबने मिलकर 2020 की तुलना में कहीं बेहतर नतीजे दिए हैं।
BJP की जीत को कैसे देखते हैं शशि थरूर?
शशि थरूर ने X पर लिखा, 'मैं तिरुवनंतपुरम में बीजेपी के ऐतिहासिक प्रदर्शन को स्वीकारता हूं। जीत की बधाई दे रहा हूं। यह बेहतरीन प्रदर्शन है, जो राजधानी के राजनीतिक बदलाव को दिखा रहा है। मैंने 45 साल के LDF के कुशासन से बदलाव के लिए प्रचार किया था, लेकिन मतदाताओं ने दूसरी पार्टी को वोट किया। बीजेपी ने प्रशासनिक बदलाव का वादा किया था। यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। लोगों के फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए, चाहे वह कुल मिलाकर UDF के लिए हो या मेरे निर्वाचन क्षेत्र में बीजेपी के लिए। हम केरल की बेहतरी के लिए काम करते रहेंगे, लोगों की जरूरतों की वकालत करेंगे और सुशासन के सिद्धांतों को बनाए रखेंगे।'
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क्यों लेफ्ट के गढ़ में जीत गई बीजेपी?
तिरुवनंतपुरम में वाम मोर्चे के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी अहम वजह मानी जा रही है। मेयर आर्या राजेंद्रन की छवि विवादित रही है। उन पर प्रशासनिक असफलताओं के आरोप लगे। केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर तिरुवनंतपुरम ने खुद मोर्चा संभाला था। बेहतर कैंपेनिंग का बीजेपी को फायदा मिला। उन्होंने विकसित अनंतपुरी' विजन और केंद्रीय फंड्स के बेहतर इस्तेमाल का वादा किया, जिस पर जनता ने मोहर लगाई। इस त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस की अगुवाई वाला UDF कमजोर नजर आया, जिससे बीजेपी को फायदा मिला। वक्फ अधिनियम कानून की वजह से बीजेपी को लाभ मिला। ईसाई समुदाय के वोटरों ने भी बीजेपी पर भरोसा जताया। बीजेपी 2026 को लेकर उत्साहित नजर आ रही है।
कांग्रेस ने भी दिखाया है दम
राज्य भर में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ ने शानदार वापसी की। छह कॉर्पोरेशन में से चार, 86 नगरपालिकाओं में से 54, 152 ब्लॉक पंचायतों में से 79 और 941 ग्राम पंचायतों में से 504 पर यूडीएफ ने हासिल की या बढ़त बनाई है। सत्तारूढ़ एलडीएफ को ग्रामीण और शहरी इलाकों में झटका लगा। एलडीएफ ने हालांकि 14 जिला पंचायतों में से सात पर कब्जा बरकरार। पिछले एक दशक से राज्य में हावी रही एलडीएफ के लिए यह बड़ा झटका है।
